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प्रियंका के भाषण से ऐन पहले अल्लू अर्जुन की अरेस्ट, कांग्रेस में कुछ तो गड़बड़ है

गुजरात में कांग्रेस का जब 84वां अधिवेशन हुआ तो प्रियंका उसमें शरीक नहीं हुईं। वायनाड के मसले पर वो अमित शाह से मिलने उनके दफ्तर में चली गईं और फिर ट्वीट करके उनकी तारीफ भी की। कहने की जरूरत नहीं कि भाई बहन के बीच कहीं न कहीं कुछ न कुछ तो गड़बड़ है?

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Shailendra Gautam
Rahul Priyanka

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कःवाकया 13 दिसंबर का है। कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा का संसद में पहली बार भाषण होना था। लोग बेसब्री से इंतजार कर रहे थे कि प्रियंका गांधी क्या कहने जा रही हैं। लेकिन भाषण शुरू होने से ऐन पहले एक ऐसी खबर ब्रेक हो गई जिसने प्रियंका के भाषण को सुर्खियों से बाहर कर दिया। वो खबर थी मेगा स्टार अल्लू अर्जुन की अरेस्ट से जुड़ी। सारा दिन टीवी पर अल्लू अर्जुन छाए रहे। प्रियंका का भाषण प्रमुख टीवी चैनलों पर नहीं दिखा।

महिला की मौत 4 को हुई थी तो अरेस्ट 13 को क्यों हुई

हालांकि ये केवल एक घटना है। अल्लू अर्जुन को अरेस्ट करने का काम हैदराबाद पुलिस ने किया था। वो इस वजह से था कि 4 दिसंबर को पुष्पा 2 के प्रीमियर के दौरान मची भगदड़ में एक महिला की मौत हो गई थी। उसका बेटा भी इस दौरान गंभीर रूप से जख्मी हुआ था। पुलिस ने अल्लू के खिलाफ गैर इरातदन हत्या का केस दर्ज किया था। लिहाजा अरेस्ट तो होनी ही थी। इसमें कुछ भी ऐसा नहीं है जो भौचक करने वाला हो। लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू देखें तो अल्लू अर्जुन की गिरफ्तारी के पीछे गहरी सियासत थी। महिला की मौत 4 दिसंबर को हुई थी। लेकिन आखिर ऐसी क्या वजह थी जो अल्लू अर्जुन को 13 दिसंबर को ही अरेस्ट किया गया। पुलिस ये काम दो-चार दिन पहले या दो-चार दिन बाद भी करती तो कौन सा पहाड़ टूट रहा था। लेकिन राजनीति के जानकार मानते हैं कि अल्लू की अरेस्ट के पीछे गहरी सियासत थी। 

13 दिसंबर को लोकसभा में होना था प्रियंका का पहला भाषण

13 दिसंबर को जब प्रियंका गांधी का लोकसभा में पहला भाषण होना था, उससे ठीक पहले हैदराबाद पुलिस ने ये एक्शन लिया। तेलंगाना में सरकार बीजेपी या किसी दूसरे गैर कांग्रेसी दल की होती तो कांग्रेस या टीम प्रियंका ये कह सकती थी कि ये सोची समझी साजिश थी। लेकिन वहां तो सरकार खुद कांग्रेस की ही थी। क्या कांग्रेस सरकार को ये नहीं पता था कि प्रियंका गांधी 13 दिसंबर को ही अपना पहला भाषण बतौर सांसद देने जा रही हैं। सरकार को बखूबी पता था कि उनकी नेता का लोकसभा में पहला भाषण होना है। सरकार अल्लू की अरेस्ट को चार-पांच घंटे के लिए टाल देती तो प्रियंका मेन मीडिया के प्राइम टाइम में छा जातीं। लेकिन सरकार के एक फैसले की वजह से प्रियंका टीवी पर एक छोटी खबर बनकर रह गईं। जाहिर है कि उनको सुर्खियों से गायब करने के लिए एक प्लानिंग के तगत काम किया गया। तो फिर वो कौन था जिसने तेलंगाना सरकार को प्रियंका के भाषण से ऐन पहले अल्लू को अरेस्ट करने को कहा था।

