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बिहार में बवाल! चुनाव आयोग पर क्यों बरपा विपक्ष का गुस्सा, सड़कों से रेलवे ट्रैक तक 'भारत बंद' की देखें तस्वीरें... | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क ।बिहार में चुनावी बिसात पर विपक्षी दलों ने एक नया चुनावी दांव चला है! विपक्ष ने चुनाव आयोग के मतदाता पुनरीक्षण कार्यक्रम को लेकर आज बुधवार 9 जुलाई 2025 को पूरे राज्य में चक्काजाम कर रखा है। ट्रेनें रोकी गईं हैं, सड़कें अवरुद्ध की गईं हैं और चारो ओर विरोध प्रदर्शनों का तांडव देखा जा सकता है। आखिर क्या है यह पूरा मामला और क्यों इतनी आग बबूला है विपक्ष?
बुधवार सुबह का सूरज अभी पूरी तरह निकला भी नहीं था कि बिहार की सड़कों पर विपक्षी दलों के कार्यकर्ता हंगामा करते नजर आए। 'चुनाव आयोग मुर्दाबाद' के नारों से आवाज गूंज उठी। पटना से लेकर मुजफ्फरपुर, दरभंगा से लेकर वैशाली तक, हर जगह विपक्ष की बंद की घोषणा का असर साफ साफ दिख रहा है। इस दौरान आम जनता को खासी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। क्योंकि सड़कें जाम थीं और सार्वजनिक परिवहन ठप है हर तरफ हंगामें का माहौल दिखाई दे रहा है।
सोचिए, सुबह-सुबह ऑफिस या काम पर अथवा रोजाना मजदूरी पर निकलने वाले लोगों का क्या हाल हुआ होगा? वे बस ऑटो या रिक्शा का इंतजार करते रह गए, लेकिन सड़कों पर सिर्फ प्रदर्शनकारियों का जमावड़ा है। कई जगह तो टायर जलाकर आगजनी भी की गई, जिससे माहौल और तनावपूर्ण हो गया।
गांधी सेतु पर 'महाजाम', पैदल चलने को मजबूर हुए लोग
पटना को उत्तर बिहार से जोड़ने वाला लाइफलाइन, महात्मा गांधी सेतु, आज पूरी तरह से ठप पड़ गया। राजद विधायक मुकेश रोशन के नेतृत्व में विपक्षी कार्यकर्ताओं ने पुल को जाम कर दिया। इसका नतीजा यह हुआ कि मीलों लंबी गाड़ियों की कतारें लग गईं और लोगों को अपने गंतव्य तक पहुंचने के लिए पैदल ही जाना पड़ा।
यह सिर्फ सड़क जाम नहीं था, बल्कि हजारों लोगों की दिनचर्या का जाम था। बीमार लोग, स्कूली बच्चे और जरूरी काम से निकले लोग, सभी इस जाम में फंस गए। क्या विपक्ष ने आम लोगों की परेशानी के बारे में एक बार भी सोचा होगा, या सिर्फ अपने विरोध को दर्ज कराना ही उनका मकसद था?
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मुजफ्फरपुर में हाइवे पर टायरों की आग, नारेबाजी से गूंजा चौक
मुजफ्फरपुर का जीरो माइल चौक, जो पटना-गया और मुजफ्फरपुर-दरभंगा हाईवे को जोड़ता है, आज विरोध प्रदर्शनों का केंद्र बन गया। इंडिया महागठबंधन के कार्यकर्ताओं ने यहां सड़कों पर टायर जलाकर जमकर आगजनी की और सरकार के खिलाफ नारेबाजी की। उनका आरोप था कि केंद्र सरकार के इशारे पर चुनाव आयोग द्वारा बिहार में पूर्ण मतदाता पुनरीक्षण कार्य कराया जा रहा है, जो गरीब, शोषित और वंचितों के लिए उचित नहीं है।
यह आरोप कितना सही है, यह तो आने वाला वक्त बताएगा। लेकिन एक बात साफ है कि विपक्ष इस मुद्दे को लेकर आर-पार की लड़ाई के मूड में है। क्या यह सिर्फ मतदाता सूची का मामला है या इसके पीछे कोई गहरी राजनीतिक साजिश है?
नमो भारत ट्रेन भी नहीं बख्शी! दरभंगा जंक्शन पर रोकी ट्रेन
बंद समर्थकों का गुस्सा सिर्फ सड़कों तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि रेलवे ट्रैक तक भी पहुंच गया। दरभंगा जंक्शन पर राजद नेताओं ने नमो भारत ट्रेन को रोक दिया। रेल चक्का जाम करते हुए राजद नेता प्रेमचंद्र उर्फ भोलू यादव ने दावा किया कि मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण का कार्य कमजोर और पिछड़े वर्गों को मतदान के अधिकार से वंचित करने की साजिश है। उन्होंने धमकी दी कि अगर उनकी मांगें नहीं मानी गईं, तो आंदोलन को और उग्र किया जाएगा।
ट्रेनों को रोकना एक गंभीर मसला है, क्योंकि इससे न केवल यात्रियों को असुविधा होती है, बल्कि रेलवे को भी भारी नुकसान होता है। क्या यह विरोध जायज है, या सिर्फ अपनी बात मनवाने का एक दबाव भरा तरीका?
