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'मी मराठी' की ललकार! क्या NEP के बहाने फिर भड़केगी भाषाई राजनीति?

महाराष्ट्र में 'मी मराठी' गूंज! विपक्ष ने शिक्षा नीति पर सरकार को घेरा। NEP 2020 के विवादित जीआर वापस हुए। भाषा और पहचान की लड़ाई ने सरकार को झुकने पर मजबूर किया। जानें क्यों मराठी मानुस का स्वाभिमान बना सियासी मुद्दा।

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Ajit Kumar Pandey
महाराष्ट्र के विपक्षी नेता 'मी मराठी' टोपी पहनकर मानसून सत्र में NEP 2020 के खिलाफ प्रदर्शन करते हुए | यंग भारत न्यूज

महाराष्ट्र विधानसभा के मानसून सत्र के दौरान 'मी मराठी' टोपियां पहने विपक्षी नेता, NEP 2020 के विरोध में प्रदर्शन करते हुए | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)

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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क ।महाराष्ट्र के सियासी गलियारों में इस वक्त शिक्षा और मराठी भाषा का मुद्दा गरमाया हुआ है। मानसून सत्र के दौरान विपक्षी नेताओं ने 'मी मराठी' (मैं मराठी हूं) टोपी पहनकर जोरदार प्रदर्शन किया। यह प्रदर्शन राज्य सरकार के दो ऐसे सरकारी आदेश (जीआर) वापस लेने के बाद हुआ, जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (NEP 2020) के तहत त्रि-भाषा फॉर्मूले के क्रियान्वयन से संबंधित थे। यह सिर्फ एक विरोध प्रदर्शन नहीं, बल्कि मराठी अस्मिता और भाषा के सम्मान की लड़ाई बन गई है।

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सरकार ने NEP 2020 के तहत जो जीआर जारी किए थे, उनमें कुछ प्रावधान ऐसे थे, जिनसे मराठी भाषा को लेकर चिंताएं बढ़ गई थीं। विपक्ष का आरोप था कि ये आदेश मराठी भाषा की प्राथमिकता को कमजोर कर सकते हैं, खासकर गैर-मराठी माध्यम के स्कूलों में। महाराष्ट्र जैसे राज्य में, जहां भाषा का प्रश्न भावनात्मक रूप से जुड़ा है, यह एक बड़ी सियासी चिंगारी बन गया।

महाराष्ट्र में त्रि-भाषा फार्मूले पर सियासी संग्राम

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विवाद की जड़: NEP 2020 में त्रि-भाषा फॉर्मूला लागू करना, लेकिन कुछ विशिष्ट प्रावधानों पर आपत्ति।

मुख्य चिंता: गैर-मराठी स्कूलों में मराठी के स्थान को लेकर असमंजस।

विपक्षी दलों का रुख: 'मी मराठी' टोपी पहनकर सरकार पर दबाव बनाना।

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यह सिर्फ अकादमिक बहस नहीं, बल्कि मराठी मानुस की भावनाओं से जुड़ा एक गहरा मुद्दा है।

विपक्ष के नेता, जिनमें प्रमुख रूप से राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) और उद्धव बालासाहेब ठाकरे गुट के नेता शामिल थे, विधान भवन की सीढ़ियों पर जमा हुए। उन्होंने 'मी मराठी' लिखी टोपियां पहन रखी थीं और जोर-जोर से सरकार विरोधी नारे लगा रहे थे। उनका स्पष्ट संदेश था कि मराठी भाषा के गौरव से कोई समझौता नहीं किया जाएगा। उनका कहना था कि सरकार को ऐसे फैसले लेते समय मराठी संस्कृति और मराठी भाषियों की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए।

महाराष्ट्र के शिक्षा मंत्री बोले...

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सरकार ने विपक्ष के बढ़ते दबाव और जनता की भावनाओं को समझते हुए आनन-फानन में उन दोनों जीआर को वापस लेने का फैसला किया। मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री ने स्पष्ट किया कि मराठी भाषा के महत्व को कम करने का उनका कोई इरादा नहीं था और अगर किसी प्रावधान से ऐसी भावना उत्पन्न हुई, तो उसे तुरंत ठीक किया जाएगा। यह दिखाता है कि महाराष्ट्र की राजनीति में भाषा और पहचान का मुद्दा कितना शक्तिशाली है।

सरकार का कदम: विवादित जीआर वापस लेना।

संदेश: मराठी भाषा के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता का प्रदर्शन।

सियासी परिणाम: विपक्ष की एकजुटता और सरकार पर दबाव बनाने में सफलता।

यह घटना दर्शाती है कि राष्ट्रीय नीतियों को राज्य स्तर पर लागू करते समय स्थानीय संवेदनशीलता का कितना ध्यान रखना चाहिए। मराठी भाषा का मुद्दा महाराष्ट्र में हमेशा से ही केंद्रीय रहा है, और कोई भी सरकार इसे नजरअंदाज करने का जोखिम नहीं उठा सकती। अब सरकार को NEP 2020 के प्रावधानों को इस तरह से लागू करना होगा, जिससे मराठी भाषा की स्थिति मजबूत हो और कोई भाषाई विवाद न उत्पन्न हो। यह महाराष्ट्र के शैक्षिक भविष्य के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ हो सकता है।

इस पूरे घटनाक्रम पर आपका नजरिया क्या है? क्या आपको लगता है कि सरकार ने सही फैसला लिया या यह विपक्ष की महज एक सियासी जीत थी? नीचे कमेंट सेक्शन में अपने विचार जरूर साझा करें! 

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