Advertisment

Maharashtra News : हिंदी अनिवार्य होगी या छिड़ेगा नया विवाद? जानिए — सपा अध्यक्ष अबू आज़मी ने क्यों उठाई यह मांग?

महाराष्ट्र में स्कूलों में हिंदी को तीसरी अनिवार्य भाषा बनाने पर बहस छिड़ी। अबू आज़मी ने इसे राष्ट्रभाषा बनाने की वकालत की। जानें, यह फैसला छात्रों पर क्या असर डालेगा और क्यों इसे लेकर राजनीतिक गहमागहमी तेज है।

author-image
Ajit Kumar Pandey
एडिट
Maharashtra News : हिंदी अनिवार्य होगी या छिड़ेगा नया विवाद? जानिए — सपा अध्यक्ष अबू आज़मी क्यों उठाई यह मांग? | यंग भारत न्यूज

Maharashtra News : हिंदी अनिवार्य होगी या छिड़ेगा नया विवाद? जानिए — सपा अध्यक्ष अबू आज़मी ने क्यों उठाई यह मांग? | यंग भारत न्यूज

Listen to this article
0.75x 1x 1.5x
00:00 / 00:00

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । महाराष्ट्र की शिक्षा नीति में एक बड़ा बदलाव प्रस्तावित है – स्कूलों में हिंदी को तीसरी अनिवार्य भाषा बनाने की चर्चा गर्म है। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अबू आज़मी ने इस कदम का पुरजोर समर्थन करते हुए कहा है कि मराठी पहली और अंग्रेजी दूसरी भाषा है, लेकिन हिंदी को तीसरी अनिवार्य भाषा बनाना समय की मांग है। उनका मानना है कि हिंदी को राष्ट्रभाषा घोषित किया जाना चाहिए ताकि कश्मीर से कन्याकुमारी तक यह बोली जा सके। इस मुद्दे ने राज्य में एक नई बहस छेड़ दी है कि क्या यह फैसला छात्रों के भविष्य और भाषाई विविधता के लिए सही होगा।

Advertisment

हाल ही में महाराष्ट्र की शिक्षा नीति में एक संभावित बदलाव को लेकर सियासी गलियारों से लेकर आम लोगों तक में हलचल मची हुई है। चर्चा इस बात की है कि क्या स्कूलों में हिंदी को तीसरी अनिवार्य भाषा के तौर पर लागू किया जाएगा। इस मुद्दे को हवा दी है समाजवादी पार्टी के महाराष्ट्र अध्यक्ष अबू आज़मी ने, जिन्होंने इस प्रस्ताव का खुलकर समर्थन किया है। उनके बयान ने एक बार फिर भाषा को लेकर एक नई बहस छेड़ दी है, जिसकी गूंज पूरे देश में सुनाई दे रही है।

अबू आज़मी का बेबाक बयान: हिंदी क्यों है ज़रूरी?

अबू आज़मी ने बड़े बेबाकी से अपनी राय रखी है। उनका कहना है कि महाराष्ट्र में मराठी हमारी मातृभाषा है, इसलिए वह पहली भाषा है। अंग्रेजी को उन्होंने 'गुलामों की भाषा' बताया और कहा कि लोग इसके पीछे भागते हैं, इसलिए यह दूसरी भाषा बन गई है। लेकिन आज़मी जोर देकर कहते हैं कि तीसरी भाषा हिंदी ही होनी चाहिए। उनका तर्क है कि संसद में एक समिति है जो पूरे देश में हिंदी को बढ़ावा देने का काम करती है और केंद्र सरकार के सभी काम भी हिंदी में ही होते हैं। आज़मी का मानना है कि कुछ लोग इस मुद्दे पर राजनीति करना चाहते हैं, जबकि हिंदी को 100% राष्ट्रभाषा घोषित किया जाना चाहिए, ताकि यह कश्मीर से कन्याकुमारी तक बोली जा सके। उन्होंने सवाल उठाया, "अगर मैं असम जाता हूं, तो क्या मुझे असमिया सीखनी चाहिए?" उनका इशारा साफ है – हिंदी एक ऐसी कड़ी है जो पूरे भारत को जोड़ सकती है।

Advertisment

भाषा नीति और भावनात्मक जुड़ाव

भारत जैसे विविध संस्कृति वाले देश में भाषा हमेशा से एक संवेदनशील मुद्दा रही है। हर राज्य की अपनी भाषाई पहचान और गौरव है। महाराष्ट्र में मराठी भाषी लोगों का अपनी भाषा से गहरा भावनात्मक जुड़ाव है। ऐसे में हिंदी को अनिवार्य तीसरी भाषा बनाने का बात कई सवाल खड़े करती है। क्या यह फैसला क्षेत्रीय भाषाओं को कमजोर करेगा? क्या यह छात्रों पर अतिरिक्त बोझ डालेगा? या फिर यह राष्ट्रीय एकीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा?

