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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः तमिलनाडु के गवर्नर आरएन रवि की मनमानी पर अंकुश लगाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसा फैसला दिया था जिसने राष्ट्रपति को भी झुंझला दिया था। ये फैसला गैर बीजेपी सरकारों को संजीवनी देने वाला था, क्योंकि गवर्नर असेंबली से पारित बिलों पर कुंडली मारकर बैठे थे और सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर तय समय सीमा में गवर्नर और राष्ट्रपति सरकार के बिलों पर फैसला नहीं करते हैं तो सरकार के बिलों को मंजूर माना जाएगा। लेकिन अब तमिलनाडु हाईकोर्ट ने एक ऐसा स्टे दिया है जिससे सुप्रीम कोर्ट के फैसले को भी दरकिनार कर दिया। bjp tamil nadu | Judiciary | Indian Judiciary
मद्रास HC बोला- सुप्रीम कोर्ट ने हमें नहीं रोका है
स्टे से हाईकोर्ट ने गवर्नरों को संजीवनी दे दी। हाईकोर्ट के फैसले में खास बात ये है कि उसने असेंबली से पारित बिलों पर शाम सात बजे स्टे दिया। यानि कोर्ट की रोजाना की कार्यवाही खत्म होने के बाद। सुनवाई वर्चुअल मोड पर हो रही थी पर जज ने फैसला सुनाने से पहले अपने माइक को आफ कर लिया। सरकार के वकीलों को सुनाई ही नहीं पड़ा कि जज फैसले में क्या बोल रहे हैं। सरकार के वकील लगातार दरख्वास्त करते रहे कि मामले को गुरुवार तक मुल्तवी कर दीजिए, क्योंकि मसला सीजेआई के पास है। पर जजों ने उनकी एक ना सुनी। हाईकोर्ट ने उनकी दलीलों पर कहा कि गवर्नर और राष्ट्रपति को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला दिया था उसमें हाईकोर्ट्स को इस तरह मामले पर विचार करने से रोकने के लिए कोई स्थगन आदेश पारित नहीं किया गया था। लिहाजा हम सुनवाई करने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र हैं।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक सरकार ने लिए थे फैसले
यह आदेश भाजपा नेता के वेंकटचलपति की याचिका पर पारित किया गया। उन्होंने राज्यपालों की शक्तियों पर सर्वोच्च न्यायालय के हालिया फैसले के बाद राज्यपाल की तरफ से पारित माने गए आठ राज्य संशोधनों को चुनौती देने के लिए एक जनहित याचिका दायर की थी। तमिलनाडु सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के आधार पर आधिकारिक राजपत्र में दस राज्य अधिनियमों को अधिसूचित किया था, जिसमें कहा गया था कि इन कानूनों को राज्यपाल आरएन रवि की तरफ से अनुमोदित माना गया है, क्योंकि वो सुप्रीम कोर्ट ने जो समय सीमा निर्धारित की थी वो खत्म हो चुकी है। भारत में यह किसी सरकार के तरफ से राज्यपाल या राष्ट्रपति की सहमति के बिना किसी कानून को लागू करने का पहला ऐसा उदाहरण था, जो संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के आधार पर कार्य कर रहा था।
बीजेपी नेता ने सरकार की अधिसूचना को दी थी चुनौती
हाईकोर्ट में दायर याचिका में तमिलनाडु के विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति से संबंधित प्रावधानों के संबंध में कुलपति शब्द को सरकार से तब्दील करने के फैसले को चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि ऐसे संशोधनों को शून्य घोषित किया जाना चाहिए। इन संशोधनों को पारित घोषित करने वाली राजपत्र अधिसूचना को भी तमिलनाडु विधानसभा नियमों का उल्लंघन करने के रूप में चुनौती दी गई है। बीजेपी नेता ने तर्क दिया कि संशोधन स्पष्ट रूप से मनमाने थे। उन्होंने कहा कि यह मामला शिक्षा से संबंधित है और ऐसे मामलों में राजनीति से ऊपर की अथारिटी को फैसला करना चाहिए।
स्टे से अधिसूचना पर लगी रोक, गवर्नर की बहाल हुई शक्तियां
जस्टिस जीआर स्वामीनाथन और जस्टिस वी लक्ष्मीनारायणन की वेकेशन बेंच ने कहा कि वो ये फैसला कानूनी तर्कों को ध्यान में रखकर ले रहा है। ऐसा इस वजह से जरूरी है क्योंकि उसे लगता है कि इससे गवर्नर की शक्तियों को राज्य गलत तरीके से रौंद रहा है। हाईकोर्ट ने ये फैसला सुनाने के लिए शाम 7 बजे के बाद का वक्त चुना, क्योंकि तब राज्य उनके फैसले को चुनौती नहीं दे सकती थी। जजों ने फैसला सुनाते वक्त माइक भी आफ कर लिए। स्टालिन सरकार की तरफ से पेश वकील गुहार लगाते रहे कि उनको कुछ सुनाई नहीं दे रहा है, जजों का कहना था कि फैसला अपलोड कर दिया जाएगा। आप उसे आनलाइन पढ़ सकते हैं। स्टे से तमिलनाडु सरकार के अधिसूचित संशोधनों के क्रियान्वयन पर रोक लग गई है, जिसके तहत कुलपतियों की नियुक्ति का अधिकार राज्यपाल से लेकर राज्य सरकार को सौंप दिया गया था।
सरकार के वकीलों ने दिया सीजेआई का भी हवाला पर नहीं माना HC
स्टालिन सरकार की तरफ से पेश एडवोकेट जनरल पीएस रमन ने कहा कि इससे जुड़ा मामला पहले से ही सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। राज्य सरकार ने वेंकटचलपति की जनहित याचिका को शीर्ष अदालत में स्थानांतरित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। मामले का उल्लेख हाल ही में सीजेआई के समक्ष भी किया गया था। विल्सन ने कहा कि इस मामले को एक या दो दिन में सुप्रीम कोर्ट में सूचीबद्ध किए जाने की संभावना है। ऐसे में उन्होंने हाईकोर्ट से फिलहाल कोई आदेश पारित न करने का आग्रह किया। जब बेंच ने संकेत दिया कि वह आज मामले की सुनवाई जारी रखेगी तो विल्सन ने गुरुवार तक के लिए स्थगन मांगा। लेकिन हाईकोर्ट की वेकेशन बेंच ने उनकी एक ना सुनी और सरकार की अधिसूचना पर स्टे लगा दिया।