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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । यह सिर्फ एक नक्शा नहीं, बल्कि देश की 75% आबादी को मिला एक भयानक चेतावनी संदेश है। भारत सरकार ने 'ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड्स' BIS के माध्यम से भूकंप जोखिम का नया सीस्मिक जोनेशन मैप जारी किया है, जिसने पुराने सुरक्षा मानकों की पोल खोल दी है। हिमालयी आर्क में 200 साल से 'लॉक' हो चुकी टेक्टॉनिक प्लेट्स किसी भी पल 8+ तीव्रता का महाभूकंप ला सकती हैं। यंग भारत न्यूज के इस Explainer में जानें नए नक्शे में क्या बदला है और क्यों पूरा देश अब 'अल्ट्रा-हाई रिस्क' जोन VI के साये में है।
भारत अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण हमेशा से भूकंप के जोखिम वाले देशों में रहा है। लेकिन अब जो वैज्ञानिक तथ्य सामने आए हैं, वे किसी भी पुरानी चेतावनी से कहीं ज्यादा खतरनाक हैं। भारत सरकार की संस्था ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड्स BIS ने 10 साल की गहन रिसर्च के बाद, प्रोबेबिलिस्टिक सीस्मिक हेजर्ड असेसमेंट PSHA पद्धति का उपयोग करके देश का नया भूकंप जोखिम नक्शा जारी किया है। यह 'IS 1893 Part 2025' कोड के तहत लागू हो चुका है। इस नए नक्शे ने न सिर्फ देश के 61% भूभाग को मध्यम से सबसे ऊंचे खतरे वाले जोन में डाल दिया है, बल्कि सबसे बड़ा डर हिमालयी आर्क को लेकर है।
कश्मीर से अरुणाचल तक, पूरा पहाड़ी इलाका अब 'अल्ट्रा-हाई रिस्क' जोन VI घोषित किया गया है। वजह? नीचे दबी इंडियन और यूरेशियन प्लेट्स 200 सालों से 'लॉक' हो चुकी हैं। यह तनाव इतना बड़ा है कि जब भी यह लॉक खुलेगा, 8 या उससे अधिक तीव्रता का विनाशकारी भूकंप आना तय है। और दुर्भाग्यपूर्ण सत्य यह है कि देश की लगभग 75% आबादी अब इसी बढ़े हुए खतरे वाले इलाके में रह रही है। क्या आपके शहर पर भी मंडरा रहा है यह अनदेखा खतरा? आगे समझिए, ये नए ज़ोन क्या हैं, आपका इलाका कितना सुरक्षित है, और क्यों पुराने भूकंप रिकॉर्ड अब पर्याप्त नहीं रहे।
सवाल 1- भारत का नया भूकंप जोखिम नक्शा क्या है?
भारत का नया भूकंप जोखिम नक्शा, जिसे आधिकारिक तौर पर 'सीस्मिक जोनेशन मैप' कहा जाता है, ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड्स BIS द्वारा जारी किया गया है। यह नक्शा देश को भूकंप के संभावित खतरे के आधार पर अलग-अलग जोखिम जोन्स में विभाजित करता है। इसका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि देश में बनने वाली हर नई बिल्डिंग, ब्रिज, हाईवे और यहां तक कि छोटे कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट भी भूकंप-रोधी हों। याद रखें यह 2002 के पुराने नक्शे का एक ज्यादा सटीक और वैज्ञानिक रूप से उन्नत संस्करण है।
नया कोड 'IS 1893 Part 2025' जनवरी 2025 से लागू है, जिसका अर्थ है कि अब हर इंजीनियर को इसी नक्शे के हिसाब से निर्माण करना होगा।
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सवाल 2- पुराने नक्शे के मुकाबले नया नक्शा कितना अलग है?
