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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः केरल की नीलांबुर विधानसभा सीट पर आज हुए बेहद रोमांचक उपचुनाव में कांग्रेस ने एलडीएफ की सीट छीन ली है। कांग्रेस के उम्मीदवार आर्यदान शौकत ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी माकपा के एम स्वराज को तकरीबन 11 हजार वोटों से हराया। सीपीआई(एम) समर्थित दो बार के निर्दलीय विधायक पीवी अनवर के इस्तीफे के कारण यहां उपचुनाव जरूरी हो गया था। अनवर ने इस बार भी निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा था। कांग्रेस की प्रियंका गांधी के प्रतिनिधित्व वाली वायनाड लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाले इस निर्वाचन क्षेत्र में 75.87 प्रतिशत मतदान हुआ। शौकत दिवंगत कांग्रेस के दिग्गज नेता आर्यदान मुहम्मद के बेटे हैं, जिन्होंने 1987 से 2016 तक इस सीट का प्रतिनिधित्व किया था।
जानिए केरल की राजनीति के समीकरण
केरल को भारत की राजनीतिक प्रयोगशाला कहा जा सकता है। केरल में चार प्रमुख समुदाय हैं। ये यहां जीत हार तय करते हैं। यहां कांग्रेस के नेतृत्व वाले UDF और लेफ्ट-CPM के LDF का अपना वोट बैंक है। 45 फीसदी अल्पसंख्यक वोट बैंक कांग्रेस नेतृत्व वाले UDF का माना जाता है जबकि केरल की पिछड़ी जातियों में लेफ्ट का काफी ज्यादा प्रभाव माना जाता है। केरल में हिंदू वोट करीब 55 फीसदी है. ये वोट LDF और UDF के बीच बंटा है। बीजेपी ने बीते कुछ सालों में लेफ्ट के हिंदू वोट बैंक में जबरदस्त सेंधमारी की है। 2006 के विधानसभा और 2019 के लोकसभा चुनावों में मिले वोट पर्सेंटेज से इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। बीजेपी ने सबरीमाला के मसले को उठाकर केरल की राजनीति में अपने कदम जमाने की कोशिश की लेकिन वो केवल नायर समुदाय को अपनी तरफ खींच पाई। केरल की कुल आबादी में नायर समुदाय करीब 15 फीसदी हिस्सेदारी रखता है। इसमें केरल के अपर कास्ट हिंदू आते हैं। सबरीमाला की वजह से ही बीजेपी इस सूबे में पहली बार लोकसभा की त्रिशूर सीट जीत सकी है। उपचुनाव के जरिये वो सूबे की राजनीति में अपनी पैठ बनाने की कोशिश में थी लेकिन औंधे मुंह गिर पड़ी।
कांग्रेस के लिए इस जीत का क्या मतलब है?
कांग्रेस ने उपचुनाव को मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन के नौ साल के शासन के खिलाफ जनादेश के तौर पर देखा था। 2021 के बाद यह पहला उपचुनाव है जिसमें कांग्रेस एलडीएफ से एक सीट छीनने में सफल रही है; पिछले उपचुनावों में कांग्रेस केवल अपनी मौजूदा सीटें ही बचा पाई थी। ये जीत इस वजह से भी अहम है क्योंकि केरल में निगम चुनाव जल्दी ही होने वाले हैं। एलडीएफ की हार के बाद कांग्रेस का मनोबल निश्चित तौर पर बढ़ेगा। कार्यकर्ता पहले की तुलना में शिद्दत से चुनाव मैदान में उतरेंगे। सूबे में 2026 में विधानसभा के लिए चुनाव होना है। ऐसे में ये उपचुनाव अहमियत रखता है।
जीत का श्रेय प्रियंका गांधी को मिलेगा
केरल कांग्रेस में फिलहाल प्रियंका गांधी का असर है। 2024 लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी वायनाड के साथ रायबरेली से जीते थे। फिर उन्होंने वायनाड सीट खाली कर दी। उसके बाद प्रियंका गांधी मैदान में उतरीं और 4 लाख से ज्यादा वोटों से जीतकर लोकसभा पहुंचीं। फिलहाल उप चुनाव वायनाड की ही एक असेंबली सीट पर हुआ था। कांग्रेस की जीत प्रियंका गांधी का ग्राफ ऊपर उठा रही है। हालांकि केरल में कांग्रेस के नेतृत्व वाले UDF को काफी ताकतवर माना जाता है लेकिन पिछले चार साल में जो उफ चुनाव हुए उनमें वो अपनी ही सीट बरकरार रख सकी थी। ये पहली बार है जब उसने पिनराई विजयन से उनकी कोई सीट छीनी है। ये प्रियंका का अचीवमेंट माना जाएगा।
अगर वो 2026 में पिनराई विजयन की सरकार को उखाड़ फेंकती हैं तो कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी पर उनका दावा बेहद मजबूत हो जाएगा। जिस तरह से कांग्रेस ने एलडीएफ से सीट छीनी है उसमें कुछ भी होना नामुमकिन नहीं है। अगर ऐसा हुआ तो कांग्रेस के भीतर उनकी पैरवी कर रहे धड़े की आवाज बुलंद होगी और ये राहुल के लिए खतरे की घंटी की तरह से होगा। क्योंकि पिछले कुछ अरसे से साफ दिख रहा है कि राहुल और प्रियंका के बीच सबकुछ ठीक नहीं है। वो कांग्रेस के अधिवेशनों से दूरी बना रही हैं तो वायनाड के ही मसले पर एक मर्तबा अमित शाह से गुफ्तगू करती देखी गईं। trending
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