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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः राजीव गांधी की हत्या एक स्तब्धकारी घटना थी। 1991 के चुनावों से ऐन पहले हुई साजिश में देश के पूर्व प्रधानमंत्री को मानव बम से उड़ा दिया गया था। हत्या के बाद जो जांच टीम बनी उसने लिट्टे को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया था। लेकिन टीम के अगुवा डीएन कार्तिकेयन ने उस वक्त सभी को भौचक कर दिया जब उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा कि राजीव के वफादार जांच को बेपटरी करना चाहते थे। उन्होंने किसी की नहीं सुनी और दोषियों को उनके किए की सजा दिलाई।
कार्तिकेयन ने प्रसार भारती के सामने कही थी ये बात
प्रसार भारती के साथ एक पुराने साक्षात्कार में डीएन कार्तिकेयन ने जांच और अपने सामने आई चुनौतियों के बारे में बात की। उन्होंने कहा कि उन्होंने बहुत बड़ा व्यक्तिगत जोखिम उठाकर एसआईटी का नेतृत्व करने के लिए सहमति व्यक्त की, क्योंकि यह कोई जीत की स्थिति नहीं हो सकती थी। उन्हें न केवल अपराधियों को न्याय के कटघरे में लाना था। उन्होंने कहा कि ज्यादातर लोग यह जिम्मेदारी नहीं लेना चाहते थे। उन्होंने इसे राष्ट्र सेवा के रूप में देखा और इसके लिए हामी भरी। जब उनसे पूछा गया कि जांच के दौरान सबसे ज्यादा बड़ी चुनौती क्या थी तो उन्होंने कहा कि वह आंतरिक हस्तक्षेप था। जांच को पटरी पर उतारने की कोशिश कई बार अलग अलग तरह से हुई।
हत्यारों के बारे में जानना चाहता था हर कोई
कार्तिकेयन ने कहा कि जांच को पटरी से उतारने और उसमें हेरफेर करने की कई कोशिशें हुईं। लेकिन मैंने स्पष्ट कर दिया था कि इसमें कोई राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं होगा। हर कोई यह जानने में दिलचस्पी रखता था कि राजीव की हत्या किसने की, लेकिन इस प्रक्रिया में कुछ लोग किसी विरोधी को भी शामिल करना चाहते थे। ऐसे लोगों को देखकर बहुत निराशा हुई। मुझे लगा था कि हर कोई यह जानने के लिए उत्सुक होगा कि उस समय के सबसे करिश्माई नेता की हत्या किसने की और उन लोगों को सजा दिलाई। लेकिन मैंने पाया कि इस प्रक्रिया में जो उनके वफादार होने का दावा करते थे, वो भी विपक्षी दलों के लोगों को फंसाने में ज्यादा रुचि रखते थे।
बोले- मुझे गर्व है कि कोर्ट में आरोपियों को दोषी साबित किया
कार्तिकेयन आगे चलकर सीबीआई के निदेशक बने थे। उन्होंने कहा कि उन्हें राजीव हत्याकांड के आरोपियों को दोषी साबित करने पर गर्व है। उन्होंने अदालतों के सामने ठोस सबूत पेश किए। राजीव गांधी की हत्या तमिलनाडु में एक आत्मघाती हमलावर ने की थी। जांच में पाया गया कि यह हमला श्रीलंका स्थित एक तमिल उग्रवादी संगठन लिबरेशन टाइगर्स आफ तमिल ईलम (LTTE) के गुर्गों द्वारा किया गया था।
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