जिसने भी प्रियंका की वकालत की वो बेमतलब का हो गया

जानकार कहते हैं कि अल्लू की अरेस्ट के पीछे गांधी परिवार में चल रही वर्चस्व की लड़ाई थी। सोनिया गांधी के नेपथ्य में जाने के बाद से राहुल गांधी कांग्रेस की कमान संभाल रहे हैं। लेकिन उनके नेतृत्व में पार्टी ऐसा कुछ नहीं कर सकी जिसे उपलब्धि कहा जा सके। ऐसे में गाहे बगाहे ये मांग उठती रही कि प्रियंका को मेन फ्रेम में लाया जाए तो कांग्रेस का स्ट्राइक रेट ज्यादा बेहतर हो सकता है। हालांकि जिसने भी ये मांग उठाई उसे पार्टी में या तो हाशिए पर डाल दिया गया या फिर बाहर का रास्ता ही दिखा दिया गया। आचार्य प्रमोद कृष्णम इसका जीता जागता उदाहरण हैं। उन्होंने राहुल के बजाय प्रियंका गांधी को मेन फ्रेम में लाने की पुरजोर वकालत की थी। 

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2019 में प्रियंका का हुआ था रोड शो, उमड़ पड़े थे लोग

वैसे देखा जाए तो प्रियंका पिछले काफी अरसे से राजनीति में सक्रिय हैं। हालांकि पहले के दौर में वो केवल अमेठी और रायबरेली तक ही सीमित रहा करती थीं। तब रायबरेली से उनकी मां सोनिया गांधी और अमेठी से भाई राहुल गांधी चुनाव मैदान में उतरते थे। प्रियंका उनका चुनावी कैंपेन बखूबी मैनेज करती थीं क्योंकि दोनों देश भर में पार्टी का प्रचार करते थे। 2019 तक प्रियंका एक्टिव पालिटिक्स से बाहर ही रहीं। 2019 में पुलवामा अटैक से ऐन पहले वो राजनीति में सक्रिय तौर पर तब उतरीं जब उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में उनका रोड शो रखा गया।

2019 की शिकस्त के बाद उठी थीं प्रियंका को आगे लाने की आवाजें 

रोड शो को जिस तरह का रिस्पांस मिला उसने बीजेपी को भौचक कर दिया। लोग उमड़ पड़े थे। हालांकि रोड शो में राहुल गांधी भी शामिल थे लेकिन माना गया कि लोग प्रियंका को देखने और सुनने के लिए बेताब थे। उसके बाद राहुल गांधी ने प्रियंका गांधी के साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया को यूपी का जिम्मा देकर सियासत में सक्रिय रूप से उतारा। उस दौरान राहुल गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष थे। अलबत्ता पुलवामा के बाद हुए चुनाव में कांग्रेस को बुरी तरह से शिकस्त मिली। राहुल ने कांग्रेस की अध्यक्षी को नमस्ते कर ली। पार्टी में जोर शोर से अभियान शुरू हुआ कि प्रियंका लाओ कांग्रेस बचाओ। प्रियंका के समर्थकों का कहना था कि 2014 में कांग्रेस 50 से नीचे सिमटी थी तो 2019 में राफेल डील में करप्शन और चौकीदार चोर है जैसे तमाम नारों के बाद भी महज 52 सीटें ही जीत सकी। उनका कहना था कि प्रियंका राहुल से कहीं ज्यादा बेहतर और मारक हैं।

