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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः नरेंद्र मोदी सरकार एक ऐसा बिल पेश करने जा रही है जिसमें प्रावधान किया गया है कि अगर प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या कोई भी मंत्री जेल के भीतर 30 दिन तक रह गया तो उसे कुर्सी से हटना पड़ जाएगा। संविधान में 130वां संशोधन करके सरकार इस बिल को प्रभावी बनाने की तैयारी में है। ये लोकसभा में पेश होगा।
अमित शाह बिल को लोकसभा में करेंगे पेश
बार एंड बेंच की खबर के मुताबिक गृह मंत्री अमित शाह इस बिल को बुधवार और गुरुवार को लोकसभा में पेश करने जा रहे हैं। शाह इस बिल के अलावा दो और भी लोकसभा में पेश करने जा रहे हैं। इसमें जम्मू एंड कश्मीर री आर्गेनाइजेशन (अमेंडमेंट बिल) 2025 और गवर्नमेंट आफ यूनियन टेरीटरिज बिल 2025 भी शामिल है। इन बिलों को पेश करने के बाद लोकसभा और राज्यसभा की संयुक्त कमेटी को भेजा जाएगा। कमेटी इस बिलों की जांच करने के बाद सदन को सूचित करेगी।
130वां संविधान संशोधन करने की तैयारी में सरकार
130वें संशोधन विधेयक में संविधान के अनुच्छेद 75, 164 और 239AA में धाराएं जोड़ने का प्रस्ताव है। विधेयक के अनुसार किसी केंद्रीय मंत्री को राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री की सलाह पर पद से हटाया जाएगा और यदि 31वें दिन तक ऐसी सलाह नहीं दी जाती है, तो वह मंत्री नहीं रहेगा।
कानून बना तो प्रधानमंत्री पर भी कस जाएगा शिकंजा
प्रधानमंत्री के लिए प्रस्तावित कानून में कहा गया है कि उन्हें गिरफ्तारी और नजरबंदी के 31वें दिन तक इस्तीफा दे देना चाहिए। अगर वो ऐसा करने में विफल रहते हैं तो प्रधानमंत्री नहीं रहेंगे। हालांकि, हिरासत से रिहा होने पर प्रधानमंत्री या मंत्री को फिर से नियुक्त किया जा सकता है। राज्यों के मुख्यमंत्रियों और अन्य मंत्रियों के लिए भी इसी तरह का कानून प्रस्तावित है। सरकार की कोशिश है कि दागी नेताओं को किसी भी सूरत में कुर्सी पर न रहने दिया जाए। इससे जनता में गलत संदेश जाता है। अभी तक के दौर में कोई भी नेता अपराध करने के बाद भी कुर्सी पर जमा रहता था, क्योंकि उसे संविधान से आजादी मिली हुई थी।
शाह बोले- ये बिल बेहद जरूरी
प्रस्तावित संशोधनों के उद्देश्यों और कारणों को लेकर गृह मंत्री ने कहा है कि निर्वाचित प्रतिनिधि भारत की जनता की आशाओं और आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनसे यह अपेक्षा की जाती है कि वे राजनीतिक हितों से ऊपर उठकर केवल जनहित और जन कल्याण के लिए कार्य करें। मंत्रियों का चरित्र और आचरण किसी भी संदेह से परे होना चाहिए। गंभीर आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे मंत्री संवैधानिक नैतिकता और सुशासन के सिद्धांतों को विफल या बाधित कर सकते हैं।
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