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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः बीजेपी एक तरफ राजनीति में नैतिकता की बात कहकर संसद में एक ऐसा बिल पेश करने जा रही है जिसमें जेल जाने पर प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों की भी कुर्सी जाने का प्रावधान है। वो कहती है कि राजनीति में नैतिकता जरूरी है। लेकिन बीजेपी का दोहरा चरित्र राजस्थान में देखने को मिला, जहां नैतिकता को ताक पर रखकर अपने जालसाज विधायक को बचाने के लिए पूरी सरकार जुट गई। हाईकोर्ट में अर्जी भी दे दी गई पर जजों ने सरकारी प्लानिंग फेल कर दी। अदालत ने साफ कह दिया कि विधायक है को क्या छोड़ दें।
विधायक हरपाल सिंह पर चल रहा है मुकदमा
राजस्थान हाई कोर्ट ने हाल ही में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) विधायक हरलाल सहारण उर्फ हरलाल सिंह के खिलाफ आपराधिक मामला वापस लेने की अनुमति के लिए राज्य सरकार की तरफ से दायर याचिका खारिज कर दी। जस्टिस इंद्रजीत सिंह और भुवन गोयल की बेंच ने कहा कि राज्य सरकार ने न तो मामला वापस लेने के लिए सरकारी वकील की रिपोर्ट पेश की और न ही इस फैसले के लिए कोई कारण बताए।
10वीं की जाली मार्कशीट बनाने को लेकर दर्ज हुआ था केस
2019 से लंबित इस मामले में आरोप लगाया गया है कि सहारण ने जिला परिषद चुनाव के लिए नामांकन पत्र दाखिल करते समय दसवीं कक्षा की जाली मार्कशीट और सर्टिफिकेट पेश किया था। न्यायालय ने कहा कि ऐसे मामले केवल इसलिए वापस नहीं लिए जा सकते क्योंकि वह विधायिका के सदस्य हैं।
राजस्थान बनाम चिमना राम के मामले में लगे आरोपों के अनुसार- अभियुक्त ने दसवीं कक्षा की जाली मार्कशीट तैयार की, जिसके आधार पर उसने जिला परिषद सदस्य का चुनाव लड़ने के लिए नामांकन पत्र प्रस्तुत किया, जिसमें उसे निर्वाचित घोषित किया गया। उसने पद पर बैठकर सार्वजनिक धन का दुरुपयोग किया। कोर्ट ने कहा कि ऐसे जघन्य मामलों में केवल अभियुक्त की अच्छी छवि या उसके विधायक होने की वजह से केस वापस लेने का औचित्य नहीं है।
अदालत ने यह भी कहा कि निचली अदालत ने सहारन के विरुद्ध अपराधों का पहले ही संज्ञान ले लिया था। उनके विरुद्ध आरोप भी तय कर दिए थे। संज्ञान आदेश के विरुद्ध पुनरीक्षण याचिका उच्च न्यायालय ने 2023 में खारिज कर दी थी।
डबल बेंच ने एडवोकेट जनरल को फटकारा
हाईकोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा- महाधिवक्ता न्यायालय को इस बात से संतुष्ट नहीं कर पाए हैं कि मुकदमा वापस लेने से लोक न्याय, लोक व्यवस्था की भावनाएं किस तरह से पूरी होंगी। न ही वे इस बात से संतुष्ट हैं कि मौजूदा आवेदन सद्भावनापूर्वक, लोक नीति और न्याय के लिए में पेश किया गया है, न कि कानूनी प्रक्रिया को बाधित करने के लिए।
महाधिवक्ता राजेंद्र प्रसाद ने पहले तर्क दिया था कि हालांकि सहारन के विरुद्ध आरोपपत्र दायर किया गया था, लेकिन उनके विरुद्ध पर्याप्त साक्ष्य उपलब्ध नहीं थी। प्रसाद ने यह भी तर्क दिया कि सहारन के विरुद्ध आरोप गलत तरीके से तय किए गए थे।
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