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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क:पृथ्वी की सतह की बारीकी से निगरानी और प्राकृतिक आपदाओं जैसे भूकंप, भूस्खलन, ग्लेशियरों के बदलाव और पर्यावरणीय परिवर्तन का सटीक पूर्वानुमान लगाने में सक्षम उपग्रह को जुलाई के अंत तक लॉन्च किया जाएगा। इस महत्वाकांक्षी परियोजना को भारत के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से GSLV रॉकेट के माध्यम से अंतरिक्ष में भेजा जाएगा।
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दुनिया का सबसे महंगा पृथ्वी-अवलोकन उपग्रह
करीब 1.5 अरब डॉलर (12,500 करोड़ रुपये) की लागत से बना NISAR अब तक का सबसे महंगा पृथ्वी-इमेजिंग उपग्रह होगा। यह उपग्रह दोहरे बैंड वाले सिंथेटिक एपर्चर रडार (SAR) – S-बैंड (भारत द्वारा विकसित) और L-बैंड (NASA द्वारा विकसित)–के माध्यम से पृथ्वी की सतह का लगातार निरीक्षण करेगा।
भारत-अमेरिका की 12 साल पुरानी साझेदारी का परिणाम
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इस उपग्रह के विकास के लिए ISRO की अहमदाबाद स्थित स्पेस एप्लिकेशन सेंटर (SAC) और NASA की कैलिफोर्निया स्थित जेट प्रपल्शन लेबोरेटरी (JPL) के बीच वर्ष 2012 में साझेदारी की शुरुआत हुई थी। 2014 में दोनों एजेंसियों ने आधिकारिक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जिसके तहत भारत ने S-बैंड रडार और अमेरिका ने L-बैंड रडार विकसित किया। SAC के निदेशक डॉ. निलेश देसाई ने बताया कि SAC ने भारत का पहला एक्टिव रडार वर्ष 2012 में लॉन्च किया था, जो साढ़े चार साल तक काम करता रहा। उसी अनुभव के आधार पर NASA और JPL ने ISRO से साझेदारी का प्रस्ताव रखा। उन्होंने कहा, “NISAR में आधुनिक स्वीप SAR तकनीक का उपयोग किया गया है, जो हाई रेजोल्यूशन और वाइड कवरेज दोनों को एक साथ संभव बनाती है, जो पारंपरिक SAR तकनीक में एक बड़ी चुनौती थी।
लॉन्च के बाद 1-3 महीनों में मिलना शुरू होगा डेटा
डॉ. देसाई ने यह भी बताया कि उपग्रह लॉन्च होने के बाद एक से तीन महीनों के भीतर वैज्ञानिक डेटा मिलने लगेगा, जिससे भूकंपीय गतिविधियों, बर्फ की मोटाई में बदलाव और भूस्खलनों का विश्लेषण सटीकता से किया जा सकेगा। इस मिशन को लेकर न सिर्फ ISRO और NASA, बल्कि दुनियाभर के वैज्ञानिकों में भारी उत्साह है। NISAR से प्राप्त होने वाला डेटा जलवायु परिवर्तन, कृषि, वनों की स्थिति और पर्यावरणीय आपात स्थितियों के लिए नीति निर्धारण में भी अहम भूमिका निभाएगा।
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