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शख्सियत बेमिसाल: अरुण जेटली ने तर्कों से विपक्ष को दी मात, आर्थिक सुधार का रचा इतिहास

अरुण जेटली, जिन्हें न केवल एक तेज-तर्रार वकील और राजनेता के रूप में जाना जाता था, बल्कि उनकी शायराना अंदाज और तर्कपूर्ण भाषणों ने विपक्षियों को भी उनका मुरीद बना दिया था।

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Mukesh Pandit
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Arun Jaitely
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नई दिल्ली, आईएएनएस।भारतीय राजनीति में कुछ चेहरे ऐसे होते हैं, जो अपनी बुद्धिमत्ता, वाकपटुता और नेतृत्व क्षमता से इतिहास में अमर हो जाते हैं। ऐसी ही शख्सियत थे अरुण जेटली, जिन्हें न केवल एक तेज-तर्रार वकील और राजनेता के रूप में जाना जाता था, बल्कि उनकी शायराना अंदाज और तर्कपूर्ण भाषणों ने विपक्षियों को भी उनका मुरीद बना दिया था।

वकालत का हुनर विरासत में मिला

28 दिसंबर 1952 को दिल्ली में एक पंजाबी हिंदू ब्राह्मण परिवार में जन्मे अरुण जेटली ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा दिल्ली में पूरी की। उनके पिता महाराज किशन जेटली एक प्रतिष्ठित वकील थे, जिनसे उन्हें वकालत का हुनर विरासत में मिला। 1977 में दिल्ली विश्वविद्यालय के लॉ फैकल्टी से एलएलबी की डिग्री हासिल करने के बाद जेटली ने दिल्ली हाईकोर्ट और बाद में सुप्रीम कोर्ट में वकालत शुरू की। उनकी कानूनी दक्षता और तर्कशक्ति ने उन्हें जल्द ही एक प्रतिष्ठित वकील बना दिया।

आपातकाल के दौरान 19 महीने जेल में रहे

अरुण जेटली का राजनीतिक जीवन 1970 के दशक में जय प्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति आंदोलन से शुरू हुआ। 1974 में वे दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष बने और आपातकाल (1975-77) के दौरान 19 महीने जेल में रहे। इस दौरान उनकी संगठनात्मक क्षमता और नेतृत्व कौशल उभरकर सामने आया। 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनने पर वे जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य बने।

सियासी सफर को नई ऊंचाई दी

1980 में भारतीय जनता पार्टी के गठन के बाद अरुण जेटली ने पार्टी का दामन थामकर अपने सियासी सफर को नई ऊंचाई दी। 1991 में वे भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य बने और 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में उन्हें सूचना और प्रसारण राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और विनिवेश राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) नियुक्त किया गया था। इसके बाद, 23 जुलाई 2000 को राम जेठमलानी के इस्तीफे के बाद जेटली को कानून, न्याय और कंपनी मामलों के मंत्री का अतिरिक्त कार्यभार सौंपा गया।

रणनीतिकार और संकटमोचक थे

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अरुण जेटली सिर्फ एक राजनेता नहीं, बल्कि एक विचारक, रणनीतिकार और संकटमोचक थे। 2004 से 2014 तक राज्यसभा में विपक्ष के नेता के रूप में उनकी लोकप्रियता चरम पर पहुंची। उनकी तार्किक और प्रभावशाली वक्तृत्व शैली ने उन्हें संसद में एक मजबूत आवाज बनाया। जेटली न केवल एक कुशल प्रशासक थे, बल्कि संकट के समय सरकार के लिए संकटमोचक भी साबित हुए। चाहे वह संसद में विपक्ष के सवालों का जवाब देना हो या नीतिगत फैसलों को जनता तक स्पष्ट करना, उनकी वाक्पटुता और तथ्यपरक तर्क हमेशा प्रभावशाली रहे। उनकी लेखन शैली और ब्लॉग्स ने भी जनता के बीच जटिल मुद्दों को समझाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

विचारधारा और व्यवहारिकता के बीच संतुलन 

वे एक ऐसे नेता थे, जो विचारधारा और व्यवहारिकता के बीच संतुलन बनाए रखते थे। भाजपा के भीतर वे एक उदारवादी चेहरा थे, जो विभिन्न विचारधाराओं को जोड़ने में सक्षम थे। उनकी सौम्यता, बौद्धिक गहराई और हास्यबोध ने उन्हें सहयोगियों और विरोधियों दोनों का सम्मान दिलाया।

2014 में नरेंद्र मोदी सरकार में वित्त मंत्री बनने के बाद जेटली ने कई ऐतिहासिक फैसले लिए थे। जीएसटी लागू करने में उनकी भूमिका अहम थी, जिसके लिए उन्होंने राज्यों के बीच सहमति बनाई। नोटबंदी जैसे साहसिक कदम में भी उनकी रणनीतिक दृष्टि झलकती थी। हालांकि इन फैसलों पर विपक्ष का विरोध भी झेलना पड़ा, लेकिन अरुण जेटली ने हमेशा तर्क और धैर्य के साथ जवाब दिया।

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जेटली का निजी जीवन उतना ही प्रेरणादायक था जितना उनका सार्वजनिक जीवन। उनकी पत्नी संगीता जेटली और दो बच्चे उनके पारिवारिक जीवन का आधार थे। 2019 में स्वास्थ्य खराब होने के कारण उन्होंने मंत्री पद से हटने का फैसला लिया। 24 अगस्त 2019 को 66 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।

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