Advertisment

अगर- मगर के भंवर से निकलकर उद्धव और राज ने खेल दिया मास्टर स्ट्रोक

उद्धव और राज ने एक साथ आने के लिए जिस मुद्दे को चुना वो मराठी की अस्मिता को बचाने को लेकर है। दोनों ने सरकार के उस फैसले का विरोध किया जिसमें वो हिंदी को मराठी सूबे में थोपने की कोशिश में लगी थी।

author-image
Shailendra Gautam
Uddhav-Raj Thackeray

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः महाराष्ट्र की सियासत में गुरुवार का दिन खासी अहमियत वाला था। इसकी वजह ये है कि जो बातें लंबे अरसे से सियासी हलकों की गुफ्तगू का विषय थीं वो गुरुवार को हकीकत बनती दिखीं। उद्धव और राज एक साथ थे। उनका एक साथ होना अपने आप में अहम है लेकिन जिस वजह से वो सालों बाद साथ आए वो और भी खास है। 

Advertisment

उद्धव और राज ने एक साथ आने के लिए जिस मुद्दे को चुना वो मराठी की अस्मिता को बचाने को लेकर है। दोनों ने सरकार के उस फैसले का विरोध किया जिसमें वो हिंदी को मराठी सूबे में थोपने की कोशिश में लगी थी। दोनों भाईयों ने मराठी के नाम पर एक दूसरे का हाथ पकड़ा तो सियासत को जानने वाले भी हैरत में पड़ गए। उनका मानना है कि ये दोनों का मास्टर स्ट्रोक है।

महाराष्ट्र की राजनीति में ठाकरे ब्रांड तो मराठी एक चुंबक

महाराष्ट्र की राजनीति में ठाकरे नाम को एक ब्रांड की तरह से लिया जाता है तो मराठी को एक ऐसा चुंबक माना जाता है जो ठाकरे ब्रांड के साथ महाराष्ट्र के लोगों को जोड़ती है। बाल ठाकरे ने जब अपनी राजनीति की शुरुआत की तो वो इस बात को बखूबी समझते थे। यही वजह रही कि उन्होंने मराठी मानुष का नारा दिया। मराठी अस्मिता की रक्षा को लेकर वो हमेशा तलवार भांजते दिखे। लोगों ने उनको सिर आंखों पर बिठाया और बाल ठाकरे इतने बड़े बन गए कि उनके एक इशारे पर मुंबई के साथ पूरा महाराष्ट्र ठहर जाया करता था। बीजेपी ने जब सूबे की सियासत में पैर पसारने की कोशिश की तो उसे बाल ठाकरे को बड़ा भाई मानना पड़ा। 

Advertisment

बाल ठाकरे की लीक पर आगे बढ़ रहे हैं दोनों भाई

बाल ठाकरे अपने पूरे जीवन में महाराष्ट्र और मराठी की वकालत करते देखे गए। उनकी मौत से पहले ही शिवसेना दो फाड़ हो गई थी। राज ठाकरे ने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) का गठन किया और अपने चाचा यानि बाल ठाकरे की लाइन को मजबूती से पकड़ने की कोशिश की। पिता की मौत के बाद उद्धव को जब शिवसेना की कमान मिली तो उन्होंने भी मराठी अस्मिता को बचाने की कसम खाकर पिता के दिखाए रास्ते पर चलने का फैसला किया। हालांकि राज को शुरु में कुछ सफलता मिली पर एक समय के बाद वो हाशिये पर आने लग गए। 

उद्धव जब तक बीजेपी के साथ रहे तब तक वो दुरुस्त रहे। लेकिन जैसे ही उन्होंने बीजेपी का साथ छोड़कर कांग्रेस और शरद पवार के समर्थन से सरकार बनाई उनका पतन शुरू हो गया। बीजेपी ने एकनाथ शिंदे को अपने पाले में खड़ा करके उद्धव की सरकार गिरा दी। उसके बाद शिवसेना टूटी। फिर शिवसेना का नाम भी उद्धव से छीन लिया गया। 2024 के लोकसभा चुनाव ने महा विकास अघाड़ी (उद्धव, कांग्रेस, शरद पवर) को संजीवनी दी पर उसके बाद जो विधानसभा चुनाव हुए उसने उनको अघाड़ी को तकरीबन ठिकाने ही लगा दिया। 

Advertisment

उसके बाद से माना जा रहा था कि उद्धव अब खत्म होने की कगार पर हैं। क्योंकि जिस मराठी और महाराष्ट्र के नाम पर वो खुद को जिंदा करने में लगे थे असेंबली चुनाव में उसकी हवा निकल गई। उद्धव रसातल की तरफ बढ़ते जा रहे थे पर राज ठाकरे की सुलह की पेशकश ने उनको फिर से नया जीवन दे दिया। उन्होंने भी आगे बढ़कर भाई का दामन थामने की कोशिश की। लेकिन बात नहीं बन पा रही थी। इसी बीच राज कभी देवेंद्र फडणवीस के साथ फाइव स्टार होटल में देखे गए तो कभी उनके घर पर एकनाथ शिंदे के मंत्री आते जाते दिखे।  Uddhav vs BJP | Raj and Uddhav together not present in content

उद्धव और राज ने सूबे की सियासत में मचा दी खलबली

माना जा रहा था कि दोनों भाईयों के बीच सुलह अब बीते समय की बात है। बीजेपी और शिंदे ने राज को अपने पाले में ला खड़ा किया है। पर हिंदी के विरोध के नाम पर जैसे ही दोनों भाई साथ दिखे, सियासी हलके में हलचल मच गई। जानकार कहते हैं कि उद्धव और राज एक साथ आए ये अच्छी बात है पर वो जिस मुद्दे पर साथ खड़े दिखे वो सूबे की सियासत में कोहराम मचा सकता है। ठाकरे ब्रान्ड है तो मराठी की बात चुंबक। दोनों ने मास्टर स्ट्रोक खेल दिया है। Uddhav Thackeray, Raj Thackeray, Maharashtra, Thackeray Brand, Marathi Identity  

uddhav Thackeray Raj and Uddhav together Uddhav vs BJP
Advertisment
Advertisment