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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क। 'ऑपरेशन सिंदूर' के दौरान भारतीय लड़ाकू विमानों ने जो दम दिखाया, उसने पूरी दुनिया को हैरान कर दिया। दुश्मन की सीमा में घुसकर टारगेट को नष्ट करना और सुरक्षित लौट आना, इन विमानों की जबरदस्त क्षमता का प्रमाण था। लेकिन इन विमानों की असली ताकत उनके इंजन में छिपी होती है। भारत लंबे समय से एक ऐसे ही स्वदेशी इंजन को विकसित करने की कोशिश कर रहा है। इस प्रयास का नाम है- कावेरी इंजन प्रोजेक्ट। आइए जानते हैं कि कावेरी इंजन क्या है और क्यों इसकी चर्चा हो रही है।
कावेरी इंजन क्यों है चर्चा में?
भारत की रक्षा अनुसंधान एजेंसी DRDO ने स्वदेशी रूप से विकसित 'कावेरी जेट इंजन' के परीक्षण को एक नए मोड़ पर पहुंचा दिया है। रूस में इसके परीक्षण जारी हैं, जहां करीब 25 घंटे के फ्लाइट टेस्ट अभी बाकी हैं। यह इंजन खासतौर पर लंबी दूरी के अनमैन्ड कॉम्बैट एरियल व्हीकल (UCAV) के लिए तैयार किया गया है, जो पूरी तरह से भारत में निर्मित होगा। रक्षा अधिकारियों के मुताबिक, परीक्षण के लिए स्लॉट रूस के अधिकारियों द्वारा दिए जाने हैं। जैसे ही परीक्षण पूरा होता है, इस इंजन को UCAV परियोजना में शामिल करने की योजना है। इसी के चलते सोशल मीडिया पर #FundKaveriEngine जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं, जिनमें लोग इस प्रोजेक्ट को और अधिक फंडिंग देने की मांग कर रहे हैं।
कावेरी इंजन के खास फीचर्स क्या हैं?
- यह एक टर्बोफैन इंजन है, जो उच्च गति पर कम ईंधन खपत के साथ प्रभावशाली प्रदर्शन करता है- इसे खासतौर पर फाइटर जेट्स और ड्रोन्स के लिए उपयुक्त माना जाता है।
- इंजन इस समय 73 kN थ्रस्ट जनरेट करता है, जबकि इसका लक्ष्य 78 kN थ्रस्ट प्राप्त करना है। यह क्षमता इसे हल्के लड़ाकू विमानों जैसे तेजस के लिए उपयोगी बनाती है।
- इसका वजन 1180 किलो है और इसका डिज़ाइन ऊंची उड़ानों और तेज गति में भी बेहतर परफॉर्मेंस के लिए तैयार किया गया है।
- कावेरी इंजन को केवल तेजस तक सीमित नहीं रखा गया है- यह भविष्य में ड्रोन, ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट और सिविल एविएशन में भी इस्तेमाल हो सकता है।
- इसके चार वेरिएंट्स ने हाल ही में रूस में सफल परीक्षण पास किए हैं, जो इसकी बहुउद्देश्यीय क्षमता को दर्शाते हैं।
- इसमें हाई-प्रेशर कंप्रेसर, कम्बशन चेंबर और टरबाइन जैसी आधुनिक तकनीकें हैं, जो इसे अलग-अलग प्रकार के विमानों में उपयोग के लिए सक्षम बनाती हैं।
- कावेरी इंजन को GTRE (Gas Turbine Research Establishment) ने विकसित किया है और इसमें फ्रांस की Safran कंपनी ने तकनीकी सहयोग दिया है। खासकर, M88-4E कोर तकनीक की मदद से इंजन में 88.9 से 99 kN तक थ्रस्ट देने की क्षमता हासिल की जा सकती है।
क्या है कावेरी इंजन प्रोजेक्ट?
कावेरी इंजन प्रोजेक्ट की शुरुआत 1989 में हुई थी, जब भारत ने रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने की दिशा में कदम बढ़ाया। इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य एक ऐसा टर्बोफैन इंजन बनाना था, जो 81-83 किलो न्यूटन थ्रस्ट देने में सक्षम हो। इसे भारत के हल्के लड़ाकू विमान 'तेजस' में उपयोग के लिए डिज़ाइन किया गया था। इसे विकसित करने की जिम्मेदारी DRDO की एक प्रयोगशाला गैस टर्बाइन रिसर्च एस्टैब्लिशमेंट (GTRE) को दी गई। लेकिन यह कोई साधारण काम नहीं था। इसमें एयरोडायनामिक्स, धातु विज्ञान, एयरफ्लो मैनेजमेंट जैसी कई जटिल तकनीकी बाधाएं थीं। दुर्भाग्यवश, तकनीकी चुनौतियों, आधुनिक मैटेरियल की कमी और अपर्याप्त फंडिंग के चलते यह प्रोजेक्ट निर्धारित समय पर पूरा नहीं हो सका।
भारत को विदेशों पर निर्भर होना पड़ा
शुरुआती टेस्टिंग में कावेरी इंजन से वह प्रदर्शन नहीं मिला जिसकी उम्मीद थी। नतीजतन, तेजस में अमेरिकी GE F404 इंजन का उपयोग करना पड़ा। 1998 में भारत के परमाणु परीक्षणों के बाद कई पश्चिमी देशों ने भारत पर तकनीकी प्रतिबंध लगाए, जिससे स्थिति और जटिल हो गई। भारत को कुछ ऐसे महत्वपूर्ण मैटेरियल जैसे 'सिंगल क्रिस्टल ब्लेड' नहीं मिल पाए, और उन्नत टेस्टिंग के लिए GTRE को रूस के CIAM जैसी विदेशी संस्थाओं पर निर्भर रहना पड़ा।
अब क्या बदला है?
हाल के वर्षों में, जैसे ही भारत ने 'मेक इन इंडिया' और रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता पर जोर दिया, कावेरी प्रोजेक्ट ने दोबारा रफ्तार पकड़ी है। GTRE ने इसके ड्राई वर्जन (बिना आफ्टरबर्नर वाला इंजन) में कई तकनीकी दिक्कतों को सफलतापूर्वक दूर किया है। इस वर्जन ने कठिन परीक्षणों में शानदार प्रदर्शन दिखाया है। एक बड़ी विशेषता है- इसका हाई-कैपेसिटी फैन, जो सांप की तरह हवा को खींचकर इंजन तक लाने की क्षमता रखता है। यह विशेषता 13-टन वजनी अगली पीढ़ी के मानव रहित लड़ाकू विमान RPSA (Remotely Piloted Strike Aircraft) के लिए बेहद जरूरी है।
सोर्स कोड विवाद
हाल ही में भारत ने फ्रांस से राफेल लड़ाकू विमानों का 'सोर्स कोड' मांगा ताकि इन विमानों में स्वदेशी मिसाइलें जैसे 'अस्त्र' एकीकृत की जा सकें। लेकिन फ्रांस ने इसे साझा करने से मना कर दिया, क्योंकि यह उनकी बौद्धिक संपदा है। यहीं से कावेरी इंजन की अहमियत और भी बढ़ जाती है। अगर भारत 90 kN थ्रस्ट देने वाला संस्करण विकसित करने में सफल हो जाता है, तो यह भविष्य में राफेल जैसे विमानों के लिए भी एक स्वदेशी विकल्प बन सकता है।
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