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कर्नाटक का 'रोहित वेमुला विधेयक' : सामाजिक न्याय या हिंदुओं को बांटने की साजिश? पढ़ें बिल में 5 चौंकाने वाले खतरनाक प्रावधान | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क ।कर्नाटक में प्रस्तावित 'रोहित वेमुला (बहिष्करण या अन्याय की रोकथाम) विधेयक, 2025' पर हंगामा मच गया है। भाजपा के निष्कासित विधायक बासनगौड़ा आर पाटिल यतनाल ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को पत्र लिखकर इस बिल पर गंभीर चिंताएं जताई हैं। उनका आरोप है कि यह बिल राज्य-प्रायोजित भेदभाव को बढ़ावा देगा और सामान्य श्रेणी के छात्रों को निशाना बनाएगा, जिससे सामाजिक सौहार्द बिगड़ सकता है। यह विधेयक केवल छात्रों को नहीं, बल्कि कर्नाटक के सामाजिक ताने-बाने को भी प्रभावित करने की क्षमता रखता है।
कर्नाटक में एक नया सियासी तूफान खड़ा हो गया है। विधानसभा में 'रोहित वेमुला (बहिष्करण या अन्याय की रोकथाम) विधेयक, 2025' पेश करने की तैयारी है, लेकिन इस पर विवाद गहराता जा रहा है। विजयपुरा से भाजपा के निष्कासित विधायक बासनगौड़ा आर पाटिल यतनाल ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को एक कड़ा पत्र लिखा है, जिसमें उन्होंने इस बिल को 'राज्य-प्रायोजित भेदभाव' और 'कमजोर वर्गों के राजनीतिक तुष्टीकरण' का एक नया उदाहरण बताया है। यह विधेयक ऐसे समय में आ रहा है जब राज्य पहले से ही किसान आत्महत्याओं और कानून-व्यवस्था की बिगड़ती स्थिति से जूझ रहा है।
यतनाल का दावा है कि यह कर्नाटक रोहित वेमुला विधेयक कांग्रेस सरकार का एक और 'दुस्साहस' है, जिसका असली मकसद शैक्षणिक संस्थानों में भेदभाव को रोकना नहीं, बल्कि SC, ST, OBC और अल्पसंख्यक समुदायों के वोट बैंक को मजबूत करना है। उनके अनुसार, यह बिल 'फूट डालो और राज करो' की ब्रिटिश नीति की याद दिलाता है और हिंदू समाज में दरार डालने का प्रयास है। इस बिल के प्रावधानों पर गौर करें तो सवाल उठते हैं कि क्या यह वास्तव में न्याय सुनिश्चित करेगा या सामाजिक विभाजन को और गहराएगा?
Expelled BJP MLA from Vijayapura, Basanagowda R Patil Yatnal, has written to Karnataka CM Siddaramaiah raising concerns regarding the proposed Karnataka Rohith Vemula (prevention of exclusion or injustice) Bill, 2025. pic.twitter.com/IBly2UGDBO
— ANI (@ANI) July 18, 2025
क्या है विधेयक का विवादास्पद पहलू?
विधायक यतनाल के पत्र के अनुसार, प्रस्तावित रोहित वेमुला बिल के कई प्रावधान बेहद आपत्तिजनक हैं:
सामान्य श्रेणी पर निशाना: यतनाल का आरोप है कि यह विधेयक विशेष रूप से सामान्य श्रेणी के हिंदू छात्रों को निशाना बनाएगा। उनके अनुसार, यह कानून लागू होने पर सामान्य श्रेणी के हिंदुओं को 'गैर-जमानती और संज्ञेय' अपराधों के तहत आसानी से जेल भेजा जा सकेगा।
शिक्षा में 'राज्य-प्रायोजित अलगाव': बिल को 'राज्य-प्रायोजित रंगभेद' का एक क्लासिक मामला बताया जा रहा है, जो छात्रों को उनकी पहचान के आधार पर विभाजित करेगा और योग्यता को बेअसर कर देगा। यह आरोप लगाया जा रहा है कि यह बिल सांप्रदायिक घृणा और विभाजन को बढ़ावा देगा।
कठोर प्रावधान और मौलिक अधिकारों का हनन: बिल में ऐसे प्रावधान शामिल हैं जहां मतभेदों को चर्चा से सुलझाने की बजाय जेल भेजने का प्रावधान है। यतनाल ने इसकी तुलना एडोल्फ हिटलर द्वारा यहूदियों के खिलाफ किए गए 'होलोकास्ट' से की है।
पुलिस को असीमित अधिकार: विधेयक के तहत किए गए अपराध गैर-जमानती होंगे और पुलिस को बिना वारंट के गिरफ्तारी का अधिकार होगा। यह प्रावधान व्यक्तिगत स्वतंत्रता और मौलिक अधिकारों के हनन की आशंका पैदा करता है।
विशेष अदालतों का गठन: बिल में मामलों के त्वरित निपटारे के लिए विशेष अदालतों और प्रत्येक विशेष अदालत में कम से कम एक विशेष लोक अभियोजक और उच्च न्यायालय में एक की नियुक्ति का प्रावधान है।
हिंदू समुदाय में फूट डालने की साजिश: यतनाल का कहना है कि यह बिल हिंदुओं में विभाजन पैदा करने और सामाजिक न्याय को कमजोर करने का प्रयास है। सबसे चिंताजनक बात यह है कि यह विधेयक SC, ST, OBC, मुस्लिम और अल्पसंख्यकों को शामिल करता है, लेकिन सामान्य वर्ग के छात्रों को बाहर कर देता है।
क्या यह सिर्फ वोट बैंक की राजनीति है?
