Advertisment

Kanha Tiger Reserve: 22 दिन में दूसरी बाघिन की मौत, संघर्ष में गई जान

मध्य प्रदेश स्थित कान्हा टाइगर रिजर्व में एक और बाघिन की मौत हो गई है। वन अधिकारियों के मुताबिक क्षेत्राधिकार को लेकर हुई जंग में इस बाघिन की मौत हुई है। 

author-image
Vibhoo Mishra
tigress
Listen to this article
0.75x1x1.5x
00:00/ 00:00

भोपाल, वाईबीएन नेटवर्क। 

मध्य प्रदेश स्थित कान्हा टाइगर रिजर्व में एक और बाघिन की मौत हो गई है। मंगलवार को 10-12 साल की बाघिन का शव किसली वन क्षेत्र के चिमटा, घांघर सर्कल में पाया गया। वन अधिकारियों के मुताबिक क्षेत्राधिकार को लेकर हुई जंग में इस बाघिन की मौत हुई है। 

दुर्लभ मामला, Territorial fight में गई जान 

प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) एल. कृष्णमूर्ति ने पुष्टि की कि टी 58 बाघिन की मौत टेरिटोरियल फाइट (अन्य बाघों के साथ क्षेत्राधिकार को लेकर संघर्ष) के कारण हुई। पोस्टमार्टम के दौरान उसके शरीर पर चोट के निशान मिले, जिससे यह साफ हुआ कि किसी और बाघ के साथ लड़ाई में उसे गंभीर चोट आई थीं। अधिकारियों के मुताबिक शव का अंतिम संस्कार कर दिया गया और अवैध शिकार के कोई संकेत नहीं मिले हैं, क्योंकि बाघिन के सभी अंग सुरक्षित पाए गए। आमतौर पर बाघों में क्षेत्रीय लड़ाई नर बाघों के बीच होती है, लेकिन इस बार बाघिन की मौत इस वजह से हुई, जो दुर्लभ मामला है। इससे पहले, 29 जनवरी को भी दो वर्षीय बाघिन की मौत इसी तरह के संघर्ष के कारण हुई थी। उस बाघिन के सिर पर चोट के निशान थे, जो किसी अन्य बाघ के साथ लड़ाई का परिणाम माने जा रहे हैं।

रिजर्व में 145 बाघ, जिनमें 30 बाघिन 

कान्हा टाइगर रिजर्व, जिसे कान्हा-किसली राष्ट्रीय उद्यान भी कहा जाता है, भारत के सबसे प्रसिद्ध बाघ अभयारण्यों में से एक है। यह मध्य भारत का सबसे बड़ा राष्ट्रीय उद्यान है और खूबसूरत जैव विविधता के लिए जाना जाता है। संरक्षण प्रयासों के चलते यहां बाघों की संख्या 145 तक पहुंच गई है, जिसमें 115 वयस्क और 30 शावक शामिल हैं।

यह भी पढ़ें: Ghaziabad - हिंडन एयर बेस में पकड़ा गया तेंदुआ, वन विभाग ने छोड़ा राजा जी टाइगर रिजर्व में

बाघों के अलावा ये भी हैं यहाँ 

Advertisment

यह पार्क मध्य प्रदेश के मंडला और बालाघाट जिलों में 940 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। यहां बाघों के अलावा भारतीय तेंदुए, सुस्त भालू, बारहसिंगा और जंगली कुत्तों की भी कई प्रजातियां पाई जाती हैं। यह भारत का पहला बाघ अभयारण्य है, जिसने अपने लिए आधिकारिक शुभंकर ‘भूरसिंह बारहसिंगा’ को अपनाया है। कान्हा राष्ट्रीय उद्यान 1 जून 1955 को स्थापित किया गया था और 1973 में इसे बाघ अभयारण्य का दर्जा दिया गया।

Advertisment
Advertisment