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RAHUL GANDHI Photograph: (RAHUL GANDHI)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः कांग्रेस संसदीय दल के नेता और देश की सबसे बड़ी पुरानी पार्टी के अध्यक्ष रह चुके राहुल गांधी एक बार फिर से पशोपेश में हैं। उनकी अभी की सबसे बड़ी उलझन कर्नाटक को लेकर है। वो वहां कुछ करना चाहते हैं लेकिन हालात देखकर चुप रहना ही बेहतर समझ रहे हैं। वो कर्नाटक को लेकर क्या फैसला करें समझ ही नहीं पा रहे। यही वजह है कि जिन सिद्धरमैया और डीके शिवकुमार को उन्होंने खुद मिलने का समय दिया था वो उनसे मिले ही नहीं। आखिर ऐसा फैसला राहुल गांधी ने क्यों लिया। अगर नहीं मिलना था तो समय भी नहीं देना था। समय दिया था तो फिर सीएम और उनके डिप्टी से मिलने में क्यों गुरेज किया। वो दोनों को कुछ देर का समय देकर उनकी बात तो सुन ही सकते थे। लेकिन राहुल ने दोनों को बैरंग लौटाकर संदेश दे दिया कि उनके पास कर्नाटक के लिए कोई प्लान नहीं है।Congress
इंदिरा, संजय और सोनिया जैसे फैसले नहीं ले पा रहे राहुल गांधी
देखा जाए तो राहुल गांधी उस राजनीतिक लाइन से काफी इतर पालिटिक्स कर रहे हैं जो इंदिरा गांधी, संजय गांधी, राजीव गांधी या फिर सोनिया गांधी ने खींची थी। इंदिरा जब प्रधानमंत्री थीं तो वो अपने छोटे बेटे संजय गांधी के साथ बैठकर राजनीतिक विवादों को निपटाने में काफी संजीदगी से काम करती थीं। दोनों बड़े से बड़ा मसला चुटकी बजाते सुलझा दिया करते थे। संजय की मौत के बाद राजीव गांधी बेमन से राजनीति में आए। जब तक मां जिंदा थीं राजीव राजनीतिक लोगों से दूरी बनाकर ही चलते थे। पर जब इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई तो वो पूरे मन से राजनीति के मैदान में उतरे। हालांकि उन्हें राजनीतिक नौसिखिया करार दिया गया पर राजीव ने कैबिनेट और सूबे के क्षत्रपों में बदलाव करके अपना असर बनाकर रखा। राजीव के जाने के बाद सोनिया ने राजनीति से दूरी बनाई लेकिन जब वो मैदान में आईं तो अहमद पटेल जैसे सलाहकार के जरिये राजनीति की चौसर पर जमकर खेल खेला। सोनिया के सामने कई मुश्किल हालात आए पर अहमद पटेल हमेशा मुश्किलों को चुटकी बजाते सुलझा दिया करते थे। कहते हैं कि वो दिन हो या रात हमेशा लोगों के लिए अपने घर या दफ्तर में उपलब्ध होते थे।
हर मुश्किल से दूर भागने को कोशिश करते हैं राहुल
राहुल की राजनीति पर गौर करें तो वो हर मुश्किल से दूर भागने की कोशिश करते हैं। कांग्रेस अध्यक्ष बने तो पार्टी को लगा कि उन्हें अब शानदार और जानदार मांझी मिल गया है। पर 2019 आम चुनावों की हार के बाद वो कुर्सी छोड़कर चलते बने। उसके बाद के दौर में जो भी मुश्किल पल कांग्रेस के सामने थे राहुल गांधी उन सभी मुश्किलों से कन्नी काटते ही नजर आए। कर्नाटक के मसले पर उनको मुखर होकर डीके और सिद्धरमैया को डील करना था। आखिर ये ही एक सूबा बचा है जहां कांग्रेस अपने दम पर दमदार तरीके से सरकार बनाने में कामयाब रही है। राहुल अगर डीके और उनके सीएम के बीच सुलह नहीं कराएंगे तो क्या बीजेपी कराएगी।
डीके और सिद्धरमैया के झगड़े से क्यों भाग रहे हैं दूर
कर्नाटक में जो कुछ भी चल रहा है वो पार्टी की सेहत के लिए ठीक नहीं है। 2023 में कांग्रेस ने 135 सीटें जीतकर इतिहास रचा था। उस समय सिद्धरमैया को कमान सौंपी गई। डीके भी सीएम बनना चाहते थे लेकिन वो मन मसोसकर रह गए। उस समय ये तय हुआ था कि दोनों ढाई-ढाई साल के लिए सीएम बनेंगे पर जब सिद्धरमैया के ढाई साल पूरे हुए तो उन्होंने एक लाइन में डीके संदेश दे दिया। उनका कहना था कि सीएम की पोस्ट पर कोई वैकेंसी नहीं है। अब डीके दुविधा की स्थिति में हैं। उनको समर्थक दबाव डाल रहे हैं कि वो कोई फैसला लें पर हाइकमान ने जिस तरह से चुप्पी साधी है उसमें डीके के पास चुप रहने के सिवाय चारा नहीं है।
कहीं कर्नाटक का न हो जाए राजस्थान जैसा हाल
देखा जाए तो कर्नाटक भी राजस्थान की डगर पर चलता दिख रहा है। राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच जमकर खींचतान रही। सचिन सीएम की कुर्सी को लेकर बागी भी हुए। लेकिन उनको लौटना पड़ा। उसके बाद गहलोत ने उनको हाशिए पर बिठा दिया। सचिन को उम्मीद थी कि राहुल गांधी उनको इंसाफ दिलाएंगे पर राहुल चुप रहे। राहुल की चुप्पी की वजह से ही राजस्थान में कांग्रेस अपना आधार खो बैठी। बीजेपी ने उसके पटखनी देकर सरकार बना ली। जानकार कहते हैं कि राहुल गांधी एक्शन में नहीं आए तो कर्नाटक का हाल राजस्थान सरीखा हो सकता है। अगर ऐसा हुआ तो सारा दोष राहुल गांधी पर ही जाएगा।
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