बासनगौड़ा आर पाटिल यतनाल ने मुख्यमंत्री से इस 'मनमानी' और 'दुर्भावनापूर्ण' बिल को रोकने का आग्रह किया है। उनका तर्क है कि कांग्रेस सरकार राज्य के खजाने को खाली कर रही है और शिक्षा के बुनियादी ढांचे को उचित रूप से प्रदान करने में विफल रही है। ऐसे में इस बिल को लाना केवल SC, ST, OBC और मुस्लिम वोट बैंक को खुश करने का एक तरीका है।
यतनाल के अनुसार, यह विधेयक शैक्षणिक संस्थानों के लिए स्थिति को और बदतर बना देगा और इसके प्रावधानों का उल्लंघन करने पर राज्य से वित्तीय सहायता बंद हो सकती है। यह सब 'शैक्षणिक संस्थानों के लिए और भी बुरा होगा' क्योंकि उन्हें 'बिल के प्रावधानों का उल्लंघन करने पर राज्य से वित्तीय सहायता बंद' करनी पड़ सकती है।
यदि यह बिल अपने वर्तमान स्वरूप में पारित हो जाता है, तो यह मुक्त भाषण को बाधित कर सकता है और अकादमिक संस्थानों को कमजोर कर सकता है। यह समाज में विभाजन को बढ़ावा देगा और कमजोर संस्थानों को जन्म देगा। यह आरोप लगाया जा रहा है कि इस विधेयक का उद्देश्य राजनीतिक लाभ के लिए हिंदू समुदाय को 'कानूनी जबरन वसूली और पहचान-आधारित लक्ष्यीकरण' का शिकार बनाना है।
इस पूरे मामले में सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या यह बिल वास्तव में समानता और न्याय सुनिश्चित करेगा या यह केवल एक विशेष वर्ग को संतुष्ट करने और समाज में नई दरारें पैदा करने का एक तरीका है? कर्नाटक सरकार को इस बिल के दूरगामी परिणामों पर गंभीरता से विचार करना होगा। शिक्षा, न्याय और समानता के नाम पर लाया गया कोई भी कानून समाज को बांटने वाला नहीं होना चाहिए। कर्नाटक रोहित वेमुला विधेयक का भविष्य क्या होगा, यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन इस पर छिड़ी बहस निश्चित रूप से राज्य की राजनीति और समाज पर गहरा असर डालेगी।
इस बिल से हिंदू छात्रों का होगा दमन!
यतनाल ने अपने पत्र में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया से स्पष्ट शब्दों में अनुरोध किया है कि वे इस 'दमनकारी' और 'अदूरदर्शी' बिल के साथ आगे न बढ़ें। उन्होंने इसे 'सामान्य श्रेणी के हिंदू छात्रों के संस्थागत भेदभाव' और 'SC, ST, OBC और मुस्लिम वोट बैंक के चयनात्मक तुष्टीकरण' का एक उदाहरण बताया है। उनके अनुसार, 'अप्रयुक्त हिंदू छात्र इस बिल का खामियाजा भुगतेंगे।'
यह पत्र कर्नाटक में सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार पर एक बड़ा राजनीतिक दबाव डालता है, खासकर आगामी चुनावों को देखते हुए। यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस विरोध पर कैसे प्रतिक्रिया देती है और क्या वह प्रस्तावित विधेयक में कोई बदलाव करती है।
सामाजिक तुष्टिकरण वाला विधेयक!
कर्नाटक रोहित वेमुला विधेयक, 2025 पर छिड़ी यह बहस केवल एक कानून का मामला नहीं है, बल्कि यह सामाजिक न्याय, समानता और राजनीतिक तुष्टीकरण के बीच की जटिल रेखाओं को उजागर करती है। यदि सरकार पारदर्शिता और निष्पक्षता के साथ काम करती है, तो यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि कोई भी कानून समाज के किसी भी वर्ग के खिलाफ भेदभाव न करे, बल्कि सभी के लिए समान अवसर और न्याय सुनिश्चित करे। इस बिल का परिणाम कर्नाटक के सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य पर गहरा प्रभाव डालेगा।
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