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'One Nation — One Election' : संसद के एनेक्स भवन में हुई बड़ी बैठक, जानें क्या हैं चुनौतियां?

'एक राष्ट्र, एक चुनाव' पर JPC की महत्वपूर्ण बैठक हुई, जिसमें विशेषज्ञों ने अपनी राय रखी। बीजेपी सांसद पीपी चौधरी की अध्यक्षता में हुई इस चर्चा से देश में एक साथ चुनाव कराने की संभावना बढ़ी है, लेकिन इसके सामने चुनौतियां भी हैं।

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Ajit Kumar Pandey
'One Nation — One Election' : संसद के एनेक्स भवन में हुई बड़ी बैठक, जानें क्या हैं चुनौतियां? | यंग भारत न्यूज

'One Nation — One Election' : संसद के एनेक्स भवन में हुई बड़ी बैठक, जानें क्या हैं चुनौतियां? | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)

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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क ।दिल्ली में आज सोमवार 11 जुलाई 2025 को 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' पर बेहद महत्वपूर्ण बैठक ने देश के राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। इस बैठक में विशेषज्ञों ने अपनी राय रखी, जो आने वाले समय में भारत की चुनावी प्रक्रिया को पूरी तरह बदल सकती है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह प्रस्ताव देश के लिए एक नई सुबह लाएगा या फिर इसके रास्ते में कई और चुनौतियां खड़ी होंगी।

'एक राष्ट्र, एक चुनाव' का विचार नया नहीं है, लेकिन इसे लागू करने पर सहमति बनाना हमेशा से एक बड़ी चुनौती रही है। इसका मतलब है कि देश में लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाएं। इसके पीछे कई तर्क दिए जाते हैं, जैसे कि चुनावी खर्च में भारी कमी, बार-बार लगने वाली आचार संहिता से मुक्ति, और सरकार का विकास कार्यों पर लगातार ध्यान केंद्रित रहना।

आज की बैठक, जो संसद एनेक्स भवन में हुई, इस दिशा में एक बड़ा कदम मानी जा रही है। इसकी अध्यक्षता बीजेपी सांसद पीपी चौधरी ने की, जो इस संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के अध्यक्ष भी हैं।

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विशेषज्ञों ने क्या राय दी?

इस बैठक में कई जाने-माने विशेषज्ञ शामिल हुए, जिन्होंने इस प्रस्ताव के विभिन्न पहलुओं पर गहन चर्चा की।

प्रो. सुषमा यादव (सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ हरियाणा): उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' से देश की संघीय व्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ेगा।

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डॉ. विनय सहस्रबुद्धे (पूर्व राज्यसभा सदस्य): उन्होंने इस प्रस्ताव के राजनीतिक और सामाजिक लाभों पर अपनी बात रखी।

प्रो. शीला राय (राष्ट्रीय समाज विज्ञान परिषद): उन्होंने इस योजना के संभावित चुनौतियों और समाधानों पर रोशनी डाली।

प्रो. नानी गोपाल महंत (गुवाहाटी विश्वविद्यालय): उन्होंने पूर्वोत्तर राज्यों के संदर्भ में इस प्रस्ताव की व्यवहार्यता पर अपना पक्ष रखा।

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इन सभी विशेषज्ञों ने अपनी-अपनी राय दी, जो समिति को अंतिम रिपोर्ट तैयार करने में मदद करेगी।

क्यों है यह मुद्दा इतना खास?

अगर यह प्रस्ताव लागू हो जाता है, तो इसके कई बड़े फायदे हो सकते हैं। सबसे बड़ा फायदा है पैसे की बचत। हर साल होने वाले अलग-अलग चुनावों में अरबों रुपए खर्च होते हैं, जिनका उपयोग विकास कार्यों में किया जा सकता है। इसके अलावा, बार-बार लगने वाली आचार संहिता से सरकारी काम रुक जाते हैं, जिससे परियोजनाओं में देरी होती है। एक साथ चुनाव होने से इस समस्या से भी निजात मिलेगी।

हालांकि, कुछ विपक्षी दल और विशेषज्ञ इसके खिलाफ भी हैं। उनका मानना है कि यह राज्यों की स्वायत्तता को कमजोर कर सकता है और केंद्र सरकार को ज्यादा शक्ति दे सकता है। अगर किसी राज्य में सरकार गिरती है, तो चुनाव दोबारा कैसे होंगे, यह भी एक बड़ा सवाल है।

इस संयुक्त संसदीय समिति का काम सभी पहलुओं पर विचार करके एक रिपोर्ट तैयार करना है। यह रिपोर्ट सरकार को सौंपी जाएगी, जिसके आधार पर आगे की कार्यवाही तय होगी। यह देखना दिलचस्प होगा कि यह समिति अपनी रिपोर्ट में क्या सिफारिशें करती है और क्या सरकार इसे संसद में पेश कर पाती है। यह कदम देश की चुनावी व्यवस्था में एक ऐतिहासिक बदलाव ला सकता है, जिसके परिणाम दूरगामी होंगे।

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