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"DGCA में 55% पद खाली हैं" राघव चड्ढा का संसद में खुलासा, क्या यात्रियों की जान खतरे में?

AAP सांसद राघव चड्ढा ने संसद में DGCA में 55% तकनीकी पदों के खाली होने का मुद्दा उठाया है, जिससे विमानन सुरक्षा पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। यह कमी यात्रियों की सुरक्षा से सीधा समझौता है, क्या सरकार को DGCA को तुरंत सशक्त करना चाहिए!

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Ajit Kumar Pandey

"DGCA में 55% पद खाली हैं" राघव चड्ढा का संसद में खुलासा, क्या यात्रियों की जान खतरे में? | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)

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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । आम आदमी पार्टी (AAP) के सांसद राघव चड्ढा ने आज सोमवार 21 जुलाई 2025 को संसद में भारतीय विमानन क्षेत्र से जुड़ा एक बेहद गंभीर मुद्दा उठाया है। उन्होंने बताया कि नागर विमानन महानिदेशालय (DGCA) में तकनीकी पदों पर 55% सीटें खाली हैं। यह सीधा-सीधा यात्रियों की सुरक्षा और विमानन सुरक्षा से जुड़ा मामला है, जो देश के तेजी से बढ़ते विमानन क्षेत्र के लिए चिंता का विषय है। क्या इन खाली पदों के रहते हमारी उड़ानें सच में सुरक्षित हैं? यह सवाल हर उस यात्री के मन में उठना स्वाभाविक है जो हवाई यात्रा करता है।

DGCA, भारत में विमानन सुरक्षा और विनियमन के लिए जिम्मेदार शीर्ष नियामक संस्था है। इसका काम हवाई जहाजों की जांच से लेकर पायलटों के लाइसेंस तक सब कुछ सुनिश्चित करना है। ऐसे में, यदि इस महत्वपूर्ण संस्था में तकनीकी पदों पर 55% की भारी कमी है, तो यह दर्शाता है कि सुरक्षा मानकों को बनाए रखने और उनकी निगरानी करने वाले अधिकारियों की संख्या आधी से भी कम है। यह स्थिति न केवल चौंकाने वाली है, बल्कि यात्रियों की सुरक्षा पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न लगाती है।

कल्पना कीजिए, एक डॉक्टर को 10 मरीजों को देखना है, लेकिन उसके पास सिर्फ 5 ही हैं। क्या वह बाकी 5 मरीजों की ठीक से जांच कर पाएगा? ठीक यही स्थिति DGCA की भी है। जब तकनीकी विशेषज्ञ ही पर्याप्त संख्या में नहीं होंगे, तो एयरलाइन सुरक्षा मानकों की जांच, नियमित ऑडिट और नियमों का पालन कैसे सुनिश्चित किया जाएगा? यह एक गंभीर मुद्दा है जो सीधे तौर पर हर उड़ान यात्री की जान से जुड़ा है।

उड़ान सुरक्षा: एक अनदेखी हकीकत

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भारत में हवाई यात्रा लगातार बढ़ रही है। नए हवाई अड्डे बन रहे हैं, एयरलाइंस अपनी क्षमता बढ़ा रही हैं और हर दिन लाखों लोग हवाई मार्ग से यात्रा कर रहे हैं। ऐसे में DGCA की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। यह संस्था सुनिश्चित करती है कि एयरलाइंस और विमान कंपनियां सुरक्षा के सभी अंतरराष्ट्रीय मानकों का पालन करें। लेकिन अगर उनके पास पर्याप्त कर्मचारी नहीं हैं, तो यह सीधे तौर पर सुरक्षा से समझौता करने जैसा है।

राघव चड्ढा ने संसद में स्पष्ट रूप से कहा कि DGCA को सशक्त करने की तत्काल आवश्यकता है। इसका मतलब सिर्फ कर्मचारियों की संख्या बढ़ाना नहीं है, बल्कि उन्हें पर्याप्त प्रशिक्षण, आधुनिक उपकरण और स्वतंत्र रूप से काम करने का माहौल भी देना है। जब तक यह नहीं होगा, तब तक हवाई यात्रा से जुड़ा यह डर बना रहेगा कि क्या वाकई हमारी उड़ानें उतनी सुरक्षित हैं जितनी होनी चाहिए।

तकनीकी कर्मचारियों की कमी: क्यों है यह चिंताजनक?

DGCA में तकनीकी पदों पर खाली सीटों का मतलब है कि वे अधिकारी जो सीधे तौर पर विमानों की जांच करते हैं, पायलटों और केबिन क्रू की योग्यताओं का मूल्यांकन करते हैं, और एयरलाइंस द्वारा सुरक्षा प्रोटोकॉल के पालन की निगरानी करते हैं, उनकी संख्या बहुत कम है। यह कमी कई मायनों में खतरनाक साबित हो सकती है:

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कम जांच और ऑडिट: कर्मचारियों की कमी के कारण एयरलाइंस और विमानों की नियमित जांच और ऑडिट प्रभावित हो सकते हैं, जिससे संभावित सुरक्षा खामियां अनदेखी रह सकती हैं।

दोषपूर्ण उपकरण: यदि जांचकर्ता पर्याप्त नहीं हैं, तो विमानों में दोषपूर्ण उपकरण या खराब रखरखाव वाली प्रणालियाँ आसानी से अनदेखी रह सकती हैं।

प्रशिक्षण की कमी: मौजूदा कर्मचारियों पर काम का बोझ बढ़ जाता है, जिससे उनके प्रशिक्षण और विशेषज्ञता पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।

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अंतरराष्ट्रीय मानकों से समझौता: यदि DGCA अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा मानकों को बनाए रखने में विफल रहता है, तो इसका असर भारतीय एयरलाइंस की अंतरराष्ट्रीय उड़ानों पर भी पड़ सकता है।

यह सिर्फ एक संख्या नहीं, बल्कि लाखों यात्रियों की जिंदगी का सवाल है। सरकार को इस पर तुरंत ध्यान देना होगा और DGCA को मजबूत करने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।

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