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चिराग पासवान को रास नहीं आ रही दिल्ली, चाहते हैं नीतीश के नक्शेकदम पर चलना

चिराग इसी वजह से ऐसी सीट से चुनाव लड़ने का मन बना रहे हैं जो जनरल हो। अगर वो ऐसी सीट से विधायक बनते हैं तो संकेत जाएगा कि हर तबका उनको अपना नेता मानता है। जब कद बढ़ा होगा तभी लोगों का हुजूम उनके पीछे आएगा।

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Shailendra Gautam
Chirag Paswan meeting Nitish Kumar at CM House

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः हालिया लोकसभा चुनाव को चिराग पासान के लिए एक नए जन्म जैसा माना जा सकता है। राजनीति में तकरीबन हाशिए पर जा चुके चिराग ने पांच सीटें जीतकर लोगों को ये एहसास करा दिया कि वो अभी चुके नहीं हैं। ये उनके लिए एक नए जन्म के जैसा था। हाजीपुर से लोकसभा में पहुंचने के बाद नरेंद्र मोदी ने उनको अपनी कैबिनेट में साबित किया। ये उनके लिए एक दूसरा अहम मुकाम था। लेकिन लगता है कि दिल्ली की आबोहवा चिराग को रास नहीं आ रही है। वो फिर से बिहार की राजनीति में लौटने के लिए छटपटा रहे हैं। 

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आरा की रैली में चिराग कर सकते हैं कोई चौंकाने वाला ऐलान

रविवार यानि कल वो भोजपुर के आरा इलाके में एक रैली करने जा रहे हैं। माना जा रहा है कि चिराग इस रैली के जरिये अपनी बिहार वापसी का ऐलान करना चाहते हैं। पिछले कुछ समय की सियासी सरगर्मी को देखें तो लोजपा (रामविलास) बिहार की राजनीति में खुद को ऊंचा उठाने की जोड़तोड़ करती दिखाई देती है। चिराग की सीटों को लेकर दावेदारी के तरीके से दिख रहा है कि वो बिहार को कितनी संजीदगी से ले रहे हैं। फिलहाल जिस बात के संकेत मिल रहे हैं उनमें वो खुद भी विधानसभा चुनाव लड़ने के इच्छुक बताए जा रहे हैं। उनके चुनाव लड़ने में किसी को दिक्कत नहीं है। न बीजेपी को न ही नीतीश कुमार को। अलबत्ता चिराग ने जिस तरह से जनरल सीट से चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर की है उससे बहुतों की पेशानियों पर बल आने लगे हैं। 

चिराग कंप्यूटर साइंस में बीटेक हैं। वो बालीवुड में भी अपना हाथ आजमा चुके हैं। कई घाट का पानी पीने के बाद उनको ये बात अच्छे से समझ में आ गई है कि राजनीति में अगर कुछ हासिल करना है तो अपने चार फीसदी वोट बैंक (पासवान) को साधते हुए दूसरी जातियों को अपनी तरफ लाने की कोशिश करनी होगी। राजनीति की चौसर पर वो जिस तरह से अपने कदम आगे बढ़ा रहे हैं उससे लगता है कि वो नीतीश कुमार के नक्शे कदम पर चलने का मन बना चुके हैं। 

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नीतीश कुमार पिछले दो दशक से बिहार की राजनीति का सबसे मजबूत चेहरा माने जाते हैं। उनकी पार्टी जदयू की सीटें कभी भी इतनी नहीं आईं कि वो अपने दम पर सरकार बना सकें। लेकिन उनके पास एक वोट बैंक है। एक तबका जो उनको अपना नेता मानता है और हमेशा उनके पीछे रहता है। नीतीश उस तबके के सहारे खुद को हमेशा ताकतवर बनाए रखते हैं। यही वजह है कि पिछले दो दशकों से वो बिहार की सत्ता के शीर्ष पायदान पर बैठे हैं। 

