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करूर से कुंभ और सतारा तक... बेकाबू भगदड़ ने छीन ली हजारों जिंदगियां, क्या है इन हादसों की सच्चाई? | यंग भारत न्यूज Photograph: (YBN)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क ।तमिलनाडु के करूर में एक्टर विजय की रैली में 39 मौतें, महाकुंभ में 30 तीर्थयात्री लापता—2023 से 2025 तक भारत में भगदड़ हादसों ने 400 से अधिक जिंदगियां निगल लीं। आस्था, उत्साह और जश्न के पलों में क्यों फैल जाती है मौत की लहर? क्या सुधारों की कमी ही असली वजह है?
Young Bharat News की एक्प्लेनर रिपोर्ट उन दर्दनाक घटनाओं को उजागर करती है जो हमें झकझोर रही हैं। देश एक बार फिर भगदड़ की विभीषिका से कांप रहा है।
तमिलनाडु के करूर में तमिलगा वेत्री कझगम के प्रमुख एक्टर विजय की रैली के दौरान मची भगदड़ ने 39 मासूमों की जान ले ली। महिलाएं, बच्चे- सभी के चेहरे पर उत्साह था, लेकिन पलक झपकते ही मातम छा गया। यह सिर्फ एक हादसा नहीं, बल्कि एक पैटर्न है जो 2023 से 2025 तक फैला हुआ है। इस दौरान कम से कम 20 से अधिक ऐसी घटनाओं में 400 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी हैं।
क्यों नहीं रुकते ये हादसे? क्या भीड़ प्रबंधन की कमजोरी या जागरूकता की कमी हमें बार-बार ललकार रही है? आइए, इन त्रासदियों की गहराई में उतरें और उन सबकों को समझें जो हमें बचाने का वादा करते हैं।
करूर त्रासदी: राजनीतिक उत्साह का काला अध्याय कल्पना कीजिए, एक रैली जहां हजारों समर्थक अपने नेता के लिए जयकारे लगा रहे हों। लेकिन अचानक धक्का-मुक्की शुरू हो जाती है। तमिलनाडु के करूर जिले में 28 सितंबर 2025 को ठीक यही हुआ।
तमिलगा वेत्री कझगम के संस्थापक विजय- जिन्हें एक्टर के रूप में जाना जाता है- की पहली बड़ी राजनीतिक रैली में 50,000 से अधिक लोग जुटे थे। सुरक्षाबल की कमी और संकरी सड़कों ने हालात बिगाड़ दिए। 39 मौतें- जिनमें 15 महिलाएं और 8 बच्चे शामिल हैं- यह आंकड़ा अभी भी बढ़ सकता है।
घायलों की संख्या 100 से ऊपर है। स्थानीय अस्पतालों में हाहाकार मच गया। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, एक प्रत्यक्षदर्शी ने बताया कि "हम विजय सर के भाषण का इंतजार कर रहे थे, लेकिन भीड़ इतनी उन्मादी हो गई कि सांस लेना मुश्किल हो गया।"
विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसी रैलियों के लिए पूर्व-योजना जरूरी है, लेकिन यहां तो बेसिक इंतजाम भी नाकाफी साबित हुए। यह हादसा 2025 का तीसरा बड़ा भगदड़ कांड है। इससे पहले आईपीएल और महाकुंभ जैसी घटनाओं ने हमें झकझोर दिया था। लेकिन सवाल वही है- क्या हम सीख रहे हैं?
आईपीएल जश्न में छिपी मौत: बेंगलुरु का दर्द
क्रिकेट का जुनून भारत में किसी त्योहार से कम नहीं। लेकिन, 2025 के आईपीएल फाइनल में रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु की ऐतिहासिक जीत ने जश्न को त्रासदी में बदल दिया। 3 जून 2025 को चिन्नास्वामी स्टेडियम के बाहर विक्ट्री परेड के लिए लाखों प्रशंसक सड़कों पर उतर आए। संकरी गलियों और ट्रैफिक जाम ने भगदड़ को न्योता दे दिया। 11 मौतें, 50 से अधिक घायल।
ज्यादातर युवा थे- उनके चेहरों पर जीत की चमक थी, लेकिन सांसें थम गईं। पुलिस ने बाद में बताया कि आयोजकों ने अनुमति ली थी, लेकिन भीड़ का अनुमान गलत था।
एक मां ने रोते हुए कहा, "मेरा बेटा आरसीबी का दीवाना था। जीत का जश्न मनाने गया, लेकिन घर लौटा नहीं।" यह घटना खेल आयोजनों में भीड़ नियंत्रण की पोल खोलती है।
क्या स्टेडियमों के बाहर सुरक्षा दीवारें और सीसीटीवी निगरानी पर्याप्त नहीं? विशेषज्ञ सुझाते हैं कि डिजिटल टिकटिंग और वर्चुअल जश्न जैसे विकल्प अपनाए जाएं। लेकिन क्या हम इंतजार करेंगे अगली जीत तक?
