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PM Modi: "मन की बात" में पीएम मोदी ने कुंभ को बताया एकता, समता और समरसता का संगम

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने 188वें और वर्ष 2025 के पहले मन की बात कार्यक्रम में राष्ट्र को संबोधित किया। इस दौरान पीएम ने कुंभ को एकता, समानता और सद्भाव का अनूठा संगम बताया।

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Kamal K Singh
MAN KI BAAT

दिल्ली,वाईबीएन नेटवर्क

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने 188वें और वर्ष 2025 के पहले मन की बात कार्यक्रम में राष्ट्र को संबोधित किया। इस दौरान पीएम ने महाकुंभ 2025 को एकता, समानता और सद्भाव का अनूठा संगम बताया। उन्होंने कहा कि हजारों सालों से चली आ रही इस परंपरा में कोई भेदभाव और जातिवाद नहीं है।

महाकुंभ 2025 में युवाओं के योगदान का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि जब युवा पीढ़ी अपनी पहचान और संस्कृति से गर्व के साथ जुड़ती है, तो उस संस्कृति की जड़ें और भी मजबूत हो जाती हैं तथा उस संस्कृति का भविष्य और भी उज्ज्वल हो जाता है।

“कुंभ का आयोजन हमें यह भी बताता है कैसे हमारी परंपराएं पूरे भारत को एक सूत्र में बांधती हैं। जब युवा पीढ़ी अपनी सभ्यता के साथ गर्व के साथ जुड़ जाती है तो उसकी जड़े और मजबूत होती है और तब उसका स्वर्णिम भविष्य भी सुनिश्चित हो जाता है।”

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कुंभ, पुष्कर और गंगा सागर मेले का जिक्र करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि ये तीनों पर्व सामाजिक मेलजोल, समानता और सद्भाव को बढ़ावा देते हैं। पीएम ने कहा कि कुंभ में हर क्षेत्र और समाज के हर वर्ग के लोग आते हैं, संगम में डुबकी लगाते हैं और साथ मिलकर प्रसाद ग्रहण करते हैं। यही वजह है कि कुंभ एकता का प्रतीक है। इस दौरान प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय मतदाता दिवस का भी जिक्र किया, जो 25 जनवरी को मनाया जाता है। उन्होंने कहा कि यह दिन इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि: 

हमारे संविधान निर्माताओं ने संविधान में हमारे चुनाव आयोग को, लोकतंत्र में लोगों की भागीदारी को, बहुत बड़ा स्थान दिया है। मैं चुनाव आयोग का भी धन्यवाद दूंगा, जिसने समय-समय पर, हमारी मतदान प्रक्रिया को आधुनिक बनाया है, मजबूत किया है। आयोग नेः जन- शक्ति को और शक्ति देने के लिए, तकनीक की शक्ति का उपयोग किया।

कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने पौष द्वादशी के दिन अयोध्या में राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की वर्षगांठ का भी जिक्र किया और कहा कि प्राण प्रतिष्ठा की यह द्वादशी भारत की सांस्कृतिक चेतना की पुन: प्रतिष्ठा की द्वादशी बन गई है। उन्होंने कहा, 'विकास के पथ पर चलते हुए हमें अपनी विरासत को भी संजोना है और उनसे प्रेरणा लेते हुए आगे बढ़ना है।'

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प्राण प्रतिष्ठा की द्वादशी भारत की सांस्कृतिक चेतना की पुनः प्रतिष्ठा की द्वादशी बन गई। हमें विकास के रास्ते पर चलते हुए ऐसे ही अपनी विरासत को भी सहेजना है और उनसे प्रेरणा लेते हुए आगे बढ़ना है।

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