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मींता देवी के नाम की टीशर्ट पहनी और दिनभर चला सियासी ड्रामा : Viral Video में देखें असल कहानी

बिहार में वोटर लिस्ट में 124 साल की उम्र वाली मींता देवी का मामला सियासी बवाल का कारण बना। 35 साल की मींता देवी की उम्र एक टाइपिंग मिस्टेक के कारण 124 साल हो गई, जिसे कांग्रेस ने मुद्दा बनाकर सियासी ड्रामा किया। मीता देवी ने खुद सच्चाई बताई।

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Ajit Kumar Pandey
मीता देवी के नाम की टीशर्ट पहनी और दिनभर चला सियासी ड्रामा : Viral Video में देखें असल कहानी | यंग भारत न्यूज

मींता देवी के नाम की टीशर्ट पहनी और दिनभर चला सियासी ड्रामा : Viral Video में देखें असल कहानी | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)

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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । 12 अगस्त 2025 मंगलवार का दिन। देश की राजधानी में कांग्रेस पार्टी के सांसद और विपक्ष के नेता राहुल गांधी और सहयोगी विपक्षी दलों ने जमकर हंगामा काटा। संसद के दोनों सदनों में जोरदार हंगामा किया, जनता के मुद्दे पर कोई काम नहीं होने दिया। इसके अलावा संसद के बाहर सभी विपक्षी दलों को एकजुट कर सांसदों को एक खास सफेद रंग का टीशर्ट पहनाकर खूब सियासी ड्रामा पूरा दिन चला।

आप भी सोच रहे होंगे आखिर ये सफेद टीशर्ट का माजरा है क्या! आइए इस सियासी ड्रामें, सफेद टीशर्ट और टीशर्ट पर छपी हुई एक बिहार की महिला का फोटो साथ में 124 नंबर वो इस पूरे स्क्रिप्ट को परत दर परत समझते हैं। साथ ही उस महिला को वीडियो भी देखते हैं बाकी तो आप समझ ही जाएंगे कि असल में यह छोटी सी टाइपिंग मिस्टेक को कैसे सियासी ड्रामे में बदला गया।

दरअसल, बिहार की वोटर लिस्ट में 124 साल की मींता देवी का नाम सामने आने के बाद हंगामा मच गया है। एक छोटी सी टाइपिंग मिस्टेक ने 35 साल की मींता देवी की उम्र को 124 वर्ष दिखा दिया, जिसने सियासी गलियारों में हलचल पैदा कर दी। यह खबर न सिर्फ प्रशासनिक लापरवाही को उजागर करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि कैसे एक मामूली गलती बड़ा मुद्दा बन सकती है।

कौन हैं 124 साल की मीता देवी

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बिहार की रहने वाली मींता देवी इन दिनों देश की सबसे चर्चित शख्सियतों में से एक हैं। वजह है उनकी उम्र। सरकारी दस्तावेजों में मींता देवी की उम्र 124 साल दर्ज है, जो उन्हें दुनिया की सबसे बुजुर्ग जीवित इंसानों में से एक बना देती है। हालांकि, मींता देवी खुद बताती हैं कि उनकी उम्र सिर्फ 35 साल है और यह सारी गड़बड़ी एक टाइपिंग मिस्टेक की वजह से हुई है।

मींता देवी बताती हैं कि उन्होंने वोटर लिस्ट में नाम जुड़वाने के लिए कई बार कोशिश की, लेकिन उनका नाम कभी नहीं आया। इस बार उन्होंने एक साइबर कैफे से ऑनलाइन आवेदन किया। आवेदन के दौरान उन्होंने अपना आधार कार्ड दिया, जिसमें उनकी जन्मतिथि 1990 दर्ज है। साइबर कैफे वाले ने गलती से जन्मतिथि 1900 टाइप कर दी, जिससे उनकी उम्र 124 साल हो गई। इस मामूली गलती ने न सिर्फ उन्हें सुर्खियां दिलाईं, बल्कि एक बड़ा सियासी बवंडर भी खड़ा कर दिया।

कांग्रेस पार्टी समेत विपक्षी दलों का क्या है सियासी ड्रामा

मींता देवी की उम्र का मामला सामने आते ही, कांग्रेस पार्टी ने इसे एक राजनीतिक हथियार बना लिया। राहुल गांधी ने इस मुद्दे को लेकर एक रैली में 124 नंबर की टी-शर्ट पहनी और अन्य सांसदों को भी यही टी-शर्ट पहनाई। कांग्रेस ने इस घटना को सरकारी लापरवाही और फर्जीवाड़े का सबूत बताया।

