नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क ।
प्रयागराज महाकुंभ मेले का समापन तो हो गया मगर संगम क्षेत्र के पानी की गुणवत्ता को लेकर खड़ा हुआ विवाद अब थमने का नाम नहीं ले रहा है। संगम के पानी की गुणवत्ता पर अब तक तीन रिपोर्ट सामने आ चुकी है। जिसमें दो रिपोर्ट तो केंद्र और यूपी सरकार की है। तीसरी रिपोर्ट में एक पद्मश्री पुरस्कार वैज्ञानिक ने संगम के पानी की गुणवत्ता पर बड़ा दावा किया है। उधर, केंद्र के अधीन एनजीटी और यूपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड आमने सामने आ गए हैं। क्योंकि, एनजीटी ने यूपीपीसीबी पर तल्ख टिप्पणी करते हुए नई रिपोर्ट की मांग की है। आइए देखते हैं पूरी रिपोर्ट
दरअसल, प्रयागराज महाकुंभ 2025 के दौरान संगम क्षेत्र के पानी को लेकर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने तीन फरवरी को एनजीटी यानि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को एक रिपोर्ट सौंपी थी। रिपोर्ट में दावा किया गया था कि गंगा-यमुना के पानी में तय मानक से कई गुना ज़्यादा फ़ीकल कोलीफ़ॉर्म बैक्टीरिया(मल-मूत्र युक्त पानी) हैं।
इस रिपोर्ट के कुछ दिन बाद ही यानि 18 फरवरी को उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने एनजीटी को एक नई रिपोर्ट सौंपी जिसमें सीपीसीबी की रिपोर्ट को ख़ारिज कर दिया गया।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आमने सामने आने के बाद एनजीटी ने यूपीपीसीबी की रिपोर्ट पर गंभीर और तल्ख टिप्पणी करते हुए फिर से नई रिपोर्ट की मांग की है। अब इस पूरे मामले पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल 28 फरवरी को सुनवाई करेगा।
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पद्मश्री वैज्ञानिक डॉ. अजय कुमार सोनकर बोले...
अभी ये मामला चल ही रहा था कि मिसाइल मैन एपीजे अब्दुल कलाम के साथ वैज्ञानिक विमर्श करने वाले पद्मश्री वैज्ञानिक डॉ. अजय कुमार सोनकर ने अपनी प्रयोगशाला में यह सिद्ध कर दिया है कि गंगा का जल न केवल स्नान योग्य है, बल्कि अल्कलाइन वाटर जैसा शुद्ध है। डॉक्टर सोनकर ने अपने सामने गंगा जल लेकर प्रयोगशाला में जांचने की खुली चुनौती भी दी है।
डॉ सोनकर ने दावा किया है कि जिसे जरा भी संदेह हो, वह मेरे सामने गंगा जल लेकर आए और प्रयोगशाला में जांचकर संतुष्ट हो जाए। वैज्ञानिक डॉ. सोनकर के शोध ने इस दावे को पूरी तरह गलत साबित कर दिया है। उन्होंने कहा कि गंगा जल की अम्लीयता (पीएच) सामान्य से बेहतर है। उसमें किसी भी प्रकार की दुर्गंध या जीवाणु वृद्धि नहीं पाई गई। विभिन्न घाटों पर लिए गए सैंपल को प्रयोगशाला में 8.4 से लेकर 8.6 तक पीएच स्तर का पाया गया है। यह काफी बेहतर माना गया है।
अब देखना यह है कि यूपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड अपने नई रिपोर्ट में एनजीटी को क्या जानकारी देता है साथ ही यह देखना दिलचस्प होगा कि एनजीटी की सुनवाई में क्या कार्रवाई होती है।