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1971 युद्ध के बाद Indira Gandhi ने कीं ये रणनीतिक भूल, हिमंत बिस्व सरमा का तीखा हमला

असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने 1971 की जीत के बाद इंदिरा गांधी की रणनीति को ऐतिहासिक भूल बताया। उन्होंने बांग्लादेश, घुसपैठ, और पूर्वोत्तर की सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल उठाए।

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Dhiraj Dhillon
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा

Photograph: (Google)

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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क। 1971 भारत-पाकिस्तान युद्ध की निर्णायक जीत के बावजूद भारत ने कई रणनीतिक अवसर गंवाए। यह कहना है असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा का, जिन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर तीखा हमला बोला है। मुख्यमंत्री सरमा ने एक्स पर एक विस्तृत पोस्ट में लिखा, "1971 की सैन्य विजय ऐतिहासिक थी, लेकिन इंदिरा गांधी की सरकार उस जीत को रणनीतिक लाभ में बदलने में विफल रही।" उन्होंने इस चूक को "ऐतिहासिक भूल" करार दिया।
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सेक्युलर समर्थन के बावजूद इस्लामिक राष्ट्र बना बांग्लादेश
सरमा ने कहा कि भारत ने एक धर्मनिरपेक्ष बांग्लादेश का समर्थन किया था, लेकिन 1988 में वहां इस्लाम को राज्य धर्म घोषित कर दिया गया। उन्होंने लिखा कि आज वहां राजनीतिक इस्लाम हावी है, जो भारत के मूलभूत मूल्यों के खिलाफ है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि 1971 में जहां बांग्लादेश में हिंदू आबादी 20 प्रतिशत थी, वह अब घटकर 8 प्रतिशत से भी कम हो गई है। इसके लिए उन्होंने संगठित भेदभाव और हिंसा को जिम्मेदार ठहराया और कहा कि भारत ने इस पर वर्षों तक चुप्पी साधे रखी।

पूर्वोत्तर की कनेक्टिविटी पर सवाल
सरमा ने सिलीगुड़ी 'चिकन नेक' कॉरिडोर की सुरक्षा पर चिंता जताते हुए कहा कि भारत ने उस वक्त की भू-राजनीतिक स्थिति का सही उपयोग नहीं किया। "अगर उत्तरी बांग्लादेश से होकर एक सुरक्षित कॉरिडोर बनता, तो पूर्वोत्तर आज ज्यादा जुड़ाव महसूस करता।"

घुसपैठ और जनसंख्या असंतुलन
मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि 1971 के बाद बांग्लादेशी घुसपैठियों को लेकर कोई ठोस समझौता नहीं किया गया। आज असम, बंगाल और पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में जनसंख्या असंतुलन और सामाजिक अस्थिरता देखी जा रही है। सरमा ने भारत की चिटगांव बंदरगाह तक पहुंच न होने को भी एक गंभीर रणनीतिक गलती बताया। उन्होंने कहा कि "पूर्वोत्तर अब भी भू-आवृत्त (landlocked) है और भारत इसे बदलने में विफल रहा।" 

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उग्रवादियों का सुरक्षित अड्डा बना बांग्लादेश
मुख्यमंत्री ने आरोप लगाया कि कई वर्षों तक बांग्लादेश भारत-विरोधी उग्रवादी संगठनों का केंद्र बना रहा, क्योंकि 1971 में सुरक्षा ढांचे को मजबूत करने की जरूरत को नजरअंदाज कर दिया गया था। अपनी पोस्ट का समापन करते हुए सरमा ने लिखा- 1971 की जीत सिर्फ एक सैन्य विजय नहीं थी, बल्कि एक रणनीतिक अवसर भी था, जिसे कूटनीतिक चुप्पी और गलत निर्णयों ने कमजोर कर दिया।
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