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विभाजन का वो दर्द जब जिन्ना की जिद ने 10 लाख लोगों का नरसंहार करवाया! | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । भारत का इतिहास कई ऐसे दर्दनाक पलों से भरा है, जिन्हें भुला पाना मुमकिन नहीं। 14 अगस्त को मनाया जाने वाला विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस उन्हीं में से एक है। यह दिन 1947 के उस खूनी मंजर की याद दिलाता है जब लाखों परिवार उजड़ गए और अनगिनत लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। इस दर्दनाक विभाजन की कहानी को गहराई से समझते हैं।
भारत का विभाजन सिर्फ एक भौगोलिक बंटवारा नहीं था यह लाखों परिवारों की बर्बादी की कहानी थी। 1947 में जब भारत और पाकिस्तान का जन्म हुआ तो इसके पीछे करोड़ों लोगों का दर्द, विस्थापन और खूनी संघर्ष छिपा था। हर साल 14 अगस्त को विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस मनाकर हम उन लाखों लोगों को श्रद्धांजलि देते हैं जिन्होंने इस विभाजन की कीमत अपनी जान देकर चुकाई। इस दिन की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2021 में की थी ताकि आने वाली पीढ़ियां इस दर्दनाक अध्याय को कभी न भूलें।
यह जानना जरूरी है कि इस त्रासदी की जड़ें कहां थीं और क्यों मोहम्मद अली जिन्ना की जिद ने इस पूरे उपमहाद्वीप को एक गहरे घाव में धकेल दिया। इस खास स्टोरी में हम उस ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, उस समय के नेताओं की भूमिका, और उन भयानक घटनाओं को विस्तार से जानेंगे, जिन्होंने इतिहास को हमेशा के लिए बदल दिया।
जिन्ना की ‘टू-नेशन थ्योरी’ और सांप्रदायिकता का जहर
भारत के विभाजन की नींव कोई रातों-रात नहीं रखी गई थी, बल्कि इसकी शुरुआत मोहम्मद अली जिन्ना की 'टू-नेशन थ्योरी' (दो राष्ट्र का सिद्धांत) से हुई थी। 1930 और 40 के दशक में जिन्ना ने यह तर्क देना शुरू किया कि हिंदू और मुस्लिम दो अलग-अलग राष्ट्र हैं और वे एक साथ नहीं रह सकते। इस थ्योरी ने समाज में सांप्रदायिकता का जहर घोलना शुरू कर दिया।
शुरुआत में महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और सरदार वल्लभभाई पटेल जैसे नेता इस मांग के सख्त खिलाफ थे। उनका मानना था कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है, जहां सभी धर्मों के लोग सदियों से साथ रहते आए हैं। लेकिन, जिन्ना अपनी जिद पर अड़े रहे और मुस्लिम लीग के जरिए पाकिस्तान की मांग को और तेज कर दिया।
क्या आपको लगता है कि नेताओं के पास विभाजन रोकने का कोई और रास्ता था? अपनी राय नीचे कमेंट में जरूर बताएं।
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प्रत्यक्ष कार्रवाई दिवस और खून-खराबा
जब कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच सुलह के सभी प्रयास विफल हो गए, तो मोहम्मद अली जिन्ना ने एक भयानक कदम उठाया। 16 अगस्त 1946 को उन्होंने 'प्रत्यक्ष कार्रवाई दिवस' (Direct Action Day) का ऐलान किया। इस ऐलान का मकसद पाकिस्तान की मांग को हिंसक तरीके से पूरा करना था।
इस दिन कोलकाता (तब कलकत्ता) की सड़कों पर जो नंगा नाच और खूनी खेल हुआ, उसने पूरे देश को हिलाकर रख दिया। मुस्लिम लीग के समर्थकों ने बड़े पैमाने पर हिंदुओं और सिखों पर हमला किया। यह हिंसा तेजी से पूरे देश में फैल गई, जिससे हजारों लोग मारे गए और लाखों बेघर हो गए।
- कोलकाता की भयानक हिंसा में 4,000 से ज्यादा लोग मारे गए।
- यह हिंसा बिहार, यूपी, पंजाब और बंगाल तक फैल गई।
- इस एक दिन ने भविष्य के बंटवारे की खूनी इबारत लिख दी।
माउंटबेटन योजना: एक मजबूरी भरा फैसला
ब्रिटिश सरकार ने जब देखा कि भारत में हिंसा बढ़ती जा रही है और इसे संभालना मुश्किल है तो उन्होंने विभाजन की योजना को अंतिम रूप दिया। लॉर्ड माउंटबेटन को भारत का आखिरी वायसराय बनाकर भेजा गया। उन्होंने 3 जून 1947 को अपनी योजना पेश की जिसे माउंटबेटन योजना के नाम से जाना जाता है।
