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शशि थरूर कैसे बन गए गांधी परिवार की आंख की किरकिरी, आइए समझते हैं

हाल फिलहाल थरूर गांधी परिवार की आंख की किरकिरी बन चुके हैं। जब सरकार ने कांग्रेस से विदेशी डेलीगेशन के लिए नाम मांगे तो थरूर का नाम लिस्ट में नहीं था। नरेंद्र मोदी ने उनको डेलिगेशन में शामिल किया।

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Shailendra Gautam
Trump-Munir लंच पर थरूर का तीखा तंज:

Trump-Munir लंच पर थरूर का तीखा तंज: "खाना अच्छा हो और आतंक पर मिले सीख!" | यंग भारत न्यूज

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः शशि थरूर एक ऐसे नेता हैं जो राजनीति में आने से पहले कभी सक्रिय तौर पर राजनीति से जुड़े नहीं रहे। लेकिन जब एक बार जुड़े तो ऐसे कि आज वो गांधी परिवार की आंख की किरकिरी बन चुके हैं। आपरेशन सिंदूर के बाद मोदी सरकार ने जब उनका नाम उन सात प्रतिनिधिमंडलों में से एक के लिए सिलेक्ट किया जिनको विदेशी धरती पर जाकर सरकार का पक्ष रखना था तो गांधी परिवार के साथ उनकी तनातनी सतह पर आ गई। थरूर अमेरिका गए और बीजेपी सरकार की जमकर सराहना की। इतनी ज्यादा कि कांग्रेस के एक सीनियर नेता को कहना पड़ गया कि ये तो नरेंद्र मोदी के सुपर स्पोक्सपर्सन बन गए हैं। 

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सोनिया ने थरूर को लड़ाया था यूएन के सेक्रेट्री जनरल का चुनाव

दरअसल, शशि थरूर हमेशा से कांग्रेस आलाकमान के खिलाफ नहीं थे। वो सोनिया गांधी ही थीं जिन्होंने थरूर को संयुक्त राष्ट्र के सेक्रेट्री जनरल के चुनाव में खड़े होने के लिए कहा। थरूर खड़े हुए, जमकर लड़े पर नजदीकी अंतर से चुनाव हार गए। उसके बाद संयुक्त राष्ट्र से उनका मोह भंग हो गया और वो उसकी नौकरी छोड़कर दूसरे कामों में अपनी जी लगाने लग गए। कहते हैं कि उस दौरान न तो थरूर ने राजनीति में आने के बारे में सोचा था न ही दूसरे किसी और ने। लेकिन 2009 के लोकसभा चुनावों की जब रणनीति बनाई जा रही थी तो सोनिया गांधी थरूर को लेकर संजीदगी से कुछ प्लानिंग कर रही थीं। थरूर की पहचान इस बात को लेकर थी कि उनके विदेशी राजनेताओं से बड़े नजदीकी संबंध रहे हैं। सोनिया इस बात को बखूबी समझती थीं।

सोनिया की मरजी से ही थरूर लोकसभा में पहुंच सके

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सोनिया ने थरूर के सही इस्तेमाल के लिए उनको राजनीति में लाने का फैसला किया। 2009 के चुनाव में जब थरूर को उनके गृह राज्य केरल से लोकसभा का टिकट दिया गया तब ज्यादातर लोग यह समझ रहे थे कि वो जीत नहीं पाएंगे। इसकी वजह ये थी कि थरूर एलिट क्लास के बीच रहने के शौकीन रहे हैं। माना जा रहा था कि कांग्रेस के ग्रासरूट वर्कर्स और वोटर्स के साथ वो तालमेल नहीं बिठा पाएंगे। अलबत्ता थरूर ने अपने आलोचकों को तब भौचक कर दिया जब वो केरल से जीतकर लोकसभा पहुंचे और फिर मनमोहन सिंह की सरकार मंत्री बने। 

