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एक देश - एक चुनाव : क्या बदलेगी भारत की तकदीर? जानें क्या बोले जेपीसी अध्यक्ष? | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क ।भारत में 'एक देश, एक चुनाव' की बहस ने एक बार फिर ज़ोर पकड़ लिया है। इस महत्वाकांक्षी विचार पर बनी संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के अध्यक्ष पीपी चौधरी ने आज शुक्रवार 11 जुलाई 2025 को एक बैठक के बाद महत्वपूर्ण बयान दिया है। संयुक्त संसदीय समिति के अध्यक्ष पीपी चौधरी ने 'एक देश, एक चुनाव' पर हुई बैठक के बाद बताया, "चर्चा के दौरान हर विचार को सुना जाना चाहिए, तभी हम समिति की सिफारिशों पर विचार कर सकते हैं। हमने सभी पहलुओं पर गहन चर्चा की है। संसद ने हमें इस विधेयक को बेहतर बनाने का काम सौंपा है।" यह बयान इस बात पर ज़ोर देता है कि समिति किसी जल्दबाज़ी में नहीं है और सभी हितधारकों की राय को महत्व दिया जा रहा है।
भारत में लगातार होने वाले चुनाव न केवल सरकारी खजाने पर भारी पड़ते हैं, बल्कि विकास कार्यों में भी बाधा डालते हैं। आदर्श आचार संहिता लागू होने से कई योजनाएं रुक जाती हैं, जिससे आम जनता को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। 'एक देश, एक चुनाव' का विचार इन्हीं चुनौतियों का समाधान प्रस्तुत करता है।
VIDEO | Delhi: Chairman of the Joint Parliamentary Committee on One Nation, One Election, PP Chaudhary (@ppchaudharybjp), speaks on the committee meeting. He says, “During a discussion, every thought should be heard, only then can we consider the committee's recommendations. We… pic.twitter.com/JwUCWtETEB
— Press Trust of India (@PTI_News) July 11, 2025
क्या हैं 'एक देश, एक चुनाव' के फायदे?
इस अवधारणा के कई संभावित लाभ गिनाए जा रहे हैं
भारी खर्च में कटौती: बार-बार चुनाव कराने में अरबों रुपये खर्च होते हैं। एक साथ चुनाव होने से इस खर्च में भारी कमी आएगी, जिसका उपयोग विकास कार्यों में किया जा सकेगा।
प्रशासनिक दक्षता: चुनाव के दौरान बड़ी संख्या में सरकारी कर्मचारियों और सुरक्षा बलों को तैनात किया जाता है। एक साथ चुनाव होने से इस मानव संसाधन का बेहतर उपयोग हो पाएगा।
विकास कार्यों में निरंतरता: आदर्श आचार संहिता के कारण विकास परियोजनाएं अक्सर रुक जाती हैं। एक साथ चुनाव होने से यह बाधा कम होगी और सरकारें बिना किसी रुकावट के काम कर पाएंगी।
नीतिगत स्थिरता: लगातार चुनावी मोड में रहने से सरकारें लोकलुभावन नीतियों पर ध्यान देती हैं। एक साथ चुनाव होने से उन्हें दीर्घकालिक और दूरगामी नीतियों पर काम करने का अवसर मिलेगा।
मतदाताओं की सुविधा: मतदाताओं को बार-बार मतदान केंद्रों पर जाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी, जिससे उनकी सहूलियत बढ़ेगी।
चुनौतियां और आशंकाएं: क्या सब इतना आसान है?
हालांकि, 'एक देश, एक चुनाव' की राह इतनी आसान नहीं है। इसमें कई चुनौतियां और आशंकाएं भी हैं, जिन पर विचार करना ज़रूरी है:
संवैधानिक संशोधन: इस प्रणाली को लागू करने के लिए संविधान में कई महत्वपूर्ण संशोधन करने होंगे, जिनमें लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल से संबंधित प्रावधान शामिल हैं।
क्षेत्रीय दलों पर असर: आलोचकों का मानना है कि एक साथ चुनाव होने से राष्ट्रीय मुद्दों पर ज़्यादा ध्यान केंद्रित होगा, जिससे क्षेत्रीय दलों के मुद्दे दब सकते हैं।
गठबंधन सरकारों की अस्थिरता: यदि किसी राज्य या केंद्र में गठबंधन सरकार गिर जाती है, तो क्या मध्यावधि चुनाव होंगे? ऐसे में 'एक देश, एक चुनाव' का सिद्धांत प्रभावित हो सकता है।
बड़ा चुनावी तंत्र: एक साथ इतने बड़े पैमाने पर चुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग को अपने संसाधनों और क्षमताओं को कई गुना बढ़ाना होगा।
मतदाता व्यवहार: एक साथ चुनाव होने पर मतदाता राज्य और केंद्र के मुद्दों को कैसे अलग कर पाएंगे? क्या राष्ट्रीय लहर में स्थानीय मुद्दे दब जाएंगे?
पीपी चौधरी के बयान से साफ है कि समिति इन सभी पहलुओं पर गंभीरता से विचार कर रही है। उनका ज़ोर इस बात पर है कि हर विचार को सुना जाए ताकि एक संतुलित और प्रभावी सिफारिश तैयार की जा सके। यह दिखाता है कि सरकार इस मुद्दे पर जल्दबाज़ी नहीं करना चाहती और सभी पक्षों को साथ लेकर चलना चाहती है।
'एक देश, एक चुनाव' का विचार भारत के चुनावी इतिहास में एक क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है। जहां इसके कई संभावित फायदे हैं, वहीं कुछ चुनौतियां भी हैं जिन पर ध्यान देना आवश्यक है। संयुक्त संसदीय समिति की सिफारिशें इस दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होंगी। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या भारत एक साथ चुनाव की प्रणाली को अपनाकर अपनी लोकतांत्रिक प्रक्रिया को और अधिक मजबूत और कुशल बना पाता है।
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