पुराने नक्शे में भारत को चार मुख्य भूकंपीय जोन्स में बांटा गया था जोन II, III, IV, और V, जिसमें जोन I को जोन II में मिला दिया गया था।
| पुराना जोन | खतरे का स्तर | नया जोन खतरे का स्तर |
| जोन II | कम खतरा | - |
| जोन II | कम खतरा | - |
| जोन III | मध्यम खतरा | - |
| जोन III | मध्यम खतरा | - |
| जोन IV | - | ज्यादा खतरा |
| जोन IV | - | ज्यादा खतरा |
| जोन V | - | सबसे ज्यादा खतरा |
| जोन VI | - | अल्ट्रा-हाई रिस्क सबसे बड़ा बदलाव |
जोन V का पुनर्गठन: सबसे ऊंचे खतरे वाले जोन V को अब और सख्ती से परिभाषित किया गया है, और हिमालयी क्षेत्रों के लिए इसे एक तरह से 'जोन VI' यानी अल्ट्रा-हाई रिस्क की तरह देखा जा रहा है।
बढ़ा हुआ दायरा: देश का 61% इलाका अब मध्यम से ऊंचे खतरे वाले जोन्स जोन III से VI में आ गया है, जबकि पहले यह 59% था।
जनसंख्या का खतरा: सबसे चिंताजनक तथ्य यह है कि देश की 75% आबादी अब इस बढ़े हुए खतरे वाले इलाके में रह रही है।
इस बदलाव का आधार है प्रोबेबिलिस्टिक सीस्मिक हेजर्ड असेसमेंट PSHA, जो पुराने सिर्फ ऐतिहासिक डेटा के बजाय, वैज्ञानिक मॉडलिंग और लाखों सिमुलेशन पर आधारित है।
सवाल 3- नए नक्शे में हिमालय को लेकर सबसे बड़ा बदलाव क्या है?
हिमालयी आर्क कश्मीर से अरुणाचल प्रदेश तक का पर्वतीय क्षेत्र को लेकर किया गया बदलाव सबसे बड़ा और सबसे चिंताजनक है। पहले, हिमालय का कुछ हिस्सा जोन IV में और कुछ जोन V में था, लेकिन अब पूरे हिमालयी आर्क को एक ही सबसे ऊंचे खतरे वाले जोन VI में डाल दिया गया है।
वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के एक्सपर्ट्स के अनुसार, पुराने नक्शे ने उस 'लॉक सेगमेंट्स' पर ध्यान नहीं दिया, जहां पिछले 200 सालों से जमीन के नीचे ऊर्जा तनाव जमा हो रही है।
फोकस करें: यह नक्शा सिर्फ भूकंप की तीव्रता नहीं बताता, बल्कि फॉल्ट लाइंस, मैग्नीट्यूड और मिट्टी के प्रकार को भी ध्यान में रखता है। यही वजह है कि देहरादून और हरिद्वार जैसे हिमालय के आसपास के मैदानी इलाके भी अब पहले से कहीं ज्यादा सतर्क रहेंगे।
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सवाल 4- हिमालय में ऐसा क्यों किया गया? 200 साल का लॉक क्या है?
पृथ्वी के भीतर, इंडियन प्लेट लगातार यूरेशियन प्लेट के नीचे धंस रही है। इसी टकराव से हिमालय का निर्माण हुआ है। सामान्य तौर पर, ये प्लेट्स धीरे-धीरे खिसकती रहती हैं, जिससे ऊर्जा निकलती रहती है। लेकिन कई वैज्ञानिक शोधों से पता चला है कि हिमालय के कुछ हिस्से, जिन्हें 'सीस्मिक गैप' या 'लॉक सेगमेंट्स' कहा जाता है, वहां प्लेट्स पिछले 200 सालों से आपस में हिल नहीं पाई हैं।
लॉक का मतलब: प्लेटें इतनी कसकर आपस में फंसी हुई हैं कि वे खिसक नहीं पा रही हैं, इसलिए उनके टकराने से पैदा होने वाली ऊर्जा, यानी तनाव, वहां पर जमा होता जा रहा है।
आगामी खतरा: जब यह 'लॉक' खुलेगा, तो जमा हुई यह अपार ऊर्जा अचानक मुक्त होगी, जिससे 8 या उससे अधिक तीव्रता का विनाशकारी महाभूकंप आ सकता है।
नेशनल सेंटर फॉर सीस्मोलॉजी NCS और NDMA की रिपोर्ट्स इसी आसन्न खतरे की पुष्टि करती हैं। इसलिए, BIS ने पूरे हिमालय को एक ही जोन VI में रखा है ताकि वहां हर निर्माण को सबसे मजबूत डिज़ाइन मिले और वे अधिकतम पीक ग्राउंड एक्सेलरेशन PGA को झेल सकें।
सवाल 5- क्या नए नक्शे में दक्षिण भारत खतरे से बाहर है?
