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एंटी-नक्सल ऑपरेशन में मारा गया 44 जवानों का हत्यारा खूंखार नक्सली हिड़मा

छत्तीसगढ़-आंध्र सीमा पर सुरक्षाबलों ने खूंखार नक्सली कमांडर हिड़मा को मुठभेड़ में मार गिराया। एक करोड़ के इनामी, 44 जवानों के हत्यारे का अंत हो गया। पत्नी और 6 नक्सली भी ढेर हुए। क्या अब होगा नक्सलवाद का खात्मा?

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Ajit Kumar Pandey
NAXALI HIDMA UPDATE

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क ।एक सनसनीखेज और ऐतिहासिक घटनाक्रम में, छत्तीसगढ़-आंध्र प्रदेश सीमा पर सुरक्षाबलों ने एक बड़े एंटी-नक्सल ऑपरेशन में देश के सबसे खूंखार और वांछित नक्सली कमांडर हिड़मा को मार गिराने का दावा किया है। सुकमा और दंतेवाड़ा में कई बड़ी वारदातों का मास्टरमाइंड माना जाने वाला हिड़मा अपनी पत्नी राजे और कम से कम छह अन्य नक्सलियों के साथ ढेर हो गया है। इस मुठभेड़ को माओवादी आंदोलन के लिए एक टर्निंग प्वाइंट माना जा रहा है। 

आंध्र प्रदेश के ग्रेहाउंड कमांडो और छत्तीसगढ़ पुलिस के संयुक्त ऑपरेशन ने इस दुर्दांत नक्सली के आतंक का अंत कर दिया है, जिसकी तलाश में एजेंसियां सालों से थीं। 

44 जवानों के खून से सनी थी हिड़मा की कहानी 

बस्तर का 'अदृश्य मौत का सौदागर' हिड़मा, जिसका असली नाम पोडियम हिड़मा या मडवी हिड़मा माना जाता है, महज एक नाम नहीं, बल्कि बस्तर के जंगलों में आतंक का दूसरा नाम था। 2008 से लेकर 2021 तक की सबसे भीषण नक्सली वारदातों के पीछे इसी का दिमाग था। 

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2010 ताड़मेटला हमला: इस हमले में CRPF के 76 जवान शहीद हुए थे, जिसने पूरे देश को हिला दिया था। 

2013 झीरम घाटी नरसंहार: कांग्रेस नेताओं के काफिले पर घातक हमला, जिसमें 30 से अधिक लोगों की मौत हुई। 

2021 टेकलगुडेम हमला: 22 जवानों की शहादत का जिम्मेदार, जिसने सुरक्षाबलों को सबसे बड़ा झटका दिया था। 

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सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों के मुताबिक, हिड़मा ने अपने जीवनकाल में सीधे तौर पर 44 से अधिक सुरक्षाकर्मियों की हत्या करवाई। उस पर एक करोड़ रुपए का इनाम घोषित था। वह सीपीआई माओवादी के 'पीपल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी PLGA' की बटालियन नंबर-1 का प्रमुख था, जिसे बस्तर में माओवादियों का सबसे खतरनाक लड़ाका दस्ता माना जाता था। 

ऑपरेशन ‘ट्रिनिटी’ कैसे जाल में फंसा दुर्दांत कमांडर? 

यह मुठभेड़ छत्तीसगढ़-आंध्र प्रदेश के बॉर्डर पर अल्लूरी सीतारामराजू जिले के मारेडुमिली इलाके में हुई। यह वह दुर्गम क्षेत्र है जहां तीनों राज्यों छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश और ओडिशा की सीमाएं मिलती हैं, जिसे माओवादियों का सबसे सुरक्षित ठिकाना माना जाता था। 

अज्ञात ठिकाने से अंत तक ख़ुफ़िया इनपुट

सूत्रों के अनुसार, पिछले कुछ हफ्तों से आंध्र प्रदेश–छत्तीसगढ़–ओडिशा सीमा क्षेत्रों में माओवादियों की गतिविधियों में अचानक बढ़ोतरी की सूचना मिली थी। खुफिया एजेंसियों ने पुष्टि की कि बटालियन नंबर-1 का प्रमुख हिड़मा एक महत्वपूर्ण बैठक के लिए इस क्षेत्र में आया हुआ है। 

