नई दिल्ली, आईएएनएस।
भारत हर साल 23 मार्च को शहीद दिवस मनाकर अपने वीर सपूतों भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के बलिदान को नमन करता है। 23 मार्च 1931 को ब्रिटिश हुकूमत ने इन तीनों क्रांतिकारियों को फांसी पर चढ़ा दिया था, लेकिन उनका संघर्ष और बलिदान आज भी हर भारतीय के दिल में जीवंत है।
क्रांतिकारी संघर्ष का अध्याय
भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ क्रांतिकारी रास्ता अपनाया और स्वतंत्रता की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भगत सिंह ने ब्रिटिश शासन की दमनकारी नीतियों के खिलाफ आवाज बुलंद की और उनके विचार युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत बने।लाहौर षड्यंत्र केस में अंग्रेज अधिकारी जॉन सांडर्स की हत्या और दिल्ली की सेंट्रल असेंबली में बम फेंकने की घटना ने ब्रिटिश सरकार को हिला दिया था। इसके बाद इन तीनों क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर फांसी की सजा सुनाई गई।
बलिदान जो प्रेरणा बन गया
भगत सिंह का मानना था कि "इंकलाब जिंदाबाद" केवल नारा नहीं, बल्कि बदलाव की नींव है। उनका संघर्ष सिर्फ स्वतंत्रता के लिए नहीं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन के लिए भी था। राजगुरु और सुखदेव ने भी अपनी जान की परवाह किए बिना इस क्रांति में योगदान दिया।
शहीद दिवस का महत्व
आज भी शहीद दिवस पर पूरे देश में कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जहां इन वीरों को श्रद्धांजलि दी जाती है। इनके बलिदान की गाथा देशभक्ति की भावना को मजबूत करती है और युवाओं को देश के लिए कुछ कर गुजरने की प्रेरणा देती है। इन तीनों शहीदों का बलिदान यह संदेश देता है कि आजादी की कीमत बहुत बड़ी होती है और उसे संजोकर रखना हमारी जिम्मेदारी है।