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क्या सिर्फ बंगाली बोलने से कोई "बांग्लादेशी" हो जाता है? ममता बनर्जी का तीखा पलटवार!

ममता बनर्जी का बड़ा आरोप: बंगाली बोलने पर मजदूरों को 'बांग्लादेशी' बताया जा रहा है, कई को वापस भेजा। CM ने बीजेपी पर साधा निशाना, देश की धर्मनिरपेक्षता पर सवाल उठाया। राजस्थान से 300-400 बंगालियों पर आरोप, ममता सरकार ने की वापसी।

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Ajit Kumar Pandey
CM WEST BENGAL MAMTA BANARJEE

क्या सिर्फ बंगाली बोलने से कोई "बांग्लादेशी" हो जाता है? ममता बनर्जी का तीखा पलटवार! | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)

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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क ।क्या सिर्फ बंगाली बोलने से कोई "बांग्लादेशी" हो जाता है? पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस संवेदनशील मुद्दे पर बीजेपी को आड़े हाथों लिया है। उन्होंने दावा किया है कि बंगाल के कुशल श्रमिकों को दूसरे राज्यों में काम पर ले जाया जाता है, लेकिन जब वे आपस में बंगाली बोलते हैं, तो उन्हें 'बांग्लादेशी' करार देकर वापस भेजने की कोशिश की जाती है। यह बयान देश की धर्मनिरपेक्षता और राज्यों की भाषाई पहचान पर बड़ा सवाल खड़ा करता है। पढ़िए, क्या है पूरा मामला और क्यों गरमाई है राजनीति!

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ममता बनर्जी के बयान से क्यों गरमाया मुद्दा!

दरअसल, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक बड़ा दावा करते हुए कहा है कि दूसरे राज्यों में काम करने वाले बंगाली मजदूरों को केवल अपनी भाषा बोलने के कारण 'बांग्लादेशी' करार दिया जा रहा है और उन्हें जबरन वापस भेजने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने इस पूरे मामले के लिए सीधे तौर पर बीजेपी पर निशाना साधा है।

ममता बनर्जी ने अपने बयान में भारत की धर्मनिरपेक्ष परंपरा पर जोर देते हुए कहा, "हमारे देश में हर वर्ग के लोग रहते हैं। यह भारत की धर्मनिरपेक्ष परंपरा है।" लेकिन उनका आरोप है कि भारतीय जनता पार्टी (BJP) भाषा के नाम पर राजनीति कर रही है। यह आरोप बेहद गंभीर है, क्योंकि अगर ऐसा हो रहा है तो यह न सिर्फ देश के संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ है, बल्कि विभिन्न राज्यों के लोगों के बीच अविश्वास और विभाजन भी पैदा कर सकता है। बंगाल से कुशल श्रमिक, अपनी मेहनत और हुनर के दम पर देश के कोने-कोने में जाते हैं, राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान देते हैं। ऐसे में उनकी पहचान पर सवाल उठाना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।

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राजस्थान का मामला, बंगाल की चिंता

मुख्यमंत्री ने एक चौंकाने वाला खुलासा करते हुए बताया कि उनके सामने ऐसे कई मामले आए हैं जहां बंगाली श्रमिकों को 'बांग्लादेशी' बताकर वापस बांग्लादेश भेजने की कोशिश की गई। उन्होंने यह भी दावा किया कि उनकी सरकार ने ऐसे कई लोगों को बांग्लादेश से वापस भी लाया है। हाल ही में राजस्थान से भी एक ऐसा ही मामला सामने आया है, जहां 300 से 400 बंगाली लोगों को 'बांग्लादेशी' करार दिया गया है।

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ममता बनर्जी ने साफ शब्दों में कहा, "यह क्या हो रहा है? वे बांग्लादेशी नहीं हैं, उनकी अपनी पहचान है, वे पश्चिम बंगाल के निवासी हैं, और पश्चिम बंगाल भारत का एक राज्य है।" यह बयान बंगालियों के अधिकारों और उनकी सुरक्षा को लेकर ममता सरकार की चिंता को दर्शाता है।

यह मुद्दा केवल पश्चिम बंगाल तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भाषाई राजनीति के बढ़ते चलन और उसके संभावित खतरों को उजागर करता है। भारत एक बहुभाषी देश है, जहां हर भाषा और बोली का अपना महत्व है। भाषा के आधार पर किसी को 'बाहरी' या 'अवैध' करार देना न केवल असंवैधानिक है, बल्कि यह समाज में वैमनस्य भी फैलाता है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने इस संवेदनशील मुद्दे पर खुलकर अपनी बात रखी है, जिससे यह मुद्दा राष्ट्रीय बहस का हिस्सा बन गया है।

इस मामले पर बीजेपी की तरफ से अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। हालांकि, यह तय है कि यह मुद्दा आने वाले दिनों में और गरमाएगा। यह देखना दिलचस्प होगा कि केंद्र सरकार और अन्य राजनीतिक दल इस संवेदनशील मुद्दे पर क्या रुख अपनाते हैं। क्या भाषाई पहचान के आधार पर लोगों को परेशान करने की यह प्रवृत्ति रोकी जा सकेगी? या फिर यह राजनीतिक हथियार बनकर समाज में और दरार पैदा करेगी?

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क्या आपको लगता है कि सिर्फ भाषा के आधार पर किसी की पहचान पर सवाल उठाना सही है? क्या यह देश की धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ नहीं? नीचे कमेंट बॉक्स में अपनी राय ज़रूर साझा करें। आपकी राय मायने रखती है।

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