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जस्टिस सूर्यकांत को फिर खटके हाईकोर्ट के कुछ जजेस, बोले- सोने से पहले...

सूर्यकांत बोले कि ऐसे जजेस को सोने से पहले खुद से एक सवाल पूछना चाहिए - क्या मैंने सिस्टम का बदला चुकाया है? उस सिस्टम का जिसने एक दिन में मुझ पर इतना पैसा खर्च किया है।

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Shailendra Gautam
सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः हाईकोर्ट के कुछ जजेस को अपने निशाने पर ले चुके जस्टिस सूर्यकांत फिर से फिक्रमंद हैं। उनको चिंता इस बात को लेकर है कि कुछ जजेस केवल टाइन पास करते हैं। वो दूसरों पर अपनी हुकूमत चलाते हैं लेकिन जिस काम के लिए उनको हाईकोर्ट में बिठाया गया है उसी काम को शिद्दत से करने से गुरेज करते हैं। 

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत ने बुधवार को कहा कि कई हाईकोर्ट के जज बहुत अच्छा प्रदर्शन करते हैं, लेकिन कुछ जज बेहतर प्रदर्शन करने की क्षमता होने के बावजूद कमतर प्रदर्शन कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका के सदस्यों को अपनी जिम्मेदारियों के बारे में रोजाना आत्मचिंतन करना चाहिए।

सोने से पहले खुद से पूछें- क्या सिस्टम का कर्ज चुकाया

जस्टिस कांत ने कहा- मैं हाईकोर्ट के जजों को बताना चाहूंगा कि उनमें से कुछ जज बेहतरीन प्रदर्शन कर रहे हैं। ऐसे जज जिस तरह से तैयारी करते हैं, जितने मामलों का निपटारा करते हैं, वो काबिले तारीफ है। उनकी सुनवाई और फैसलों की गुणवत्ता भी बेहतरीन है। लेकिन कुछ जज अभी भी कमतर प्रदर्शन कर रहे हैं। मेरे विचार से उनमें काम करने की क्षमता और योग्यता है। उन्हें सोने से पहले खुद से एक सवाल पूछना चाहिए - क्या मैंने सिस्टम का बदला चुकाया है? उस सिस्टम का जिसने एक दिन में मुझ पर इतना पैसा खर्च किया है।

उन्होंने कहा कि जजों में इस कर्तव्य का बोध होगा तो मामलों के निपटारे में तेजी दिखेगी। न्यायपालिका और बार दोनों के बीच यह आदर्श सहयोग उन मामलों के निपटारे में तेजी ला सकता है जो अभी भी लंबित हैं। जस्टिस सूर्य कांत ने यह टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) के एक समारोह में की। सीजेआई बीआर गवई और एससीबीए अध्यक्ष विकास सिंह ने भी समारोह को संबोधित किया।

कुछ लोगों का विशेषाधिकार बन चुका है इंसाफ

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जस्टिस सूर्य कांत ने कहा कि भारत में न्याय तक पहुंच आज भी समृद्धि का विशेषाधिकार बनी हुई है। कानूनी शुल्क, प्रक्रियाएं और अदालती माहौल अक्सर आम नागरिक को इससे वंचित रखते हैं। उन्होंने कहा- हमने न्याय के मंदिर बनाए हैं लेकिन इनके दरवाजे उन्हीं लोगों के लिए बहुत संकरे हैं जिनकी सेवा के लिए उन्हें बनाया गया था। जब केवल एक पक्ष ही उन पर अपनी शिकायतें थोप सकता है, तो न्याय का तराजू संतुलित नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि कानूनी सहायता लोकतंत्र के अस्तित्व के लिए एक संवैधानिक ऑक्सीजन जैसी है। उन्होंने अपील की कि सीनियर वकीलों को हर महीने कम से कम दो अतिरिक्त मामले बगैर फीस के लेने चाहिए।

मध्यस्थता को प्रोत्साहित करने को कहा

उन्होंने कहा कि कानूनी सहायता केवल कानूनी दान नहीं है। यह लोकतंत्र के अस्तित्व के लिए आवश्यक संवैधानिक ऑक्सीजन है। जब हम कानूनी सहायता की बात करते हैं तो हम भारत के स्वयं से किए गए वादे की बात करते हैं। जस्टिस ने विवादों को शीघ्रता से सुलझाने और रिश्तों को फिर से स्थापित करने के लिए मध्यस्थता को एक शक्तिशाली साधन के रूप में भी रेखांकित किया। 37 वर्षों तक चले एक मामले को याद करते हुए उन्होंने कहा कि अब टकराव के बजाय संवाद को मुख्यधारा में लाने का समय आ गया है। मध्यस्थता एक असाधारण जरिया है, जिसका समाधान संवाद के माध्यम से होता है। अदालतें निर्णय देती हैं लेकिन मध्यस्थ इलाज करते हैं। दोनों ही न्याय प्रदान करते हैं, लेकिन केवल मध्यस्थ ही रिश्तों को बनाए रखता है।

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