पहलगाम में आतंकी हमले के खिलाफ नरेंद्र मोदी ने जिस तरह से आपरेशन सिंदूर को अंजाम दिया उससे उनकी साख आसमान पर जा पहुंची थी लेकिन सीज फायर जिस तरह से हुआ उसमें साफ दिखा कि डोनाल्ड ट्रम्प के फरमान के सामने मोदी नतमस्तक हो गए। बहुत आसानी से हार मान ली। 2014 के बाद से जो माहौल देश में बनाया गया था उसमें मोदी को इंदिरा गांधी और वाजपेयी से ज्यादा मजबूत बताया गया। सारे देश के लिए मोदी को इतनी आसानी से हार मानते देखना निराशाजनक था।
कश्मीर का मुद्दा भी सुलझाने का मन बना चुके हैं ट्रम्प
मोदी सरकार ने यह भी नहीं बताया कि युद्ध विराम की वजह क्या है। अमेरिका या पाकिस्तान की ओर से इस बात का कोई आश्वासन नहीं है कि आगे कोई आतंकवादी हमला नहीं होगा या नहीं। पहलगाम के अपराधियों को सौंपने के बारे में भी कोई भरोसा पाकिस्तान की तरफ से नहीं मिला है। लेकिन सरकार इस मुद्दे में तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप पर सहमत हो गई। सबसे अहम चीज की ट्रम्प कश्मीर का समाधान भी सुझाने की तरफ चल निकले हैं। भारत ने हमेशा यह कहा है कि कश्मीर उसका आंतरिक मुद्दा है और वह किसी अन्य को हस्तक्षेप करने की अनुमति नहीं देगा। कुल मिलाकर भारत की हर तरह से भद्द मिट गई और पिटने वाली है। bjp modi | DonaldTrump
इंदिरा गांधी ने दी थी निक्सन को सीधी घुड़की
1971 में इंदिरा गांधी ने पूर्वी पाकिस्तान को आजाद कराने के लिए पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में उतरने का फैसला किया तब तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन ने सैन्य कार्रवाई और प्रतिबंधों की धमकी दी थी। लेकिन इंदिरा गांधी ने हिम्मत नहीं हारी। इंदिरा का एक बयान अमेरिकी अखबारों की भी सुर्खियां बना था जिसमें उन्होंने कहा था कि अब वो दिन गए जब 3-4 हजार किमी दूर बठा कोई देश हमें हिदायत देने की जुर्रत कर सकता है। भारत को जो ठीक लगेगा वो करेगा। अमेरिका या ब्रिटेन को दिक्कत है तो होती रहे।
पाकिस्तान से वार के 3 साल बाद भारत ने किया था पोखरण टेस्ट
इंदिरा गांधी ने शिमला समझौते के वक्त भी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टों को भारत आने पर मजबूर कर दिया था। उस समझौते में साफ कहा गया था कि कश्मीर भारत-पाकिस्तान के बीच का मसला है। इसमें किसी तीसरे की जरूरत नहीं है। इतना ही नहीं 1971 युद्ध के कुछ समय बाद इंदिरा सरकार ने पोखरण में परमाणु परीक्षण करके अमेरिका को सीधे तौर पर आंखें दिखा दी थीं। स्माइलिंग बुद्ध के तौर पर विख्यात पोखरण I 1974 में भारत का पहला परमाणु परीक्षण था। इंदिरा के कदम से अमेरिका तिलमिला कर रह गया था अलबत्ता तब की सरकार की सेहत पर इसका कोई असर नहीं पड़ा था।
कारगिल युद्ध के दौरान वाजपेयी ने अमेरिका को दिखा दी थीं आंखें
कारगिल युद्ध के दौरान अटल बिहारी वाजपेयी को भी तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने धमकी देकर चेताया था कि पाकिस्तान परमाणु हमला कर सकता है। वाजपेयी ने क्लिंटन को करारा जवाब देते हुए कहा था कि मैं भारत का आधा हिस्सा कुर्बान करने के लिए तैयार हूं, लेकिन पाकिस्तान कल का सूरज नहीं देख पाएगा। क्लिंटन ने जब वाजपेयी को नवाज शरीफ से बातचीत करने के लिए अमेरिका तलब किया तो उन्होंने सिरे से इन्कार कर दिया।
इंदिरा के अंदाज में वाजपेयी ने किया था पोखरण
1998 में वाजपेयी ने अमेरिका को धता बताते हुए पोखरण में परमाणु परीक्षण किया। आपरेशन शक्ति के नाम से मशहूर पोखरण II 1998 में भारत की परमाणु क्षमताओं का प्रदर्शन करने वाले पांच परमाणु हथियारों के परीक्षणों की एक श्रृंखला थी। पोखरण II का उद्देश्य भारत की परमाणु क्षमताओं को बताना था। क्लिंटन भारत सरकार को धमकाते रह गए अलबत्ता वाजपेयी ने उनकी एक न सुनी।
सीटीबीटी पर दस्तखत से मनमोहन सिंह ने कर दिया था इन्कार
इंदिरा गांधी और वाजपेयी के नक्शेकदम पर चलते हुए मनमोहन सिंह ने भी अमेरिकी घुड़की को दरकिनार कर दिया था। तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा भारत से सीटीबीटी पर दस्तखत करने का दबाव बना रहा था। मनमोहन नहीं झुके और सीटीबीटी पर भारत की तरफ से दस्तखत करने से साफ इन्कार कर दिया।
अपने कदम से दुनिया को कर दिया था कायल
सीटीबीटी (Comprehensive Test Ban Treaty), को व्यापक परमाणु परीक्षण निषेध संधि कहा जाता है। मनमोहन सिंह ने सीटीबीटी पर हस्ताक्षर करने से इन्कार करने का तर्क दिया कि भारत इस संधि को तब तक लागू नहीं करेगा जब तक कि विश्व में परमाणु निरस्त्रीकरण पर सहमति नहीं बन जाती। उन्होंने यह तो कहा कि भारत परमाणु परीक्षण पर एकतरफा रोक लगाकर संधि के मूल उद्देश्य का समर्थन करता है पर दस्तखत नहीं किए।
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