लंबी इनिंग खेलने की स्थिति में नहीं दिख रहे हैं नीतीश कुमार

चिराग को पता है कि नीतीश कुमार अब उम्र के उस पड़ाव पर पहुंच चुके हैं जहां वो बड़ी इनिंग खेलने की स्थिति में नहीं हैं। उम्र का तकाजा है और सेहत का भी। पिछले कुछ अरसे से जिस तरह की हरकतें नीतीश करते दिखे हैं उससे लग रहा है कि उनका स्वास्थ्य पहले जैसा नहीं है। नीतीश के उत्तराधिकारी की बात करें तो उनके बेटे में वो दम नहीं लगता जो उनकी विरासत को उनके ही स्टाइल में लेकर आगे बढ़ सके। जदयू में सेकेंड लाइन उन्होंने खुद तैयार नहीं है। 

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ऐसे में नीतीश जब बिहार की राजनीति में नहीं होंगे तो उनकी जगह लेने वाला कोई तो होना चाहिए। चिराग इस बात को दिमाग में बिठाकर अपने कदम आगे बढ़ा रहे हैं। लोकसभा 2024 चुनाव के दौरान चिराग को तकरीबन 6. 57 फीसदी वोट मिले थे। उनकी पार्टी ने पांच सीटें जीती थीं। नीतीश की बात करें तो जदयू ने 12 सीटों पर जीत हासिल की थी। उनका वोट परसेंटेज 18 से ज्यादा था। यानि अभी के माहौल में नीतीश कुमार चिराग की अपेक्षा मजबूत स्थिति में हैं। चिराग को पता है कि नीतीश का मुकाम हासिल करने के लिए उन्हें उनके जूते में अपना पैर फिट करना होगा। यानि जिस तरह से नीतीश कुमार कई तबकों में अपनी पैठ बनाए हुए हैं उसी अंदाज में चिराग को पासवान वोटरों के अलावा दूसरे तबकों तक पहुंच बनानी होगी। 

बिहार में कोई ताकतवर नेता नहीं तैयार कर सकी बीजेपी

विश्लेषक कहते हैं कि चिराग के लिए मुफीद स्थिति ये भी है कि नीतीश के बीमार होने के साथ बीजेपी केवल नरेंद्र मोदी के करिश्मे के सहारे है। बीजेपी ने सूबे में ऐसा कोई नेता तैयार नहीं किया जिसे लोकप्रिय माना जा सके। गिरिराज किशोर या सम्राट चौधरी को पार्टी तवज्जो तो देती है लेकिन वो इतनी अहमियत हासिल नहीं कर सके जो बीजेपी को बिहार में जितवा सकें। बीजेपी के पास चिराग जैसे कोई नेता नहीं है। चिराग की बिहार में एक अलग पहचान तो है ही। उनको राजनीति एनडीए के बैनर तले करनी है। लिहाजा तेजस्वी उनके लिए चुनौती पैदा नहीं करते।    

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2005 में 29 सीटें जीती थी लोजपा, बेंचमार्क को तोड़ना चाहते हैं चिराग

वैसे लोजपा का विधानसभा में सबसे बेहतरीन रिकार्ड साल 2005 का है। तब उनके पिता रामविलास पासवान अपने फुल फार्म में थे। उनकी पार्टी ने 29 सीटों पर कामयाबी हासिल की थी। चिराग जानते हैं कि उन्हें बढ़ा बनना है तो इस बेंचमार्क से कहीं ज्यादा आगे निकलना होगा। अगर वो एक खास वोटबैंक के सहारे रहेंगे तो राजनीति सीमित हो जाएगी। जानकार कहते हैं कि चिराग इसी वजह से ऐसी सीट से चुनाव लड़ने का मन बना रहे हैं जो जनरल हो। अगर वो ऐसी सीट से विधायक बनते हैं तो संकेत जाएगा कि हर तबका उनको अपना नेता मानता है। जब कद बढ़ा होगा तभी लोगों का हुजूम उनके पीछे आएगा। लोग आएंगे तो नीतीश कुमार के जूते में पैर फिट करने में चिराग को ज्यादा मुश्किल पेश नहीं आएगी। ये ही वक्त का तकाजा भी है।

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