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महाकुंभ का चीत्कार: आस्था में डूबी त्रासदी
आस्था का महाकुंभ- जहां करोड़ों लोग पवित्र स्नान के लिए आते हैं। लेकिन, 29 जनवरी 2025 को प्रयागराज के संगम तट पर मौनी अमावस्या के दिन यह पर्व दर्द में बदल गया। स्नान की होड़ में भगदड़ मच गई। 30 तीर्थयात्री मारे गए, 60 घायल। भीड़ का घनत्व इतना था कि सांस लेना असंभव हो गया।
एक बुजुर्ग तीर्थयात्री की डायरी से पता चला कि "मैं गंगा मां के दर्शन को जीवित लौटना चाहता था, लेकिन भीड़ ने मुझे कुचल दिया।" प्रशासन ने 5 लाख लोगों का अनुमान लगाया था, लेकिन वास्तव में दोगुने पहुंचे। पुलों की क्षमता और प्रवेश द्वारों की कमी ने बवाल काटा। धार्मिक आयोजनों में भगदड़ कोई नई बात नहीं। लेकिन महाकुंभ जैसे मेगा-इवेंट में एआई-आधारित भीड़ मॉनिटरिंग क्यों नहीं? सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी दिशानिर्देश दिए हैं, फिर भी चूक क्यों?
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रेलवे स्टेशन का हाहाकार: दिल्ली की सुबह का काला साया
रोजमर्रा की जिंदगी में रेलवे स्टेशन यात्रियों का द्वार होते हैं। लेकिन, 15 फरवरी 2025 को नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर प्लेटफॉर्म 14-15 के बीच यह द्वार मौत का बन गया। ट्रेन लेट होने की अफवाह से यात्रियों में अफरा-तफरी मच गई। 18 मौतें, 15 घायल। सुबह के व्यस्त समय में प्लेटफॉर्म पर 2,000 से अधिक लोग थे। सीढ़ियों पर धक्का-मुक्की से कई गिर पड़े।
एक परिवार ने अपना इकलौता बेटा खोया जो नौकरी के साक्षात्कार के लिए जा रहा था। रेल मंत्रालय ने जांच के आदेश दिए लेकिन मूल समस्या वही- ओवरक्राउडिंग और अपर्याप्त साइनेज। क्या हाई-स्पीड रेल नेटवर्क के दौर में स्टेशनों की पुरानी संरचना हमें मार रही है? आधुनिक सेंसर और आपातकालीन गेट्स की जरूरत साफ है।
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गोवा मंदिर और तिरुमाला: श्रद्धा का अपमान
धार्मिक उत्सवों में भगदड़ की श्रृंखला 2025 में और लंबी हो गई। 3 मई को गोवा के शिरगाओ गांव में श्री लैराई देवी मंदिर के वार्षिक मेले में 6 मौतें हुईं। 100 से अधिक घायल। संकरी सीढ़ियां और पुरानी मूर्ति दर्शन की प्रथा ने हादसे को जन्म दिया।
वहीं, 8 जनवरी को आंध्र प्रदेश के तिरुमाला हिल्स में वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर में वैकुंठ द्वार दर्शनम के टिकट के लिए भगदड़ में 6 श्रद्धालु मारे गए। दर्जनों घायल। टिकट काउंटर पर लंबी कतारें और सीमित स्टाफ ने हालात बिगाड़े। एक विधवा ने कहा, "भगवान के दर्शन के लिए आई थी, लेकिन मौत का सामना करना पड़ा।"
ये घटनाएं बताती हैं कि मंदिर प्रबंधन में डिजिटल बुकिंग और बैरियर सिस्टम क्यों जरूरी हैं।
सिनेमा का जादू, मौत का दर्द
हैदराबाद की घटना फिल्में हमें सपनों की दुनिया में ले जाती हैं, लेकिन 4 दिसंबर 2024 को हैदराबाद में 'पुष्पा 2' की स्क्रीनिंग ने एक महिला की जिंदगी छीन ली। थिएटर के बाहर फैनों की भगदड़ में 35 वर्षीय रीता की मौत हो गई। वह परिवार के साथ फिल्म देखने गई थीं। मल्टीप्लेक्सों में भीड़ प्रबंधन की कमी उजागर हुई। आयोजकों ने बाद में माफी मांगी, लेकिन क्या सिनेमा हॉल्स में क्षमता सीमा सख्ती से लागू होनी चाहिए?
