नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । आज बुधवार 11 जून 2025 को लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ से सराबोर हुई पुरी नगरी, भगवान जगन्नाथ के पावन स्नान अनुष्ठान में दिखा आस्था का अद्भुत संगम। गजपति महाराज ने निभाई परंपरा, भक्तों पर हुई महापुण्य की वर्षा। इस दिव्य स्नान अनुष्ठान का हर पल था भक्ति और श्रद्धा से ओत-प्रोत, जिसे देखने के लिए देश-विदेश से श्रद्धालु उमड़ पड़े।
तस्वीरें बयां नहीं कर सकतीं वो अलौकिक दृश्य जो आज ओडिशा के पुरी में देखने को मिला। भगवान जगन्नाथ के स्नान अनुष्ठान का पल-पल लाखों श्रद्धालुओं के लिए एक ऐसा अनुभव बन गया, जिसे वे जीवन भर नहीं भूल पाएंगे। ऐसा लग रहा था मानो समंदर की लहरें भी आज जगन्नाथ धाम में ही समाहित हो गई हों, हर तरफ आस्था का सैलाब उमड़ा हुआ था।
सुबह से ही पुरी की सड़कें बनीं गवाह
सुबह से ही पुरी की सड़कें मानव सागर में तब्दील हो चुकी थीं। देश के कोने-कोने से, और तो और विदेशों से भी, भक्तगण अपने आराध्य के इस भव्य स्नान अनुष्ठान के साक्षी बनने को आतुर थे। जैसे ही भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा की प्रतिमाओं को स्नान मंडप (स्नान बेदी) पर लाया गया, पूरे वातावरण में 'जय जगन्नाथ' के जयकारे गूँज उठे। यह सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं था, यह था मानवीय भावनाओं का, अटूट विश्वास का और समर्पण का एक अद्भुत प्रदर्शन।
भावुक कर देने वाला पल: गजपति महाराज की पवित्र सेवा
इस जगन्नाथ महास्नान का सबसे भावुक कर देने वाला पल तब आया जब पुरी के गजपति महाराज दिब्यसिंह देव ने सोने की झाड़ू से स्नान मंडप को साफ करने की सदियों पुरानी परंपरा निभाई। यह सिर्फ एक रस्म नहीं थी, यह राजा और प्रजा के बीच के उस अलौकिक बंधन का प्रतीक था, जो भगवान जगन्नाथ के चरणों में आकर एक हो जाता है। उनकी इस विनम्र सेवा ने हर भक्त को मंत्रमुग्ध कर दिया।
108 घड़ों से दिव्य स्नान: एक अद्भुत अनुभव
स्नान अनुष्ठान के दौरान, भगवान जगन्नाथ और उनके भाई-बहन पर 108 घड़ों के सुगन्धित जल से स्नान कराया गया। ये घड़े मंदिर के भीतर स्थित 'सुनकुआं' (स्वर्ण कुआं) से निकाले गए पवित्र जल से भरे थे। वैदिक मंत्रों के उच्चारण और शंखनाद के बीच जब जल की धारा प्रतिमाओं पर पड़ी, तो ऐसा लगा मानो स्वर्ग से अमृत वर्षा हो रही हो। इस दिव्य स्नान अनुष्ठान का हर क्षण भक्तों को एक आध्यात्मिक ऊंचाई दे रहा था।
हठीवेषा धारण: जब भगवान भी भक्तों से मिलने को आतुर हुए
स्नान के बाद भगवान जगन्नाथ और बलभद्र को 'गजानन वेषा' या 'हठीवेषा' में सजाया गया। यह विशेष वेष उन्हें गज (हाथी) के रूप में प्रदर्शित करता है। मान्यता है कि इस स्नान के बाद भगवान को ज्वर आ जाता है और वे 15 दिनों के लिए अनासर घर (एकांतवास) में चले जाते हैं। इस दौरान भक्त उनके दर्शन नहीं कर पाते। हालांकि, आज के इस स्नान अनुष्ठान ने भक्तों को तृप्त कर दिया। यह सिर्फ एक अनुष्ठान नहीं, बल्कि पुरी की प्राचीन संस्कृति, परंपरा और जगन्नाथ संस्कृति का जीवंत उदाहरण है।
जगन्नाथ महास्नान: सिर्फ एक त्योहार नहीं, एक अनुभूति
पुरी में जगन्नाथ महास्नान का यह आयोजन सिर्फ एक वार्षिक परंपरा नहीं है, यह एक ऐसी अनुभूति है जो लाखों लोगों के दिलों को जोड़ती है। यह दिखाता है कि कैसे धर्म और आस्था हमें एक सूत्र में पिरोते हैं। यह सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया भर के लिए एक संदेश है कि कैसे शांति, सद्भाव और भक्ति से जीवन को सार्थक बनाया जा सकता है।
सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए थे और ओडिशा पुलिस ने भीड़ को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। स्थानीय प्रशासन, स्वयंसेवकों और मंदिर प्रबंधन के अथक प्रयासों से यह पूरा आयोजन सुचारु रूप से संपन्न हुआ।
इस भव्य स्नान अनुष्ठान ने एक बार फिर साबित कर दिया कि भगवान जगन्नाथ के प्रति लोगों की आस्था अटूट है और हर साल यह और भी गहरी होती जाती है।
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