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बिहार चुनाव 2025 : ओवैसी का तीसरा मोर्चा बनेगा महागठबंधन के लिए सिरदर्द? | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क ।बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई हैं। असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM ने महागठबंधन से भाव न मिलने के बाद अब तीसरे मोर्चे की तरफ अपने कदम बढ़ा दिए हैं। यह फैसला न सिर्फ AIMIM के लिए, बल्कि बिहार की सियासी बिसात पर महागठबंधन और NDA, दोनों के लिए बड़े मायने रखता है।
बिहार में चुनाव का बिगुल बजने से पहले ही राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज हो गई है। हर पार्टी अपनी रणनीति को धार देने में जुटी है, लेकिन इस बार केंद्र में है असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM, जिसने महागठबंधन से भाव न मिलने के बाद अब तीसरे मोर्चे की तरफ अपने कदम बढ़ा दिए हैं।
यह फैसला न सिर्फ AIMIM के लिए, बल्कि बिहार की सियासी बिसात पर महागठबंधन और NDA, दोनों के लिए बड़े मायने रखता है। क्या ओवैसी का यह कदम तेजस्वी यादव के सपनों पर पानी फेर देगा? या फिर इससे NDA को फायदा मिलेगा? आइए, इस पूरी गुत्थी को विस्तार से सुलझाते हैं।
महागठबंधन से क्यों टूटा AIMIM का दिल?
काफी समय से AIMIM बिहार में महागठबंधन का हिस्सा बनने की कोशिश कर रही थी। पार्टी का मानना था कि भाजपा और NDA को हराने के लिए सभी सेक्युलर दलों को एक साथ आना चाहिए, ताकि वोटों का बंटवारा न हो। बिहार प्रदेश में AIMIM के इकलौते विधायक अखतरुल ईमान ने इस बात पर जोर भी दिया था।
उदासीन रवैया: सूत्रों के मुताबिक, महागठबंधन ने AIMIM को लगातार नजरअंदाज किया।
बैठकों से दूरी: घोषणा पत्र कमेटी की पटना में हुई महत्वपूर्ण बैठक में भी AIMIM को आमंत्रित नहीं किया गया।
तेजस्वी की चुप्पी: तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाले महागठबंधन से कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया न मिलने के बाद AIMIM ने अपनी रणनीति बदलने का फैसला किया।
यह सब दर्शाता है कि महागठबंधन शायद AIMIM को अपने साथ लेना ही नहीं चाहता था। लेकिन, क्या यह फैसला उनकी रणनीति का हिस्सा है या एक बड़ी भूल?
तीसरे मोर्चे की तैयारी: कौन-कौन आएगा साथ?
AIMIM अब बिहार विधानसभा चुनाव में तीसरे मोर्चे के तौर पर चुनावी मैदान में उतरने की कवायद में जुट गई है। अखतरुल ईमान ने स्पष्ट कर दिया है कि उनकी पार्टी NDA और INDIA अलायंस से अलग रास्ता लेगी।
क्या 2020 का इतिहास दोहराया जाएगा? 2020 के विधानसभा चुनाव में भी AIMIM ने उपेन्द्र कुशवाहा की तत्कालीन राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (RLSP), मायावती की बहुजन समाज पार्टी (BSP), देवेन्द्र प्रसाद यादव की समाजवादी जनता दल (डेमोक्रेटिक) (SJDD), ओम प्रकाश राजभर की सुहालदेव भारतीय समाज पार्टी (SBSP) और संजय सिंह चौहान की जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट) के साथ मिलकर ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेकुलर फ्रंट बनाया था।
AIMIM का प्रदर्शन 2020
- AIMIM ने 19 सीटों पर चुनाव लड़ा था।
- इसमें से 5 सीटों पर जीत हासिल की थी।
- यह प्रदर्शन ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेकुलर फ्रंट में सबसे बेहतर था।
इस बार भी AIMIM उन छोटी पार्टियों को एकजुट करने की कोशिश करेगी, जिन्हें न तो NDA में जगह मिल पा रही है और न ही महागठबंधन में। इसमें कुछ क्षेत्रीय दल, वामपंथी दल के कुछ धड़े और जातिगत समीकरण साधने वाली पार्टियां शामिल हो सकती हैं। क्या यह मोर्चा पिछली बार से ज्यादा मजबूत होगा? यह देखना दिलचस्प होगा।
क्या तीसरा मोर्चा NDA के लिए खुशखबरी है?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि AIMIM का अलग लड़ना NDA के लिए एक "बड़ी खुशखबरी" हो सकता है। इसके पीछे कई तर्क दिए जा रहे हैं:
वोटों का बंटवारा: AIMIM का मुस्लिम बहुल इलाकों में अच्छा जनाधार है। अगर वे महागठबंधन से अलग चुनाव लड़ते हैं, तो मुस्लिम वोटों का बंटवारा होगा।
महागठबंधन को नुकसान: यह बंटवारा सीधे तौर पर महागठबंधन को नुकसान पहुंचाएगा, क्योंकि मुस्लिम मतदाता पारंपरिक रूप से उनके साथ रहे हैं।
NDA को फायदा: वोटों के बंटवारे से NDA के उम्मीदवारों की जीत की संभावना बढ़ जाएगी, भले ही उन्हें कम वोट मिलें।
यह ठीक वैसा ही समीकरण है जैसा 2020 में देखने को मिला था, जब AIMIM के चुनाव लड़ने से कुछ सीटों पर वोटों का बंटवारा हुआ था, जिसका परोक्ष रूप से NDA को लाभ मिला।
तेजस्वी के लिए चुनौती: क्या बदलेंगे समीकरण?