2023-2025: भगदड़ हादसों का काला आंकड़ा
2023 से अब तक भारत में भगदड़ ने एक महामारी की तरह तबाही मचाई है। कुल 20 से अधिक दर्ज हादसे, 400 से ज्यादा मौतें।
यहां प्रमुख घटनाओं की सूची
31 मार्च 2023, इंदौर (मध्य प्रदेश): रामनवमी पर बावड़ी स्लैब ढहना- 36 मौतें। निर्माण की लापरवाही साफ।
2 जुलाई 2024, हाथरस (उत्तर प्रदेश): स्वयंभू बाबा के सत्संग में भगदड़-121 मौतें। अफवाहों ने आग में घी डाला।
4 दिसंबर 2024, हैदराबाद सिनेमा: फिल्म प्रीमियर- 1 मौत।
8 जनवरी 2025, तिरुमाला मंदिर: दर्शन टिकट विवाद- 6 मौतें।
29 जनवरी 2025, प्रयागराज महाकुंभ: स्नान होड़- 30 मौतें।
15 फरवरी 2025, नई दिल्ली रेलवे स्टेशन: प्लेटफॉर्म पर अफरा-तफरी-18 मौतें।
3 मई 2025, गोवा मंदिर: उत्सव में धक्का-मुक्की- 6 मौतें।
3 जून 2025, बेंगलुरु आईपीएल परेड: जश्न में भगदड़- 11 मौतें।
28 सितंबर 2025, करूर रैली: राजनीतिक उन्माद- 39 मौतें। ये आंकड़े सिर्फ संख्याएं नहीं, हर एक के पीछे परिवारों का दर्द है।
सरकारी रिपोर्ट्स के मुताबिक, 70 फीसदी हादसे धार्मिक आयोजनों में हुए 20 फीसदी परिवहन से जुड़े।
पुरानी त्रासदियां: सबक जो भूले नहीं
2023 से पहले भी भगदड़ ने हमें ललकारा है। 2003 के नासिक कुंभ से लेकर 2022 के वैष्णो देवी तक, ये हादसे चेतावनी थे।
25 जनवरी 2005, मंधारदेवी (सतारा, महाराष्ट्र): तीर्थयात्रा में 340+ मौतें- सबसे भयानक।
30 सितंबर 2008, चामुंडा देवी (जोधपुर): बम अफवाह- 250 मौतें।
3 अगस्त 2008, नैना देवी (हिमाचल): चट्टान अफवाह-162 मौतें।
13 अक्टूबर 2013, रतनगढ़ मंदिर (मध्य प्रदेश): नवरात्रि- 115 मौतें।
3 अक्टूबर 2014, पटना गांधी मैदान: दशहरा- 32 मौतें।
14 जुलाई 2015, गोदावरी तट: स्नान- 27 मौतें।
29 सितंबर 2017, मुंबई एलफिंस्टन: रेल पुल- 23 मौतें।
1 जनवरी 2022, वैष्णो देवी: भारी भीड़- 12 मौतें।
इनसे सीख: अफवाहें रोकने के लिए लाउडस्पीकर और SMS अलर्ट। लेकिन आज भी वही गलतियां। क्यों नहीं थमते ये हादसे?
विशेषज्ञों की पड़ताल भगदड़ सिर्फ संयोग नहीं, प्रणालीगत विफलता है।
प्रोफेसर अजय, आईआईटी दिल्ली के सिविल इंजीनियरिंग विभाग से, कहते हैं, "भीड़ का घनत्व 4 लोगों प्रति वर्ग मीटर से ऊपर होने पर खतरा बढ़ जाता है। भारत में आयोजनों में यह 10 तक पहुंच जाता है।"
अपर्याप्त योजना: अनुमानित संख्या से दोगुनी भीड़।
पुरानी इंफ्रास्ट्रक्चर: संकरी रास्ते, कमजोर पुल।
सुरक्षा की कमी: पुलिस और वॉलंटियर्स का अभाव।
अफवाहें: सोशल मीडिया ने इन्हें तेज कर दिया।
सरकार ने साल 2024 में 'भीड़ प्रबंधन गाइडलाइंस' जारी की, लेकिन लागू होना बाकी है। सुप्रीम कोर्ट ने भी हस्तक्षेप की मांग की है।
क्या समय आ गया है केंद्रीय कानून का? कैसे बचाएं जिंदगियां? ये त्रासदियां हमें मजबूर करती हैं सोचने को- क्या हम आस्था और उत्साह को मौत की भेंट चढ़ाएंगे?
समाधान संभव है!
डिजिटल टूल्स: ऐप-बेस्ड रजिस्ट्रेशन और रीयल-टाइम भीड़ ट्रैकिंग।
इंफ्रास्ट्रक्चर अपग्रेड: चौड़ी सड़कें, मजबूत बैरियर।
जागरूकता अभियान: स्कूलों से शुरू होकर आयोजकों तक।
कठोर दंड: लापरवाही पर सजा।
एक सर्वे में 70 फीसदी लोगों ने कहा कि वे अब बड़े आयोजनों से डरते हैं। लेकिन उम्मीद बाकी है। अगर हम एकजुट हों, तो ये हादसे इतिहास बन सकते हैं।
करूर से सतारा तक, कुंभ से स्टेडियम तक- यह यात्रा दर्द की है, लेकिन अंत में सीख की। क्या हम सुनेंगे इस चीख को?
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