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मुंबई में हिंदी पर वार - राजनीति में बवाल : निशिकांत दुबे ने क्यों दी ठाकरे परिवार को चुनौती?

भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने मुंबई में भाषा विवाद पर ठाकरे परिवार को चुनौती दी। उन्होंने हिंदी भाषी लोगों के योगदान को उजागर करते हुए गरीबों को पीटने के बजाय मुकेश अंबानी जैसे उद्योगपतियों को निशाना बनाने की बात कही।

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Ajit Kumar Pandey
मुंबई में हिंदी पर वार - राजनीति में बवाल : निशिकांत दुबे ने क्यों दी ठाकरे परिवार को चुनौती? | यंग भारत न्यूज

मुंबई में हिंदी पर वार - राजनीति में बवाल : निशिकांत दुबे ने क्यों दी ठाकरे परिवार को चुनौती? | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)

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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । मुंबई में भाषा विवाद एक बार फिर गरमा गया है। आज गुरूवार 10 जुलाई 2025 को एक न्यूज एजेंसी के माध्यम से भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने ठाकरे परिवार पर तीखा हमला बोला है। उन्होंने मराठी भाषा के सम्मान के साथ-साथ हिंदी भाषी लोगों के योगदान पर जोर दिया, और गरीबों को पीटने के बजाय बड़े उद्योगपतियों को निशाना बनाने की चुनौती दी।

यह बयान महाराष्ट्र की राजनीति में नई हलचल पैदा कर सकता है। महाराष्ट्र हमेशा से अपनी सांस्कृतिक विविधता और भाषाओं के सम्मान के लिए जाना जाता है। लेकिन, जब बात राजनीति की आती है, तो भाषा अक्सर एक संवेदनशील मुद्दा बन जाती है। हाल ही में, भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने मुंबई में भाषा विवाद पर एक ऐसा बयान दिया है, जिसने ठाकरे परिवार को सीधे चुनौती दे दी है। उनके इस बयान ने एक बार फिर भाषा के नाम पर हो रही राजनीति पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

"मराठी के साथ हिंदी का भी सम्मान हो!"

निशिकांत दुबे ने अपनी बात स्पष्ट करते हुए कहा कि महाराष्ट्र का आजादी के आंदोलन में और देश की अर्थव्यवस्था में बहुत बड़ा योगदान है, जिसे कोई अस्वीकार नहीं कर सकता। उन्होंने मराठी भाषा के सम्मान को स्वीकार किया, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि कन्नड़, तमिल, तेलुगु जैसी भाषाओं की तरह हिंदी भाषा का भी सम्मान होना चाहिए। उनका मानना है कि जिस तरह दक्षिण भारत के लोग अपनी भाषा से प्यार करते हैं, उसी तरह बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश और राजस्थान के लोगों को भी अपनी भाषा, यानी हिंदी भाषा, से प्यार है।

यह सीधा हमला था उन लोगों पर जो भाषा के नाम पर भेदभाव करते हैं। दुबे ने जोर देकर कहा कि अगर ठाकरे परिवार भाषा के आधार पर किसी से मारपीट करता है, तो यह बर्दाश्त से बाहर होगा। उनका यह बयान महाराष्ट्र में हिंदी भाषी प्रवासियों की चिंताओं को सामने लाता है।

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"मुंबई के टैक्स में हमारा भी योगदान!"

दुबे ने ठाकरे परिवार पर अपनी बात को तोड़-मरोड़ कर पेश करने का आरोप लगाया। उन्होंने स्पष्ट किया कि महाराष्ट्र का देश की अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान है, और वे इसे स्वीकार करते हैं। लेकिन, उन्होंने यह भी जोड़ा कि मुंबई या महाराष्ट्र द्वारा दिए जाने वाले टैक्स में हिंदी भाषी लोगों का भी बड़ा योगदान है। उनका सीधा संदेश था कि यह योगदान केवल ठाकरे परिवार या मराठा समुदाय का नहीं है, बल्कि इसमें हर उस व्यक्ति का हिस्सा है जो मुंबई में रहता है और काम करता है।

यह एक महत्वपूर्ण बिंदु है, क्योंकि अक्सर महाराष्ट्र में रहने वाले गैर-मराठी भाषी लोगों को उनके योगदान के लिए पर्याप्त मान्यता नहीं मिलती। दुबे ने इस मुद्दे को उठाकर एक बड़ी बहस छेड़ दी है।

"गरीबों को क्यों पीटते हो? हिम्मत है तो अंबानी के पास जाओ!"

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इस बयान का सबसे तीखा और ध्यान खींचने वाला हिस्सा वह था जब दुबे ने ठाकरे परिवार को चुनौती दी। उन्होंने कहा, "आप गरीबों को पीटते हैं, लेकिन मुकेश अंबानी वहीं रहते हैं, वो मराठी बहुत कम बोलते हैं। अगर हिम्मत है तो आप उनके पास जाओ।" उन्होंने आगे कहा, "माहिम में मुस्लिम आबादी ज्यादा है, अगर हिम्मत है तो वहां जाओ। एसबीआई के चेयरमैन मराठी नहीं बोलते, उन्हें मारने की कोशिश करो।"

यह बयान उन लोगों के मुंह पर करारा तमाचा था जो अपनी राजनीति चमकाने के लिए अक्सर कमजोर और गरीब लोगों को निशाना बनाते हैं। दुबे का तर्क है कि जो गरीब आदमी कमाने-खाने महाराष्ट्र गया है और जिसका वहां की अर्थव्यवस्था में योगदान है, उसे डराना-धमकाना गलत है। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर मध्य प्रदेश, राजस्थानी, बंगाल, ओडिशा, गुजरात जैसे राज्यों के लोगों के खिलाफ माहौल बनाकर राजनीति करने की कोशिश की जाएगी, तो ऐसी राजनीति सफल नहीं होगी।

निशिकांत दुबे का यह बयान केवल एक भाषाई विवाद से कहीं बढ़कर है। यह उन राजनीतिक दलों को चुनौती है जो क्षेत्रीय पहचान और भाषा के नाम पर विभाजनकारी राजनीति करते हैं। यह मुंबई जैसे महानगरीय शहरों में रहने वाले प्रवासी मजदूरों और पेशेवरों के योगदान को रेखांकित करता है। यह बयान न केवल मुंबई में भाषा विवाद को फिर से सुर्खियों में लाया है, बल्कि इसने महाराष्ट्र की राजनीति और क्षेत्रीय बनाम राष्ट्रीय पहचान की बहस को भी तेज कर दिया है।

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यह देखना दिलचस्प होगा कि ठाकरे परिवार और अन्य क्षेत्रीय दल इस बयान पर क्या प्रतिक्रिया देते हैं। क्या यह बयान महाराष्ट्र में आगामी चुनावों में एक महत्वपूर्ण मुद्दा बनेगा? क्या यह हिंदी भाषी लोगों को एक साथ लाएगा और उन्हें अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाने के लिए प्रेरित करेगा? इन सवालों के जवाब आने वाले समय में मिलेंगे। 

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