Advertisment

शिक्षण व्यवस्था और छात्रों पर पड़ेगा प्रभाव

अगर यह प्रस्ताव लागू होता है, तो इसका सबसे सीधा असर छात्रों और शिक्षण व्यवस्था पर पड़ेगा। फिलहाल, महाराष्ट्र में कई स्कूल त्रि-भाषा फॉर्मूला अपनाते हैं, जिसमें मराठी, अंग्रेजी और एक तीसरी भारतीय भाषा (अक्सर हिंदी) शामिल होती है। लेकिन 'अनिवार्य' शब्द का जुड़ना एक अलग तस्वीर पेश करता है। कुछ शिक्षाविदों का मानना है कि इससे छात्रों को राष्ट्रीय स्तर पर संवाद करने और रोजगार के अवसर तलाशने में मदद मिलेगी। वहीं, कुछ अन्य का तर्क है कि इससे छात्रों पर पढ़ाई का अतिरिक्त बोझ बढ़ेगा, खासकर उन छात्रों के लिए जिनकी मातृभाषा हिंदी नहीं है।

राजनीतिक दांव-पेच और भाषाई ध्रुवीकरण

Advertisment

भाषा का मुद्दा अक्सर राजनीतिक दांव-पेंच का अखाड़ा रहा है। अबू आज़मी के बयान को लेकर भी महाराष्ट्र की राजनीति में हलचल मच गई है। कुछ दल इसे हिंदी थोपने की कोशिश बताकर इसका विरोध कर सकते हैं, जबकि कुछ अन्य दल राष्ट्रीय एकता के नाम पर इसका समर्थन कर सकते हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि यह मुद्दा महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में किस तरह से असर डालेगा। भाषाई ध्रुवीकरण हमेशा से एक आसान तरीका रहा है वोट बटोरने का, और इस मुद्दे पर भी ऐसा होने की पूरी संभावना है।

भारत के संविधान में कोई राष्ट्रभाषा नहीं है, बल्कि हिंदी को राजभाषा का दर्जा प्राप्त है। राष्ट्रभाषा का दर्जा देने की मांग लंबे समय से उठती रही है, लेकिन दक्षिण भारतीय राज्यों से इसके कड़े विरोध के चलते यह संभव नहीं हो पाया है। अबू आज़मी की मांग हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की है, जो निश्चित रूप से एक बड़ी चुनौती है। भाषाई विविधता भारत की पहचान है, और किसी एक भाषा को राष्ट्रभाषा घोषित करना कई लोगों को अपनी भाषाई पहचान पर हमला लग सकता है।

महाराष्ट्र सरकार इस प्रस्ताव पर क्या रुख अपनाती है, यह देखना बाकी है। शिक्षा मंत्री और मुख्यमंत्री इस मामले पर क्या बयान देते हैं, यह भी महत्वपूर्ण होगा। क्या सरकार इस मुद्दे पर आम लोगों और शिक्षाविदों की राय लेगी? क्या वे त्रि-भाषा फॉर्मूले को और मजबूत करेंगे, या वाकई हिंदी को अनिवार्य तीसरी भाषा बनाएंगे? यह आने वाला समय ही बताएगा। लेकिन एक बात तो तय है, यह मुद्दा अभी और गर्माएगा।

आपको क्या लगता है, महाराष्ट्र में हिंदी को तीसरी अनिवार्य भाषा बनाया जाना चाहिए? आपकी राय में यह छात्रों के भविष्य और देश की एकता पर क्या असर डालेगा? नीचे कमेंट करके अपनी बात ज़रूर रखें!

abu asim azmi news | maharashtra government |

maharashtra government samajwadi party abu asim azmi news Maharashtra
Advertisment
Advertisment