पटना के ग्रामीण इलाकों में भी चक्काजाम, 'वोटबंदी' का आरोप
पटना जिले के मनेर, बिहटा और अन्य ग्रामीण इलाकों में भी विपक्षी कार्यकर्ताओं ने जोरदार प्रदर्शन किया। राष्ट्रीय राजमार्ग 30 पर टायर जलाकर आगजनी की गई और चक्काजाम किया गया। राजद और भाकपा माले के नेताओं ने बीजेपी और मोदी सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी की। उनका आरोप था कि जिस तरह मोदी सरकार ने नोटबंदी की थी, उसी तरह अब बिहार में चुनाव से पहले 'वोटबंदी' करने का काम किया जा रहा है, जिससे तीन करोड़ से ज्यादा लोगों का मतदाता सूची से नाम बाहर हो जाएगा।
क्या यह वाकई वोटबंदी है या मतदाता सूची को अद्यतन करने की एक सामान्य प्रक्रिया? इस आरोप में कितनी सच्चाई है, यह तो चुनाव आयोग और सरकार ही बता सकती है। लेकिन विपक्ष ने इसे एक बड़ा मुद्दा बना दिया है।
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विपक्ष का एकजुटता प्रदर्शन: क्या है इसका चुनावी गणित?
यह चक्काजाम सिर्फ मतदाता सूची पुनरीक्षण का विरोध नहीं है, बल्कि बिहार में विपक्षी एकता का एक बड़ा प्रदर्शन भी है। राजद के साथ-साथ इंडिया महागठबंधन के अन्य घटक दल भी इसमें शामिल हैं। इमारत-ए-शरिया और सांसद पप्पू यादव ने भी इस बंद को अपना समर्थन दिया है। यह दर्शाता है कि विपक्षी दल आगामी चुनावों को लेकर कितने गंभीर हैं और वे किसी भी मुद्दे को भुनाने से पीछे नहीं हट रहे हैं।
यह एकजुटता आने वाले चुनावों में क्या रंग लाएगी, यह देखना दिलचस्प होगा। क्या यह बंद सरकार पर दबाव बनाने में कामयाब होगा, या सिर्फ एक दिन का प्रदर्शन बनकर रह जाएगा?
मतदाता पुनरीक्षण : क्या है पूरा मामला?
चुनाव आयोग मतदाता सूची को समय-समय पर अपडेट करता रहता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि सूची में केवल पात्र मतदाताओं के नाम हों और अपात्र लोगों के नाम हटा दिए जाएं। यह एक सामान्य प्रक्रिया है। हालांकि, विपक्ष का आरोप है कि बिहार में हो रहा यह विशेष पुनरीक्षण कमजोर वर्गों को मतदान के अधिकार से वंचित करने की साजिश है। वे इसे 'वोटबंदी' का नाम दे रहे हैं और इसका पुरजोर विरोध कर रहे हैं।
इस प्रक्रिया में नाम हटाए जाने के पीछे क्या कारण बताए जा रहे हैं? क्या वास्तव में किसी खास वर्ग को निशाना बनाया जा रहा है, या यह सिर्फ विपक्ष का राजनीतिक दांव है? इन सवालों के जवाब आने वाले दिनों में और स्पष्ट होंगे।
आगे क्या? क्या सरकार झुकेगी या आंदोलन होगा उग्र?
विपक्ष ने स्पष्ट कर दिया है कि अगर उनकी मांगें नहीं मानी गईं, तो आंदोलन को और तेज किया जाएगा। दूसरी ओर, सरकार और चुनाव आयोग इस मुद्दे पर क्या रुख अपनाते हैं, यह देखना बाकी है। क्या बातचीत के जरिए कोई हल निकलेगा या यह मामला और गरमाएगा?
यह तो वक्त ही बताएगा कि इस 'महाभारत' का नतीजा क्या होता है। लेकिन एक बात तय है, बिहार की राजनीति में एक नया अध्याय शुरू हो चुका है और मतदाता पुनरीक्षण का यह मुद्दा आने वाले दिनों में और गरमाएगा।
यह सवाल अहम है कि क्या वाकई बिहार में मतदाता सूची पुनरीक्षण के नाम पर लोकतंत्र खतरे में है, या यह सिर्फ विपक्ष द्वारा अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने का एक तरीका है? इस मुद्दे पर आम जनता की राय बंटी हुई है। कुछ लोग विपक्ष के साथ खड़े दिख रहे हैं, तो कुछ इसे अनावश्यक विरोध बता रहे हैं।
यह तो जनता ही तय करेगी कि कौन सही है और कौन गलत। लेकिन इस पूरे घटनाक्रम ने बिहार की राजनीति में एक नया मोड़ ला दिया है।
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