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लेकिन, मींता देवी के बयान ने इस पूरे मामले को एक नया मोड़ दे दिया। जब उनसे इस बारे में पूछा गया, तो उन्होंने साफ कहा कि यह सिर्फ एक टाइपिंग की गलती है। उन्होंने यह भी बताया कि वे कई सालों से अपना नाम मतदाता सूची में दर्ज कराने की कोशिश कर रही हैं। इस बयान से साफ हो जाता है कि यह मामला उतना सीधा नहीं है, जितना इसे राजनीतिक रंग दिया जा रहा है।

मींता देवी के इस सीधे और बेबाक बयान ने कई लोगों को चौंका दिया। वह न सिर्फ अपनी बात को स्पष्टता से रख रही थीं, बल्कि इस पूरे मामले की सच्चाई भी सामने ला रही थीं। यह बात मींता देवी को राहुल गांधी और उनके साथियों से भी ज्यादा समझदार साबित करती है, जो इस मुद्दे को सिर्फ अपने राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल कर रहे थे।

ऑनलाइन आवेदन और प्रशासनिक लापरवाही

मींता देवी की कहानी प्रशासनिक लापरवाही और डिजिटल इंडिया के सामने खड़ी चुनौतियों को उजागर करती है। यह सवाल उठाती है कि जब एक सामान्य नागरिक अपना नाम वोटर लिस्ट में दर्ज कराने के लिए संघर्ष कर रहा है, तो सिस्टम कहां खड़ा है? एक छोटी सी टाइपिंग मिस्टेक की वजह से इतना बड़ा हंगामा होना, यह दिखाता है कि हमारे सिस्टम में सत्यापन (verification) की प्रक्रिया कितनी कमजोर है।

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यह घटना उन लाखों लोगों के लिए एक चेतावनी है, जो अपने जरूरी दस्तावेज बनवाने के लिए ऑनलाइन आवेदन करते हैं। एक छोटी सी गलती उनके जीवन को कितना प्रभावित कर सकती है, यह मींता देवी की कहानी से समझा जा सकता है। साइबर कैफे में काम करने वालों की लापरवाही से न सिर्फ व्यक्तिगत रूप से नुकसान हो सकता है, बल्कि यह पूरे सिस्टम पर भी सवालिया निशान खड़ा कर सकता है।

क्या है मींता देवी की कहानी का असली सबक?

मींता देवी की कहानी सिर्फ एक उम्र की गलती या राजनीतिक बवाल तक सीमित नहीं है। यह कहानी है एक साधारण नागरिक के संघर्ष की। यह कहानी है सिस्टम की खामियों की। यह कहानी है उन लोगों की, जो एक मामूली काम के लिए सालों तक सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाते रहते हैं।

मींता देवी ने जिस तरह से अपनी बात रखी, वह यह साबित करता है कि वे एक समझदार और सुलझी हुई महिला हैं। उनका बयान न सिर्फ सच्चाई को सामने लाया, बल्कि उन लोगों को भी जवाब दिया जो इस घटना का राजनीतिक फायदा उठाना चाहते थे। इस पूरी घटना में मींता देवी के बयान सबसे महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि यह हमें सिखाता है कि किसी भी बात पर बिना सोचे-समझे प्रतिक्रिया नहीं देनी चाहिए।

इस घटना के बाद, चुनाव आयोग और अन्य सरकारी एजेंसियों को अपनी प्रक्रियाओं में सुधार करने की जरूरत है। वोटर लिस्ट में नाम दर्ज करने की प्रक्रिया को और भी पुख्ता और सुरक्षित बनाने की जरूरत है, ताकि भविष्य में इस तरह की गलतियां न हों।

मींता देवी की कहानी ने एक बार फिर से डिजिटल दुनिया में छोटी-छोटी गलतियों के बड़े नतीजों को उजागर किया है। यह कहानी न सिर्फ प्रशासनिक लापरवाही और सियासी ड्रामे का उदाहरण है, बल्कि यह भी दिखाती है कि एक आम नागरिक की समझदारी और ईमानदारी इन सबके ऊपर है। यह घटना हमें सिखाती है कि हमें हमेशा तथ्यों की जांच करनी चाहिए, खासकर तब जब कोई राजनीतिक पार्टी किसी मुद्दे को बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रही हो।

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