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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । बिहार विधानसभा चुनावों में खराब प्रदर्शन से जूझ रही कांग्रेस के सामने अब कर्नाटक की अंदरूनी कलह नया सिरदर्द बन गई है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के ढाई साल पूरे होते ही, उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार के करीबी नेताओं ने दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से देर रात मुलाकात की है। इससे कर्नाटक में 'सत्ता परिवर्तन' की अटकलें तेज़ हो गई हैं, जो पार्टी हाईकमान के लिए एक बड़ा इम्तिहान साबित हो सकती है।
एक तरफ बिहार विधानसभा चुनावों में निराशाजनक प्रदर्शन का पोस्टमार्टम चल रहा है, वहीं दूसरी ओर देश के एक और महत्वपूर्ण राज्य, कर्नाटक से कांग्रेस के लिए बुरी खबर आ रही है। कर्नाटक की सत्ताधारी कांग्रेस सरकार के भीतर सब कुछ ठीक नहीं है। जिस तरह से उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार के करीबी माने जाने वाले नेताओं का एक समूह आनन-फानन में दिल्ली पहुंचा और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से गोपनीय मुलाकात की, उसने राज्य की राजनीति में भूचाल ला दिया है।
यह मुलाकात ऐसे समय हुई है जब मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने अपना कार्यकाल आधा यानी ढाई साल पूरा कर लिया है। राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा गर्म है कि क्या पार्टी हाईकमान ने 2023 के विधानसभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्री पद के लिए जो 'समझौता' कराया था, अब उसे लागू करने का वक्त आ गया है?
क्या था वो सीक्रेट समझौता?
साल 2023 में जब कांग्रेस ने कर्नाटक में प्रचंड जीत हासिल की थी, तब मुख्यमंत्री पद के लिए सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के बीच कड़ी खींचतान थी। अथक वार्ताओं और हाईकमान के हस्तक्षेप के बाद, सिद्धारमैया को सीएम बनाया गया, जबकि शिवकुमार को डिप्टी सीएम की जिम्मेदारी मिली। माना जाता है कि यह एक 'पावर शेयरिंग डील' थी, जिसके तहत एक निश्चित अवधि संभावित रूप से ढाई साल के बाद नेतृत्व परिवर्तन होना था। हालांकि, इस समझौते की आधिकारिक पुष्टि कभी नहीं की गई, लेकिन कांग्रेस के अंदरूनी सूत्र लगातार इस ओर इशारा करते रहे हैं।
सिद्धारमैया का '5 साल' वाला दांव
कर्नाटक सरकार में नेतृत्व परिवर्तन की बढ़ती अटकलों के बीच, मुख्यमंत्री सिद्धारमैया का हालिया बयान पार्टी के भीतर तनाव को और बढ़ाता है।
"कोई क्रांति और कन्फ्यूजन नहीं है। हमें शासन करने के लिए पांच साल का समय दिया गया है। मैं पूरे पांच साल का कार्यकाल पूरा करूंगा।" - सिद्धारमैया, मुख्यमंत्री, कर्नाटक
उन्होंने 'नवंबर क्रांति' यानी नेतृत्व परिवर्तन की खबरों को मीडिया द्वारा गढ़ा गया शब्द बताकर सिरे से खारिज कर दिया। सिद्धारमैया का दावा है कि उनकी स्थिति शुरू से ही मजबूत थी और आगे भी बनी रहेगी। उनका यह स्पष्ट रुख डीके शिवकुमार खेमे के लिए एक खुली चुनौती जैसा है।
डीके शिवकुमार खेमे की दिल्ली यात्रा क्यों?
डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार के वफादार नेताओं का देर रात दिल्ली पहुंचकर खड़गे से मुलाकात करना बताता है कि वे 'पावर शेयरिंग डील' को लेकर गंभीर हैं और इसे अब लागू करवाना चाहते हैं।
मीटिंग का समय: मुख्यमंत्री के ढाई साल पूरे होने के ठीक बाद। मीटिंग का स्वरूप देर रात और अत्यंत गोपनीय।
उद्देश्य: माना जा रहा है कि डीके शिवकुमार के समर्थक हाईकमान पर दबाव बना रहे हैं कि तयशुदा समय पर उन्हें मुख्यमंत्री की कमान सौंपी जाए। इस मुलाकात की जानकारी अभी तक गुप्त रखी गई है, जो पार्टी के भीतर की गंभीरता को दर्शाती है।
कोई भी नेता खुले तौर पर स्वीकार नहीं कर रहा है कि चर्चा का विषय क्या था, लेकिन यह साफ है कि यह मुलाकात कर्नाटक की सत्ता की 'अगली पारी' से जुड़ी हुई है।
मामला अगस्त से लंबित: राहुल गांधी की चुप्पी
दिलचस्प बात यह है कि कर्नाटक में नेतृत्व परिवर्तन और कैबिनेट फेरबदल का मामला अगस्त से ही कांग्रेस नेता राहुल गांधी के सामने लंबित है। सूत्रों के मुताबिक, पार्टी हाईकमान इस दुविधा में है कि नेतृत्व परिवर्तन से शिवकुमार को सीएम बनाना है, तो तुरंत फैसला लेना होगा।
कैबिनेट फेरबदल: अगर सिर्फ कैबिनेट में बदलाव किया गया, तो यह संदेश जाएगा कि सिद्धारमैया ही पूरे 5 साल सीएम रहेंगे, जिससे शिवकुमार खेमा भड़क सकता है।
यही वजह है कि डीके शिवकुमार भी फिलहाल कैबिनेट फेरबदल के पक्ष में नहीं हैं, क्योंकि यह उनके सीएम बनने की संभावनाओं को कम कर सकता है। हाईकमान को पता है कि कोई भी गलत फैसला कर्नाटक में सरकार की स्थिरता को खतरे में डाल सकता है, खासकर तब जब पार्टी बिहार में खराब प्रदर्शन के बाद पहले से ही दबाव में है।
तीन संभावित रास्ते समझौते का पालन
हाईकमान ढाई साल के समझौते को लागू करते हुए डीके शिवकुमार को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपे। यह सिद्धारमैया खेमे को नाराज कर सकता है।
सिद्धारमैया का 5 साल का कार्यकाल: हाईकमान सिद्धारमैया के पूरे 5 साल के कार्यकाल का समर्थन करे। यह डीके शिवकुमार को नाराज कर सकता है और पार्टी में टूट का खतरा पैदा हो सकता है।
टाल-मटोल: हाईकमान फिलहाल नेतृत्व परिवर्तन पर कोई फैसला न ले, सिर्फ कैबिनेट में आंशिक फेरबदल करे और मामले को अगली अनिश्चित अवधि के लिए टाल दे।
यह दोनों खेमों में असंतोष बनाए रखेगा। कांग्रेस के लिए यह स्थिति 'कुआं और खाई' जैसी है। बिहार में मिली हार के बाद, कर्नाटक की इस अंदरूनी लड़ाई का हल निकालना, पार्टी की राष्ट्रीय राजनीति में विश्वसनीयता के लिए बेहद जरूरी हो गया है। मल्लिकार्जुन खड़गे को जल्द ही एक मुश्किल फैसला लेना होगा, जिसका सीधा असर 2029 के लोकसभा चुनाव पर भी पड़ सकता है।
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