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Photograph: (Google)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः तेलंगाना हाईकोर्ट ने मंगलवार को माना कि एक मुस्लिम पत्नी के पास खुला के माध्यम से अपनी शादी को रद्द करने का पूरा अधिकार है। इसके लिए पति की सहमति की जरूरत नहीं है। अदालत ने मोहम्मद आरिफ अली बनाम अफसरुन्निसा के मामले में ये टिप्पणी की। खुला मुसलमानों में तलाक लेने का एक तरीका है, जिसे पत्नी द्वारा तब शुरू किया जाता है जब वह अपनी शादी को भविष्य में जारी नहीं रखना चाहती है।
हाईकोर्ट एक मुस्लिम व्यक्ति द्वारा दायर अपील पर विचार कर रहा था, जिसे उसकी पत्नी ने तलाक दे दिया था। उसने वैवाहिक विवादों के समाधान के लिए एक गैर सरकारी संगठन सदा-ए-हक शरई परिषद द्वारा उसे जारी किए गए तलाक प्रमाणपत्र के खिलाफ अदालत में अर्जी लगाई थी। पति ने जब खुला से सहमत होने से इनकार किया तब उसकी पत्नी ने परिषद से संपर्क साधा था।
तेलंगाना हाईकोर्ट बोला- मुफ्ती की भूमिका केवल सलाहकार की
जस्टिस मौसमी भट्टाचार्य और बीआर मधुसूदन राव की बेंच ने माना कि तलाक पर अंतिम मुहर लगाने के लिए पत्नी को मुफ्ती या दार-उल-कजा से खुलानामा हासिल करना जरूरी नहीं है, क्योंकि मुफ्ती की राय केवल सलाहकार प्रकृति की होती है। जस्टिसेज ने कहा कि मुस्लिम पत्नी का खुला मांगने का पूरा अधिकार है और इसके लिए पति की स्वीकृति की आवश्यकता नहीं है। कोर्ट की भूमिका विवाह की समाप्ति पर कानूनी मुहर लगाने तक ही है।
कुरान की आयतों को पढ़ने के बाद अदालत ने दिया फैसला
हाईकोर्ट ने खुला की अवधारणा पर कुरान की आयतों को पढ़ा और इस विषय पर मौजूद दस्तावेजों की भी जांच की। जजों ने कहा कि कुरान के अध्याय 2 में आयत 228 और 229 में पत्नी को अपने पति के साथ विवाह को रद्द करने का पूरा अधिकार दिया गया है। खुला की वैधता के लिए पति की सहमति कोई पूर्व शर्त नहीं है। अदालत ने यह भी कहा कि इस्लामी कानून ऐसी कोई प्रक्रिया निर्धारित नहीं करता है, जिसमें पति पत्नी की खुला की मांग को खारिज कर देता है। भारत की तमाम अदालतों के विभिन्न निर्णयों की जांच करने के बाद हाईकोर्ट ने पाया कि खुला मुस्लिम पत्नी द्वारा शुरू किया गया एक बिना किसी गलती के तलाक है। खुला की मांग करने पर पति के पास मांग को अस्वीकार करने का विकल्प नहीं होता है, सिवाय इसके कि वह मेहर या उसके एक हिस्से की वापसी के लिए बातचीत करे। Indian Judiciary
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