इस योजना में कहा गया था कि भारत को दो अलग-अलग देशों — भारत और पाकिस्तान में बांटा जाएगा। कांग्रेस ने इस योजना को तुरंत स्वीकार कर लिया। विभाजन के बाद पाकिस्तान वाले हिस्से से जो ट्रेन भारत की ओर आ रही थीं सब हिंदुओं सिखों की लाशों से भरी थीं। लाखों लोगों का जिन्ना ने नरसंहार करवाया।
बंटवारे का दर्द और रेडक्लिफ रेखा का मजाक
विभाजन के लिए जिस व्यक्ति को सीमाओं का निर्धारण करने का जिम्मा सौंपा गया था वह थे सर सिरिल रेडक्लिफ। एक विडंबना यह थी कि रेडक्लिफ भारत कभी नहीं आए थे और उन्हें यहां के भूगोल, संस्कृति या लोगों के बारे में कोई जानकारी नहीं थी।
उन्होंने बस कुछ नक्शों के आधार पर एक लकीर खींच दी जिसे रेडक्लिफ रेखा के नाम से जाना जाता है। यह लकीर सिर्फ कागजों पर नहीं बल्कि लोगों के दिलों पर खींची गई थी। इस लकीर ने लाखों परिवारों को रातों-रात अजनबी बना दिया।
- पंजाब और बंगाल जैसे राज्य दो हिस्सों में बंट गए।
- गांव, खेत और घर भी बंट गए।
- लोग अपनी सदियों पुरानी जमीन, जायदाद और यादों को छोड़कर जाने को मजबूर हुए।
इस बंटवारे का नतीजा था एक मानवीय त्रासदी। लाखों लोगों को अपने घरों से भागना पड़ा। लंबी-लंबी कतारों में लोग जान बचाने के लिए एक तरफ से दूसरी तरफ जा रहे थे। इस दौरान बड़े पैमाने पर लूट, आगजनी, बलात्कार और हत्याएं हुईं।
मानवता की सबसे बड़ी त्रासदी: आंकड़े और कहानियां
- 1947 का विभाजन मानवता के इतिहास की सबसे बड़ी त्रासदी में से एक है।
- 10 लाख से ज्यादा लोग मारे गए।
- 1.5 करोड़ से ज्यादा लोग विस्थापित हुए।
- लाखों महिलाओं को अगवा किया गया या उनके साथ बलात्कार हुआ।
- बच्चों को उनके माता-पिता से बिछड़ना पड़ा।
इन आंकड़ों के पीछे अनगिनत कहानियां छिपी हैं। पंजाब में लोग ट्रेन की छतों पर बैठकर अपनी जान बचा रहे थे तो बंगाल में लोग नावों में बैठकर भाग रहे थे। कई ट्रेनें लाशों से भरी हुई पहुंचीं जिन्हें 'मौत की ट्रेन' कहा गया।
क्या आपको लगता है कि इतिहास हमें भविष्य के लिए सबक सिखाता है? नीचे कमेंट में अपना नजरिया जरूर साझा करें।
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विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस: क्यों है इसकी जरूरत?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2021 में 14 अगस्त को विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की। इसका मकसद सिर्फ इतिहास को याद करना नहीं, बल्कि उससे सबक सीखना भी है।
इस दिन को मनाने का उद्देश्य है:
- उन लाखों लोगों को श्रद्धांजलि देना, जिन्होंने अपनी जान गंवाई।
- आने वाली पीढ़ियों को बताना कि नफरत और बंटवारे का नतीजा कितना भयानक होता है।
- यह सुनिश्चित करना कि हम एक मजबूत, एकजुट और शांतिपूर्ण भारत का निर्माण करें।
यह दिवस हमें याद दिलाता है कि भले ही हमारी धार्मिक आस्थाएं अलग हों, लेकिन हम सब एक ही देश के नागरिक हैं। यह दिन एकता और भाईचारे का संदेश देता है, ताकि भविष्य में कभी ऐसी त्रासदी दोबारा न हो।
क्या विभाजन की कहानी सिर्फ इतिहास है?
शायद नहीं। विभाजन का दर्द आज भी उन परिवारों की आंखों में जिंदा है, जिन्होंने अपने घर, अपनी जमीन और अपनों को खो दिया। कई परिवार आज भी अपने बिछड़े हुए रिश्तेदारों की तलाश में हैं। भारत-पाकिस्तान सीमा के दोनों ओर ऐसे लाखों लोग हैं, जिनके दिल में आज भी अपने पुरखों की मिट्टी की याद ताजा है। यह दिवस हमें सिर्फ अतीत की याद नहीं दिलाता, बल्कि भविष्य के लिए एक सबक भी देता है।
जैसे ही यह कहानी आप पढ़ रहे हैं, भारत अपनी आजादी के 78 साल पूरे होने की तैयारी कर रहा है। 15 अगस्त को जब हम तिरंगा फहराएंगे, तो क्या हम उन लाखों लोगों के बलिदान को याद रखेंगे, जो आजादी की कीमत चुकाते-चुकाते इस विभाजन के शिकार हो गए? यह एक ऐसा सवाल है, जिसका जवाब हम सभी को खोजना होगा।
आपका नजरिया इस खबर पर क्या है? क्या आपको लगता है कि इस दिन को मनाने से युवा पीढ़ी को इतिहास के उस काले अध्याय को समझने में मदद मिलेगी? नीचे कमेंट करें।
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