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नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क :कश्मीर की हसीन वादियों में बसे पहलगाम में हाल ही में हुआ आतंकी हमला न सिर्फ इंसानियत को शर्मसार करने वाला था, बल्कि इसने घाटी की वर्षों से संजोई गई शांति और पर्यटन की उम्मीदों को भी झकझोर कर रख दिया है। "धरती का स्वर्ग" कहे जाने वाले कश्मीर में इस वीभत्स घटना ने एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि आतंकवाद की छाया अभी भी इस स्वर्ग में मंडरा रही है। मंगलवार को बैसरन जैसे शांत और सुरम्य पर्यटन स्थल पर हुए इस हमले में कई निर्दोष पर्यटकों की जान चली गई, जिससे न केवल पूरे देश में आक्रोश की लहर दौड़ गई, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी इस घटना की निंदा की गई।यह हमला ऐसे समय में हुआ है जब कश्मीर में पर्यटन धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ रहा था। गर्मियों की छुट्टियों का मौसम शुरू हो चुका था और देश-विदेश से हजारों सैलानी घाटी की खूबसूरती निहारने आ रहे थे। पर अब इस खौफनाक हमले के बाद कश्मीर का पर्यटन उद्योग फिर से संकट में घिरता नजर आ रहा है। पर्यटकों के विश्वास को गहरी चोट पहुंची है और घाटी के होटल व्यवसायियों, टैक्सी चालकों, गाइड्स, और हस्तशिल्प विक्रेताओं जैसे हजारों लोगों की आजीविका खतरे में आ गई है।अब सवाल यह उठता है कि इस आतंकी हमले के बाद घाटी का टूरिज्म भविष्य में किस दिशा में जाएगा? क्या पर्यटक फिर से कश्मीर आने का साहस दिखा पाएंगे?
पर्यटकों की संख्या में गिरावट
पहलगाम जैसे लोकप्रिय टूरिस्ट डेस्टिनेशन पर हमला होने से देश-विदेश से आने वाले पर्यटकों का विश्वास कमजोर होगा। खासकर गर्मियों का मौसम जो कश्मीर टूरिज्म के लिए पीक सीजन होता है, उसमें पर्यटक अपनी यहां की यात्रा रद्द कर सकते हैं। इससे होटल, होमस्टे, ट्रैवल एजेंसियों और लोकल टूर ऑपरेटर्स को बुकिंग्स में गिरावट आएगी। कई पर्यटक जो पहले से अपनी ट्रिप प्लान कर चुके हैं, अब कैंसिल करने का विचार कर कर रहे हैं।
स्थानीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
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कश्मीर की अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा पर्यटन पर निर्भर करता है। पहलगाम, गुलमर्ग, सोनमर्ग और श्रीनगर जैसे पर्यटन स्थलों पर हर साल लाखों पर्यटक आते हैं, जो न केवल प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेते हैं, बल्कि स्थानीय व्यापार को भी जीवंत बनाए रखते हैं। होटल कर्मचारी, हाउसबोट संचालक, शिकारे वाले, स्थानीय गाइड, टैक्सी और टूर ऑपरेटर, बाजारों में दुकान चलाने वाले कारीगर और स्थानीय हस्तशिल्प बेचने वाले व्यापारी सभी की आजीविका सीधे-सीधे पर्यटकों की आमद पर निर्भर है। हालिया आतंकी हमले के बाद जिस तरह से पर्यटन प्रभावित हो सकता है, उससे इन हजारों परिवारों की रोज़ी-रोटी पर संकट के बादल मंडराने लगेंगे। बड़ी बात यह है कि कश्मीर के कई दूरदराज़ के इलाके, जहां खेती या उद्योग सीमित हैं, वहां पर्यटन ही एकमात्र कमाई का स्रोत है। ऐसे में इस हमले से न केवल पर्यटन घटेगा, बल्कि पूरे क्षेत्र की सामाजिक और आर्थिक स्थिरता पर भी असर पड़ सकता है। सरकार को चाहिए कि वह इन लोगों के लिए राहत पैकेज और वैकल्पिक आय के स्रोतों की व्यवस्था पर तुरंत ध्यान दे।
अंतरराष्ट्रीय छवि पर असर
कश्मीर को दुनियाभर में “धरती का स्वर्ग” कहा जाता है और यह भारत के सबसे सुंदर और लोकप्रिय अंतरराष्ट्रीय पर्यटन स्थलों में से एक है। लेकिन जब ऐसे आतंकी हमले होते हैं, तो इसका असर केवल स्थानीय स्तर तक सीमित नहीं रहता यह भारत की वैश्विक छवि को भी प्रभावित करता है। कई देशों के पर्यटक जो सालों से कश्मीर आने का सपना देखते हैं, वे इस तरह की हिंसक घटनाओं के बाद भारत को एक असुरक्षित पर्यटन स्थल के रूप में देखने लगते हैं। अंतरराष्ट्रीय मीडिया में इस हमले की रिपोर्टिंग और सोशल मीडिया पर फैल रही ग्राफ़िक तस्वीरें, वीडियो और भावनात्मक प्रतिक्रियाएं विदेशी पर्यटकों में डर और असमंजस की स्थिति पैदा कर सकती हैं। कई टूरिस्ट फोरम्स और ट्रैवल वेबसाइट्स पर भारत, खासकर कश्मीर को लेकर नेगेटिव रिव्यूज़ और सावधानियों से जुड़ी वार्निंग्स आ सकती हैं, जिससे आने वाले महीनों में विदेशी टूरिस्ट फ्लो में गिरावट आना तय है।
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सुरक्षा व्यवस्था में बढ़ोतरी
पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद यह लगभग तय है कि कश्मीर और अन्य संवेदनशील पर्यटन स्थलों पर सुरक्षा व्यवस्था को पहले से कहीं अधिक सख्त किया जाएगा। प्रशासन और सुरक्षा एजेंसियां अब पर्यटक स्थलों पर अधिक संख्या में सुरक्षा बलों की तैनाती, सीसीटीवी निगरानी, चेकिंग प्वाइंट्स की संख्या में बढ़ोतरी और ड्रोन सर्विलांस जैसी तकनीकों का सहारा लेंगी। इसके अलावा, होटल, हाउसबोट और टूरिस्ट ट्रांजिट पॉइंट्स पर भी अतिरिक्त सतर्कता बरती जाएगी। हालांकि ये कदम आवश्यक हैं, लेकिन इसका सीधा प्रभाव यात्रियों के अनुभव पर भी पड़ सकता है। यात्रियों को जगह-जगह पहचान पत्र दिखाना, बैग्स की जांच कराना और कुछ क्षेत्रों में आवाजाही पर प्रतिबंध जैसी असुविधाओं का सामना करना पड़ सकता है। खासकर विदेशी पर्यटक, जो शांति और सहजता की तलाश में कश्मीर आते हैं, वे इन सुरक्षा प्रक्रियाओं को थोड़ा बोझिल या असहज महसूस कर सकते हैं।
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