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Pahalgam Attack से टूटा भरोसा! अब कैसे लौटेगी जन्नत की चहलकदमी ?

पहलगाम आतंकी हमले के बाद कश्मीर में हिंदू पर्यटकों की संख्या में भारी गिरावट दर्ज की गई है। इससे राज्य की इकोनॉमी पर गहरा असर पड़ा है। होटल, टैक्सी, धार्मिक स्थल सब खाली हैं। क्या फिर लौटेगा भरोसा?

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Ajit Kumar Pandey
JAMMU KASHMIR TOURISM
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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने कश्मीर की वादियों का सन्नाटा गहरा कर दिया है। जहां पहले हिंदू श्रद्धालु और पर्यटक श्रद्धा और शांति की खोज में आते थे, अब वहां डर का माहौल है। घटनाओं ने न केवल इंसानी जिंदगियों को हिला दिया है, बल्कि कश्मीर की आर्थ‍िक रीढ़ भी चरमरा गई है। सैलानियों के लौटने से होटल, टैक्सी, गाइड, रेस्टोरेंट और छोटे कारोबार बंद होने की कगार पर हैं। अब सवाल है—क्या कश्मीर फिर से हिंदुस्तानी पर्यटकों का भरोसा जीत पाएगा?

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पहलगाम हमले के बाद जम्मू-कश्मीर में हिंदू पर्यटकों की संख्या में भारी गिरावट आई है। पिछले साल की तुलना में इस बार पर्यटक आंकड़ों में 65% तक की गिरावट दर्ज की गई है। होटल, टैक्सी, रेस्टोरेंट और धार्मिक स्थल सब प्रभावित हैं। उमर अब्दुल्ला ने खुद चिंता जताई है कि ये राज्य की अर्थव्यवस्था को गहरा झटका दे सकता है। अब सवाल है— क्या कश्मीर फिर से हिंदुस्तानियों का भरोसा जीत पाएगा?

पहलगाम हमले का टूरिज्म पर असर 

पहलगाम आतंकी हमला: इस साल की शुरुआत में पहलगाम में हुआ आतंकी हमला सिर्फ एक हमला नहीं था, ये एक संदेश था—डर का, असुरक्षा का। श्रद्धालु और पर्यटक जो अमरनाथ यात्रा और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जम्मू-कश्मीर आते थे, अब अपने प्लान रद्द कर रहे हैं। हिंदू परिवारों में खासतौर पर डर गहरा गया है।

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कश्मीर टूरिज्म की हालत: पहले 6 महीने में कश्मीर में करीब 12 लाख देशी और 1.5 लाख विदेशी पर्यटक आए थे। औसतन एक पर्यटक लगभग ₹5,000 प्रतिदिन खर्च करता था। यानी इस दौरान राज्य को लगभग ₹650 करोड़ की आमदनी हुई थी। लेकिन, हमले के बाद 2025 में यही आंकड़े गिरकर लगभग 3 लाख देशी और 35,000 विदेशी पर्यटकों तक सिमट गए हैं।

उमर अब्दुल्ला की चिंता: मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने एक बयान में कहा कि, "जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था पर्यटकों पर निर्भर है। अब स्थिति गंभीर हो गई है।" उन्होंने सुरक्षा बलों से अपील की है कि वे राज्य में सुरक्षा का भरोसा फिर से बहाल करें।

आम लोगों पर असर – रोज़गार पर पड़ा सीधा वार

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होटल और टैक्सी सेक्टर का संकट: पिछले साल जो होटल 90% ऑक्युपेंसी पर थे, अब खाली पड़े हैं। टैक्सी ड्राइवर जो रोज़ ₹1,000 से ₹2,000 कमाते थे, आज सड़कों पर सवारी के इंतजार में खड़े हैं।

स्थानीय व्यापारियों की पीड़ा: स्थानीय गाइड, रेस्टोरेंट, ड्राई फ्रूट विक्रेता और अन्य छोटे कारोबारी अब कर्ज में डूबते जा रहे हैं। धार्मिक स्थलों पर चढ़ावे और दान की राशि में भी भारी कमी आई है।

क्या कश्मीर फिर से बनेगा सैलानियों की पसंद?

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सरकार को सुरक्षा व्यवस्था, डिजिटल प्रचार और धार्मिक पर्यटन को सुरक्षित बनाने के लिए तुरंत कदम उठाने होंगे। अमरनाथ यात्रा हो या गुलमर्ग की बर्फ, कश्मीर का पर्यटन तभी बचेगा जब डर की जगह भरोसा होगा।

क्या आप मानते हैं कि कश्मीर में टूरिज्म को बचाने के लिए सरकार को बड़ा कदम उठाना चाहिए? कमेंट कर अपनी राय दें। 

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