नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क: देश में मासूम बच्चियों के खिलाफ बढ़ते जघन्य अपराधों पर चिंता जताते हुए कांग्रेस नेता अलका लांबा ने सोमवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में चौंकाने वाले आंकड़े पेश किए। उन्होंने बताया कि पिछले तीन वर्षों में हजारों ट्रायल पूरे होने के बावजूद अधिकांश आरोपी बरी कर दिए गए, जबकि सजा पाने वालों की संख्या बेहद कम रही। अलका लांबा ने सवाल उठाया कि जब देश में नाबालिग बेटियों के बलात्कार के मामलों में फांसी का प्रावधान है, तो फिर दोषियों को सजा क्यों नहीं मिलती? उन्होंने केंद्र सरकार से पूछा – "क्या बेटियों के लिए न्याय सिर्फ कानून की किताबों में ही रह गया है?
आइए आंकड़ों पर नजर डालें
- 2022 में 18,517 मामलों में ट्रायल खत्म हुआ, लेकिन केवल 5,067 को सजा मिली, जबकि 12,062 आरोपी बरी कर दिए गए।
- 2021 में 11,783 ट्रायल पूरे हुए, जिनमें 3,368 को सजा मिली और 7,745 को कोर्ट ने बरी कर दिया।
- 2020 में 9,713 मामलों का ट्रायल समाप्त हुआ, जिनमें 3,814 को दोषी करार दिया गया और 5,403 आरोपी बरी हो गए।
- यह स्थिति साफ दर्शाती है कि ट्रायल पूरे होने के बावजूद न्याय अधूरा रह जाता है। हजारों पीड़िताओं को राहत नहीं मिल पाती और अपराधियों को सिस्टम का फायदा मिल जाता है।
सवाल यही है — फांसी क्यों नहीं?
जब कानून मौजूद है, और देश में POCSO जैसे सख्त कानून लागू हैं, तो फिर नाबालिगों के बलात्कारियों को फांसी की सजा क्यों नहीं दी जाती? क्या न्यायिक प्रक्रिया इतनी जटिल और सुस्त है कि अपराधी बेखौफ हो चुके हैं? विशेषज्ञ मानते हैं कि अदालतों में गवाहों का पलटना, सबूतों की कमी, और लंबी कानूनी प्रक्रिया सजा की दर को प्रभावित करती है। लेकिन समाज सवाल कर रहा है — क्या हमारी बेटियों को इंसाफ कभी मिलेगा?