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"मुंबई ब्लास्ट केस 2006 : आरोपी बरी, इंसाफ बाकी — ओवैसी ने पूछा, सरकार सुप्रीम कोर्ट क्यों पहुंची?"

सुप्रीम कोर्ट ने 2006 मुंबई ट्रेन धमाकों में 12 आरोपियों को बरी करने के बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाई। 18 साल बाद भी न्याय की लड़ाई जारी, ओवैसी ने उठाए सवाल। पीड़ितों को अब भी इंसाफ का इंतजार।

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Ajit Kumar Pandey

"मुंबई ब्लास्ट केस 2006 : आरोपी बरी, इंसाफ बाकी — ओवैसी ने पूछा, सरकार सुप्रीम कोर्ट क्यों पहुंची?" | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)

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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क ।मुंबई के उपनगरीय ट्रेनों में 2006 में हुए भयावह बम धमाकों के 18 साल बाद भी पीड़ितों को न्याय का इंतजार है। सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के उस फैसले पर रोक लगा दी है, जिसमें 12 आरोपियों को बरी कर दिया गया था। यह घटना एक बार फिर उन काले दिनों की याद दिलाती है जब मायानगरी मुंबई सिलसिलेवार बम धमाकों से दहल उठी थी। इस फैसले पर आज गुरूवार 24 जुलाई 2025 को AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने सवाल उठाए हैं, जो इस जटिल न्यायिक प्रक्रिया में एक नया मोड़ लाते हैं।

2006 मुंबई ट्रेन धमाके भारतीय इतिहास के सबसे भयावह आतंकी हमलों में से एक थे। 11 जुलाई 2006 को शाम के व्यस्त समय में, मुंबई की लोकल ट्रेनों में सात बम विस्फोट हुए, जिसमें 189 लोगों की मौत हो गई और 800 से अधिक घायल हुए। ये धमाके माटुंगा, माहिम, खार रोड, जोगेश्वरी, बोरीवली, मीरा रोड और भायंदर स्टेशनों के पास हुए थे। इस बर्बरतापूर्ण कृत्य ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था।

जांच एजेंसियों ने इस मामले में इंडियन मुजाहिदीन और लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकी संगठनों का हाथ बताया था। लंबे समय तक चली जांच और सुनवाई के बाद, 2015 में विशेष मकोका अदालत ने 13 आरोपियों में से 12 को दोषी ठहराया था और एक को बरी कर दिया था। इनमें से 5 को मौत की सजा और 7 को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। यह फैसला पीड़ितों के लिए एक उम्मीद की किरण लेकर आया था कि उन्हें आखिरकार न्याय मिलेगा।

हालांकि, 2024 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस फैसले को पलटते हुए 12 आरोपियों को बरी कर दिया। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में सबूतों की कमी का हवाला दिया। इस फैसले से पीड़ितों और उनके परिवारों को गहरा सदमा लगा। कई लोगों को लगा कि 18 साल के संघर्ष के बाद भी उन्हें न्याय नहीं मिल पाएगा।

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अब सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के इस फैसले पर रोक लगा दी है। शीर्ष अदालत ने कहा है कि बरी किए गए आरोपियों को दोबारा गिरफ्तार नहीं किया जाएगा, लेकिन इस मामले की सुनवाई जारी रहेगी। यह सुप्रीम कोर्ट का एक महत्वपूर्ण कदम है जो इस संवेदनशील मामले को एक बार फिर न्यायिक जांच के दायरे में लाता है।

ओवैसी ने केंद्र और महाराष्ट्र सरकार से पूछे सवाल

AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने इस घटनाक्रम पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए केंद्र और महाराष्ट्र सरकारों से सवाल पूछे हैं। उन्होंने कहा, "मैं केंद्र सरकार और महाराष्ट्र सरकार से पूछना चाहता हूं कि जब वे पूरी तरह से निर्दोष साबित हुए हैं, तो आप यह अपील क्यों कर रहे हैं? मैं यह भी पूछना चाहता हूं कि अगर मालेगांव विस्फोट के आरोपी जिस पर फैसला सुरक्षित है, बरी हो जाते हैं, तो क्या आप तब भी अपील करेंगे?"

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ओवैसी का यह बयान न्यायिक प्रक्रिया और सरकार की मंशा पर सवाल उठाता है। यह दर्शाता है कि यह मामला सिर्फ कानूनी नहीं, बल्कि राजनीतिक और सामाजिक पहलुओं से भी जुड़ा है। उनकी टिप्पणी मालेगांव विस्फोट मामले से इसकी तुलना कर रही है, जिसमें कई आरोपी वर्षों से जेल में हैं और अभी भी उनके भाग्य का फैसला नहीं हुआ है।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला पीड़ितों के लिए उम्मीद की किरण

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यह सुप्रीम कोर्ट का फैसला मुंबई धमाकों के पीड़ितों के लिए एक और उम्मीद की किरण है। यह दिखाता है कि भारत की न्यायिक प्रणाली न्याय सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है, भले ही इसमें कितना भी समय लगे। यह मामला एक बार फिर न्यायिक प्रक्रिया की जटिलता और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में आने वाली चुनौतियों को उजागर करता है।

इस मामले में आगे क्या होगा, यह देखना दिलचस्प होगा। सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई यह तय करेगी कि क्या 18 साल बाद इन आरोपियों को वास्तव में न्याय मिलेगा या फिर यह मामला और उलझेगा। मुंबई के लोग और पूरा देश इस फैसले का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं, ताकि 2006 के उस भयानक दिन के पीड़ितों को आखिरकार शांति मिल सके।

मुंबई ट्रेन धमाके: एक नज़र

तारीख: 11 जुलाई 2006

स्थान: मुंबई की उपनगरीय लोकल ट्रेनें

विस्फोटों की संख्या: 7

मृत्यु: 189

घायल: 800+

जांच: इंडियन मुजाहिदीन और लश्कर-ए-तैयबा पर संदेह

निचली अदालत का फैसला (2015): 12 दोषी, 1 बरी (5 को मौत की सजा, 7 को उम्रकैद)

बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला (2025): 12 आरोपी बरी

सुप्रीम कोर्ट का वर्तमान फैसला : हाईकोर्ट के फैसले पर रोक, सुनवाई जारी

यह घटना दर्शाती है कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई कितनी लंबी और चुनौतीपूर्ण हो सकती है। मुंबई ट्रेन धमाके भारतीय इतिहास में एक काले अध्याय के रूप में दर्ज हैं, और इस मामले में न्याय का हर कदम महत्वपूर्ण है। यह सिर्फ आरोपियों के बरी होने या दोषी ठहराए जाने का सवाल नहीं है, बल्कि यह उन सैकड़ों निर्दोष लोगों के लिए न्याय का सवाल है जिन्होंने अपनी जान गंवाई और उन हजारों लोगों के लिए जिन्होंने अपने प्रियजनों को खोया या गंभीर चोटें झेलीं।

न्यायिक प्रक्रिया धीमी हो सकती है, लेकिन उम्मीद है कि अंततः न्याय होगा। यह मामला भारतीय न्याय प्रणाली की दृढ़ता और चुनौतियों दोनों को दर्शाता है। हम सभी को उम्मीद है कि इस मामले का एक ऐसा निष्कर्ष निकलेगा जो पीड़ितों और उनके परिवारों को वास्तविक शांति और न्याय प्रदान करे।

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