कोच्चि टस्कर्स विवाद में सरकार से हटे तो पहली बार दिखी खटास

यहीं से पहली दफा कांग्रेस आलाकमान से उनकी तनातनी की शुरुआत हुई। कहने वाले कहते हैं कि कोच्चि टस्कर्स (आईपीएल) टीम में जब थरूर की गर्लफ्रेंड सुनंदा पुस्कर की स्वीट इक्विटी की बात सामने आई तो हाईकमान ने थरूर का साथ नहीं दिया। उनको सरकार से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। जबकि सुनंदा पुस्कर ने अपनी इक्विटी वापस तक लौटा दी थी। थरूर ने सरकार में बने रहने के लिए सब कुछ किया पर सोनिया गांधी उनसे पल्ला झाड़ चुकी थीं। सोनिया नाराज उनसे तभी हो गई थीं जब मंत्री बनने के बाद थरूर दिल्ली के पांचसितारा होटल में इस वजह से डेरा डाले रहे कि उनको सरकारी बंगला अलाट नहीं हो पा रहा है। तब सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह सरकार की थरूर की वजह से तगड़ी फजीहत हुई। हालांकि उस समय उनको चेतावनी देकर छोड़ दिया गया। कोच्चि टस्कर्स के मामले में सोनिया ने उनको नहीं बख्शा। उनको सरकार से बाहर किया गया और पहली बार थरूर नेतृत्व से खफा हुए। 

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हालांकि, मनमोहन सिंह की सरकार के आखिरी साल में वो फिर से सरकार में जगह बनाने में कामयाब हो गए। यानि सोनिया की नाराजगी वो दूर कर चुके थे। पर 2014 से पहले और बाद में मोदी पर हमलावर होने की जद्दोजहद में वो लक्ष्मण रेखा लांघ गए। सोनिया ने उनको फिर से कड़ी हिदायत दी। थरूर मान गए और चुप हो गए। ये माना गया कि अब वो लिमिट में रहेंगे। shashi tharoor news | Modi Tharoor | shashi tharoor 

गुलाम नबी ने जब बिगूल फूंका तो थरूर साथ खड़े थे

जानकार कहते हैं कि थरूर शुरू से ही बागी तेवरों वाले रहे हैं। तीन शादियां उनके मिजाज को दर्शाती हैं। जो मन में आया वो किया। जब अच्छा नहीं लगा तो शादी ही खत्म कर दी। 2014 के बाद जब मोदी मजबूती से दिल्ली में जम गए तो थरूर को लगने लगा कि गांधी परिवार के साथ उनका तालमेल ज्यादा नहीं रहने वाला। 2014 में सुनंदा पुस्कर की मौत के मामले में उनके खिलाफ केस दर्ज हुआ तो कांग्रेस ने किसी भी स्तर पर उनकी मदद नहीं की। इसने आग में घी डालने का काम किया। लेकिन थरूर पहली बार खुलकर कांग्रेस नेतृत्व के खिलाफ तब खड़ हुए जब गुलाम नही आजाद की अगुवाई में 23 नेताओं ने सोनिया गांधी को खुली चिट्ठी लिखकर खुली चुनौती दी। थरूर इन नेताओं की फेहरिस्त में सबसे आगे खड़े हुए दिखाई दिए।

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खड़गे के खिलाफ लड़ गए थे कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव

मतलब साफ था कि वो गांधी परिवार को ये बताने पर आमादा थे कि उन पर उनका जोर नहीं चलने वाला। थरूर अपनी अदावत में एक कदम आगे और तब बढ़ गए जब कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव कराया गया। 2019 लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद राहुल गांधी अध्यक्ष की कुर्सी को ठुकरा चुके थे। सोनिया ने अंतरिम अध्यक्ष की कमान संभाल ली थी। तभी ये आवाजें उठने लगीं कि कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी पर कोई गैर गांधी बैठना चाहिए। जिन लोगों ने आवाजें उठाईं उनमें सबसे आगे शशि थरूर थे। वो यहीं पर नहीं रुके। जब कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव की घोषणा हुई और मल्लिकार्जुन खड़गे को गांधी परिवार ने आगे किया तो थरूर ने उनके खिलाफ ताल ठोक दी। इसे कफन में आखिरी कील की तरह से लिया जा सकता है। थरूर लड़े और हार गए पर गांधी परिवार से उनकी अदावत खुलकर सामने आ चुकी थी। 

अब पानी सिर के ऊपर से गुजर चुका है

हाल फिलहाल थरूर गांधी परिवार की आंख की किरकिरी बन चुके हैं। जब सरकार ने कांग्रेस से विदेशी डेलीगेशन के लिए नाम मांगे तो थरूर का नाम लिस्ट में नहीं था। नरेंद्र मोदी ने उनको डेलिगेशन में शामिल किया। थरूर अमेरिका गए और सरकार की जमकर तारीफ की। कांग्रेस ने जिस तरह से उनके बयानों पर रिएक्शन दिया उससे साफ है कि थरूर गांधी परिवार को चुभने लगे हैं। थरूर को इसकी परवाह नहीं है। ऐसा इसलिए कि केरल में कुछ पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने साफगोई भरे लहजे में कहा कि हां, कुछ लोग मुझे पसंद नहीं करते पर...।

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