हाशिए पर लाने के लिए प्रियंका को दी गई थी 2022 यूपी चुनाव की कमान

हालांकि इस तरह की किसी भी मांग को तवज्जो नहीं दी गई। सोनिया गांधी ने कुछ देर के लिए कांग्रेस अध्यक्ष की खाली पड़ी कुर्सी को संभाला और उसके बाद चुनाव करा दिए गए, जिसमें मल्लिकार्जुन खड़गे ने शशि थरूर को शिकस्त देकर पार्टी का सबसे बड़ा पद हासिल किया। सूत्र कहते हैं कि चुनाव से पहले टीम राहुल ने ऐसा सीन क्रिएट कर दिया था जिसमें प्रियंका गांधी को अध्यक्ष बनाने की मांग ठंडे बस्ते में चली गई थी। 2022 यूपी चुनाव का सारा जिम्मा राहुल ने प्रियंका को दिया था। जानकार कहते हैं कि राहुल को पता था कि यूपी में कांग्रेस को जिंदा करना हंसी खेल नहीं होगा। लिहाजा सारा दारोमदार प्रियंका पर डाल दिया गया। वो लड़ीं शिद्दत से लड़ीं लेकिन कांग्रेस ही इतनी बुरी गत हुई जो किसी ने सोचा भी न होगा। केवल दो सीटें मिलीं।

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चुनाव के बाद राहुल ने खड़गे को बनवा लिया अध्यक्ष 

2022 में ही कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव कराया गया लेकिन यूपी चुनाव खत्म होने के बाद। उसके बाद के दौर में राहुल ने अपने मनमाफिक तरीके से खड़गे को अध्यक्ष की कुर्सी पर बिठा दिया। जानकार कहते हैं कि राहुल यूपी की कमान प्रियंका को देने के इच्छुक नहीं थे। लेकिन उनकी बहन ने एक चुनावी सभा में एक ऐसी अपील कर दी जिससे उनको यूपी का जिम्मा दिया गया। तब प्रियंका ने कहा था कि वो 50 से ज्यादा उम्र ही हो चुकी हैं लेकिन बेरोजगार हैं। उनके इस बयान के बाद कांग्रेस में उथल पुथल मची तो राहुल ने उनको यूपी का जिम्मा दे दिया।

2024 में अमेठी खाली थी पर प्रियंका को किया गया नजरंदाज

2024 चुनाव में सोनिया ने जब रायबरेली और राहुल ने अमेठी सीट छोड़ी तो लगा कि प्रियंका को अमेठी से उतारा जा सकता है, क्योंकि राहुल राय बरेली के साथ केरल के वायनाड से चुनाव मैदान में थे। लेकिन प्रियंका को यहां भी मायूसी हाथ लगी। हालांकि प्रियंका की दावेदारी को मजबूत करने के लिए राबर्ड वाड्रा ने खुद को उम्मीदवार के तौर पर पेश भी किया। लेकिन राहुल अपनी बहन को चुनावी मैदान में उतारने के मूड़ में नहीं दिखे। जब राहुल दोनों जगहों से चुनाव जीत गए तो टीम प्रियंका ने आरपार की लड़ाई छेड़ दी। जानकार कहते हैं कि जब दबाव हद से ज्यादा हो गया तो राहुल ने अनमने तौर पर प्रियंका को वायनाड का टिकट थमा दिया। 

नाराज प्रियंका ने गुजरात जाने से गुरेज किया पर अमित शाह से मिलीं

वायनाड जीतने के बाद प्रियंका का शानदार राजनीतिक आगाज हुआ। लेकिन अल्लू अर्जुन की अरेस्ट ने उनकी ओपनिंग पर पानी फेर दिया। भीतर के लोग कहते हैं कि प्रियंका भी समझती हैं कि अल्लू की अरेस्ट सोची समझी साजिश थी, जिसे उनकी ही सरकार ने अंजाम दिया। इस वाकये के बाद से प्रियंका पार्टी के बड़े कार्यक्रमों से नदारद दिखीं। गुजरात में कांग्रेस का जब 84वां अधिवेशन हुआ तो प्रियंका उसमें शरीक नहीं हुईं। कहा गया कि वो विदेश में हैं। आखिर ऐसी क्या वजह रही जो प्रियंका को इतने बड़े कार्यक्रम से पहले विदेश जाना पड़ गया। जानकार कहते हैं कि इसकी वजह ये थी कि वो नाराज हैं। यही वजह थी कि वायनाड के मसले पर वो अमित शाह से मिलने उनके दफ्तर में चली गईं और फिर ट्वीट करके उनकी तारीफ भी की। कहने की जरूरत नहीं कि भाई बहन के बीच कहीं न कहीं कुछ न कुछ तो गड़बड़ है? 

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