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ग्रेहाउंड्स का अटैक: आंध्र प्रदेश के एलीट एंटी-नक्सल फ़ोर्स 'ग्रेहाउंड्स' को तुरंत सक्रिय किया गया। इनकी गिनती देश के सबसे बेहतरीन जंगल वारफेयर विशेषज्ञों में होती है। 

टारगेटेड कॉम्बिंग: सुरक्षाबलों ने मारेडुमिली के घने जंगलों में अचानक और तेज हमला किया। माओवादियों ने जवाबी फायरिंग की, लेकिन ग्रेहाउंड्स की मारक क्षमता और रणनीति के सामने टिक नहीं पाए। 

शवों की बरामदगी: शुरुआती कंबिंग ऑपरेशन में छह माओवादियों के शव बरामद हुए। जब और तलाशी की गई, तो पुष्टि हुई कि उनमें एक शव हिड़मा का है, और दूसरा उसकी पत्नी राजे का। राजे भी नक्सली संगठन की सक्रिय सदस्य थी। 

राज्य के डीजीपी हरीश कुमार गुप्ता खुद ऑपरेशन पर लगातार नजर बनाए हुए थे और उन्होंने इस सफलता पर सुरक्षाबलों को बधाई दी है। 

हिड़मा की मौत का मतलब क्या है? क्या बदल जाएगा बस्तर का भविष्य? 

हिड़मा की मौत को सिर्फ एक मुठभेड़ नहीं, बल्कि नक्सलवाद के खिलाफ चल रही लड़ाई में एक 'मास्टरस्ट्रोक' माना जा रहा है। 

नक्सल आंदोलन पर असर बटालियन-1 का टूटना 

हिड़मा बटालियन नंबर-1 का संस्थापक और सर्वेसर्वा था। उसके मारे जाने से यह सबसे खतरनाक सैन्य विंग नेतृत्व विहीन हो जाएगी। 

नए कैडर पर संदेश: यह घटना नए और युवा कैडर को एक स्पष्ट संदेश देगी कि सुरक्षाबलों की पहुंच अब उनके सबसे गुप्त ठिकानों तक हो चुकी है, जिससे उनका मनोबल टूटेगा। 

रिक्रूटमेंट में कमी: हिड़मा की मौत से बस्तर में जबरन रिक्रूटमेंट करने की माओवादियों की क्षमता पर भारी असर पड़ेगा। 

एक्सपर्ट्स मानते हैं कि यह घटना माओवादियों के 'सेंट्रल मिलिट्री कमीशन' के लिए एक बड़ा झटका है। हिड़मा न केवल एक कमांडर था, बल्कि दक्षिण बस्तर के कोर एरिया में आदिवासियों के बीच पैठ रखने वाला प्रमुख चेहरा भी था। उसकी मौत, नक्सल आंदोलन के जमीनी और सैन्य दोनों आधार को हिला देगी। क्या माओवादी पलटवार करेंगे? 

हालांकि यह सुरक्षाबलों की एक बहुत बड़ी जीत है, लेकिन जानकारों का कहना है कि यह लड़ाई का अंत नहीं है। नक्सली संगठन अक्सर अपने बड़े नेताओं की मौत का बदला लेने के लिए 'शहीदी सप्ताह' या 'प्रतिशोध अभियान' चलाते हैं। सुरक्षाबलों को अब और भी ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है। डीजीपी ने अपने बयान में कहा है कि कंबिंग ऑपरेशन अभी भी जारी है और नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा को और भी मजबूत किया जाएगा ताकि माओवादी किसी भी तरह की बदले की कार्रवाई को अंजाम न दे सकें। 

क्या नक्सलवाद का दौर खत्म हो रहा है? 

हिड़मा जैसे खूंखार चेहरे का अंत यह साबित करता है कि सुरक्षाबलों की रणनीति अब बस्तर के जंगलों में काम कर रही है। पिछले कुछ वर्षों में हुई लगातार सफल मुठभेड़ों ने माओवादियों की कमर तोड़ दी है। केंद्र और राज्य सरकारों की संयुक्त नीति, स्थानीय पुलिस का खुफिया नेटवर्क और केंद्रीय बलों का 'ग्रिड-आधारित' ऑपरेशन नक्सलवाद को उसकी आखिरी सांस तक धकेल रहा है। 

बस्तर में शांति और विकास का एक नया दौर शुरू होने की उम्मीद जग गई है, लेकिन असली सफलता तब मिलेगी जब आखिरी नक्सली हिंसा का रास्ता छोड़कर मुख्यधारा में शामिल हो जाएगा। 

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