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कौन हैं लेफ्टिनेंट Shashank Tiwari? जिन्होंने अपनी कुर्बानी देकर बचाई दोस्त की जान

सिक्किम में ऑपरेशनल गश्त के दौरान एक साथी जवान की जान बचाते हुए लेफ्टिनेंट शशांक तिवारी खुद शहीद हो गए। शशांक का सपना बचपन से ही सेना में जाने का था। आइए जानते हैं लेफ्टिनेंट शशांक तिवारी के बारे में। 

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Pratiksha Parashar
Lieutenant Shashank Tiwari
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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क। सिक्किम की बर्फीली ऊंचाइयों पर ऑपरेशनल गश्त के दौरान एक साथी जवान की जान बचाते हुए लेफ्टिनेंट शशांक तिवारी खुद शहीद हो गए। महज 23 साल की उम्र में इस जांबाज़ अफसर ने अपने प्राणों की आहुति देकर साबित कर दिया कि भारतीय सेना के जवान अपने साथियों और देश के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। शशांक का सपना बचपन से ही सेना में जाने का था। आइए जानते हैं लेफ्टिनेंट शशांक तिवारी के बारे में। 

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सिक्किम के दुर्गम क्षेत्र में बलिदान

सिक्किम की ऊंचाई पर स्थित एक कठिन इलाका है, जहां शशांक अपने साथियों के साथ ऑपरेशनल गश्त पर थे। अचानक एक जवान फिसलकर बर्फीली नदी में गिर गया। बहाव इतना तेज़ था कि वह जवान तेजी से बहने लगा। किसी भी क्षण मौत उसे निगल सकती थी, लेकिन शशांक ने एक पल भी गंवाए बिना छलांग लगा दी। शशांक की मदद से साथी की जान बच गई। उन्होंने साथी को जीवनदान तो दे दिया, मगर खुद वापिस नहीं लौटे।

परिवार की आंखों में गर्व और ग़म

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शशांक तिवारी उत्तर प्रदेश के अयोध्या के रहने वाले थे। शशांक, माता-पिता की इकलौती संतान थे। उनके पिता जंग बहादुर तिवारी मर्चेंट नेवी में अधिकारी हैं और वर्तमान में अमेरिका में कार्यरत हैं। मां नीता तिवारी की तबीयत अक्सर नाज़ुक रहती है। इस दुःखद खबर ने पूरे परिवार को तोड़ दिया है, लेकिन बेटे की बहादुरी पर उन्हें गर्व भी है। शशांक की बहन दुबई में रहती हैं। शशांक की शहीदी पर पूरे घर में शोक है। 

बचपन से ही था वर्दी का सपना

शशांक का सपना हमेशा से भारतीय सेना में जाने का था। अयोध्या के जिंगल बेल स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा और फिर जेबीए एकेडमी से इंटरमीडिएट पूरी कर उन्होंने 2019 में पहले ही प्रयास में NDA परीक्षा पास की। 17 दिसंबर 2024 को उन्होंने भारतीय सेना में अपना कर्तव्य निभाना शुरू किया, और पहली तैनाती मिली थी सिक्किम में। दोस्ती और बलिदानी की मिसाल कायम करते हुए शशांक मात्र 23 साल की उम्र में शहीद हो गए, लेकिन इतिहास में उनका नाम अमर रहेगा। 

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