तेजस्वी यादव बिहार में महागठबंधन का चेहरा हैं और वे भाजपा को टक्कर देने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। लेकिन AIMIM का अलग होना उनके लिए एक बड़ी चुनौती बन सकता है।
मुस्लिम मतों का ध्रुवीकरण: अगर मुस्लिम मतदाता AIMIM की तरफ मुड़ते हैं, तो तेजस्वी को एक बड़े वोट बैंक का नुकसान होगा।
मजबूत गठबंधन की दरकार: बिहार में चुनाव जीतने के लिए एक मजबूत और एकजुट गठबंधन की आवश्यकता है, और AIMIM का अलग होना इस एकजुटता पर सवाल खड़े करता है।
पिछली गलतियों से सीख: 2020 के नतीजों से सबक लेना तेजस्वी के लिए बेहद जरूरी है। क्या वे AIMIM को वापस लाने की कोई कोशिश करेंगे या इसे नजरअंदाज करते रहेंगे?
यह सवाल अभी भी हवा में है और इसका जवाब आने वाले समय में ही मिल पाएगा।
AIMIM की रणनीति: किंगमेकर या सिर्फ वोट कटवा?
AIMIM की रणनीति हमेशा से एक खास समुदाय के वोटों पर केंद्रित रही है। बिहार में भी उनका लक्ष्य सीमांचल के मुस्लिम बहुल इलाकों में अपनी पकड़ मजबूत करना है।
किंगमेकर की भूमिका: अगर AIMIM कुछ सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रहती है, तो वे बिहार की राजनीति में किंगमेकर की भूमिका निभा सकते हैं, खासकर अगर सरकार बनाने के लिए सीटों का गणित उलझ जाए।
वोट कटवा का ठप्पा: हालांकि, दूसरी तरफ उन्हें 'वोट कटवा' पार्टी का ठप्पा भी झेलना पड़ सकता है, खासकर अगर उनके चुनाव लड़ने से NDA को फायदा होता है।
राष्ट्रीय राजनीति में पहचान: बिहार में बेहतर प्रदर्शन से AIMIM को राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान मजबूत करने में मदद मिलेगी।
ओवैसी की पार्टी को यह तय करना होगा कि वे सिर्फ एक समुदाय की आवाज बनकर रहना चाहते हैं या बिहार की राजनीति में एक बड़ी ताकत के रूप में उभरना चाहते हैं।
बिहार चुनाव 2025: आगे क्या?
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 अभी दूर है, लेकिन राजनीतिक बिसात पर चालें चलनी शुरू हो गई हैं। AIMIM का यह कदम निश्चित रूप से चुनाव को और भी दिलचस्प बना देगा।
महागठबंधन की प्रतिक्रिया: क्या तेजस्वी यादव और महागठबंधन AIMIM को मनाने की कोशिश करेंगे? या वे अपनी रणनीति पर कायम रहेंगे?
NDA की रणनीति: NDA इस स्थिति का फायदा कैसे उठाएगा? क्या वे AIMIM को और उकसाएंगे या अपने पारंपरिक वोट बैंक पर ध्यान केंद्रित करेंगे?
अन्य छोटे दल: क्या कोई और छोटा दल तीसरे मोर्चे में शामिल होगा?
इन सभी सवालों के जवाब आने वाले महीनों में मिलेंगे, लेकिन एक बात तो तय है कि बिहार का चुनावी दंगल इस बार और भी रोमांचक होने वाला है। राजनीतिक पार्टियां हर चाल सोच-समझकर चलेंगी, क्योंकि एक गलत कदम भी सत्ता से दूर कर सकता है।
आपका नजरिया इस खबर पर क्या है? क्या आपको लगता है कि AIMIM का तीसरा मोर्चा बिहार की राजनीति में गेमचेंजर साबित होगा? नीचे कमेंट करके हमें बताएं!
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