नहीं, पूरी तरह से नहीं। हालांकि, दक्षिण भारत पेनिनसुलर इंडिया की जमीन क्रस्ट बहुत पुरानी और स्थिर है, और वहां की टेक्टॉनिक प्लेट्स हिमालय जितनी सक्रिय नहीं हैं, इसलिए वहां बदलाव कम हैं। तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और केरल का अधिकांश हिस्सा अभी भी जोन II कम खतरा या जोन III मध्यम खतरा में है। यहां निर्माण कार्य हिमालय की तरह जोन VI जितने सख्त नहीं होंगे, लेकिन पहले से मजबूत अवश्य बनेंगे।
एक नया पहलू: दक्षिण भारत के कुछ तटीय इलाकों में 'लिक्विफैक्शन' Liquefaction यानी भूकंप के दौरान मिट्टी के गलने या दलदल बनने का खतरा देखा गया है।
नए नक्शे में अब इस पहलू को भी ध्यान में रखा गया है, जो इस इलाके के लिए एक नई चेतावनी है।
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सवाल 6- नया नक्शा कितना भरोसेमंद है?
यह अब तक का सबसे भरोसेमंद और वैज्ञानिक रूप से उन्नत नक्शा है। 10 साल की रिसर्च इसे BIS ने वाडिया इंस्टीट्यूट, NCS और कई अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों के साथ मिलकर 10 साल की रिसर्च के बाद तैयार किया है।
आधुनिक पद्धति: यह पुराने ऐतिहासिक डेटा जैसे 2001 भुज भूकंप पर निर्भर होने के बजाय, PSHA मेथड पर आधारित है।
एडवांस्ड डेटा: इसमें आधुनिक GPS डेटा, सैटेलाइट इमेजरी, सक्रिय फॉल्ट्स का गहन अध्ययन और लाखों भूकंपीय सिमुलेशन शामिल हैं।
यह वही तकनीक है जिसका उपयोग जापान और न्यूजीलैंड जैसे भूकंप-प्रवण देश करते हैं। नतीजतन, नए नक्शे में खतरे का अनुमान '50 सालों में 2.5% प्रोबेबिलिटी' के हिसाब से लगाया गया है, जो बेहद सटीक है।
सवाल 7- तो क्या अब हम भूकंप से पूरी तरह सुरक्षित हो जाएंगे?
एक्सपर्ट्स साफ कहते हैं कि प्रकृति के सामने कोई भी पूरी तरह सुरक्षित नहीं हो सकता, लेकिन हम नुकसान को 80-90% तक कम कर सकते हैं। संरचनात्मक सुरक्षा नए नियमों के तहत बनी बिल्डिंग्स को इस तरह से डिज़ाइन किया जाएगा कि वे हिलने पर गिरे नहीं।
जान-माल की सुरक्षा: इसका सीधा अर्थ है कि भविष्य के बड़े भूकंपों में जान-माल का नुकसान काफी कम होगा।
बड़ा लाभ: देश के 61% इलाके में अब सख्त डिजाइन लागू होगा, जिसका सीधा फायदा 75% आबादी को मिलेगा।
नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी NDMA का कहना है कि अगर हम नई बिल्डिंग्स के साथ-साथ पुरानी इमारतों को भी धीरे-धीरे रेट्रोफिट अपडेट करते हैं, तो भविष्य के किसी भी महाभूकंप में मौतों की संख्या को न्यूनतम किया जा सकता है। यह नया नक्शा सुरक्षा की ओर पहला और सबसे मजबूत कदम है।
Earthquake Map IS 1893 | Locked Himalayas | Major Earthquake Hazard | Earthquake Zone 6
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