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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः कुछ अरसा पहले की बात है। फिल्म डायरेक्टर महेश मांजरेकर के पाडकास्ट पर राज ठाकरे ने एक ऐसी बात कही जो सियासत में धमाके जैसी थी। अरसा पहले अपने भाई उद्धव ठाकरे से अलग राह बना चुके राज ठाकरे ने कहा कि वो चचेरे भाई से सुलह करने को तैयार हैं। बड़े टारगेट के लिए छोटी मोटी बातों को भूलने के लिए तैयार हैं। उनकी पेशकश के बाद उद्धव ने सशर्त एकजुट होने की बात मान ली। उद्धव का कहना था कि उन्हें सुलह से कोई परेशानी नहीं है पर राज को बीजेपी और एकनाथ शिंदे जैसे लोगों से दूरी बनानी होगी। उसके बाद के दौर में उद्धव की पार्टी इस मिलाप के लिए आतुर दिखी लेकिन राज ने अपने भाई की बात को नजरंदाज करने में कसर नहीं छोड़ी। कभी वो एकनाथ शिंदे से मिलते हैं तो अब सूबे के सीएम देवेंद्र फडणवीस से मिलने मुंबई के एक आलीशान होटल में जा पहुंचे। इस मुलाकात को देखने के बाद राजनीति के धुरंधर भी अपना सिर खुजाने पर मजबूर हो गए हैं। उऩका सवाल है कि आखिर राज ठाकरे ये कौन सी सियासत कर रहे हैं।
ताज लैंड्स एंड के बंद कमरे में मिले राज और फडणवीस
ताजा घटनाक्रम में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने गुरुवार दोपहर बांद्रा के ताज लैंड्स एंड में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) प्रमुख राज ठाकरे के साथ बंद कमरे में बैठक की। बीएमसी चुनावों से पहले और राज ठाकरे के चचेरे भाईयों से अपने मतभेदों को दूर करने के सिलसिले में ये मुलाकात बहुत सारे सवाल उठा रही है। फिर से एक होने की अटकलों के बीच मुलाकात बता रही है कि राज कोई दूसरा ही खेल खेल रहे हैं।
भाजपा और मनसे ने मुलाकात पर चुप्पी साधी
भारतीय जनता पार्टी और मनसे दोनों इस बारे में चुप्पी साधे हुए है कि दोनों नेताओं के बीच क्या बातचीत हुई, लेकिन जानकारों का कहना है कि यह बैठक अचानक नहीं हुई। राज से मिलने का एजेंडा फडणवीस के उस दिन के कार्यक्रम में नहीं था। उन्होंने इसके लिए समय निकाला। वो बाकायदा होटल गए और बंद कमरे में राज से गुफ्तगू की। राज सुबह करीब 9.40 बजे और फडणवीस 10.30 बजे होटल पहुंचे। एक घंटे बाद दोनों वहां से गए तो मातोश्री में हलचल मच गई। उद्धव राज के पैंतरे से भौचक लग रहे थे।
राज के सीएम से मिलने के बाद देशपांडे भी सामंत से मिले
बात होटल की मीटिंग तक नहीं रुकी। उनकी मुलाकात के तुरंत बाद मनसे मुंबई प्रमुख संदीप देशपांडे उद्योग मंत्री और शिवसेना नेता उदय सामंत के घर पर गए, जिससे यह अटकलें और तेज हो गईं कि भाजपा और शिवसेना दोनों ही निकाय चुनावों से पहले राज के साथ गठबंधन के लिए बातचीत कर रहे हैं। खास बात है कि अगर राज और उद्धव ठाकरे फिर से साथ आ जाते हैं तो राज्य में राजनीतिक समीकरण बदल सकते हैं। इससे मुंबई और पड़ोसी इलाकों में मराठी वोट बैंक मजबूत होता।
हालांकि राज्य भाजपा प्रमुख चंद्रशेखर बावनकुले ने मीडिया से कहा कि जब तक और विवरण सामने नहीं आते, तब तक इस मुलाकात को राजनीतिक रंग देना अनुचित होगा। बकौल बावनकुले कोई नहीं जानता कि आज दोनों की मुलाकात क्यों हुई। लोकसभा चुनाव के दौरान राज ठाकरे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को समर्थन दिया था। हमें नहीं पता कि बीएमसी चुनाव को लेकर उनका रुख क्या होगा। अगर राज मुंबई के विकास के लिए हमसे मिलते हैं तो हम उस पर काम करेंगे। बावनकुले की तरह देशपांडे ने भी कहा कि मुझे नहीं पता कि वो क्यों मिले और क्या चर्चा हुई।
शिरसाट बोले- ये सियासत है, कब क्या हो जाए नहीं पता
उधर सामाजिक न्याय मंत्री और शिवसेना नेता संजय शिरसाट ने कहा कि इस मुलाकात से अभी निष्कर्ष निकालना गलत होगा, लेकिन उनकी पार्टी एमएनएस के साथ गठबंधन करने में रुचि रखती थी। उनका कहना था कि राजनीति में कई यू-टर्न देखने को मिलते हैं। राजनीति में कब क्या हो जाए, इसका अनुमान नहीं लगाया जा सकता। किसी पार्टी को मजबूत करने या उसका विस्तार करने के लिए ऐसे गठबंधन करने पड़ते हैं। हमने पहले भी राज साहब को गठबंधन का प्रस्ताव दिया था। उन्हें हमारे साथ महायुति में आना चाहिए। शिरसाट ने कहा कि उद्धव ठाकरे ने मनसे के साथ गठबंधन के बारे में बार-बार आशा व्यक्त की है। दोनों दलों के कार्यकर्ता भाइयों के फिर से एक होने के पक्ष में हैं। अब यह राज ठाकरे पर निर्भर है कि वो क्या करते हैं।
राज ने दगा दी तो उद्धव हो जाएंगे बर्बाद
वैसे विश्लेषक कहते हैं कि राज और उद्धव के साथ आने से सबसे बड़ा झटका बीजेपी और शिवसेना को लगता। मराठी और हिंदू वोटबैंक दोनों के मिलने से उनके पास जा सकता था। राज ने सुलह की पहल की थी और उद्धव मान भी गए थे। लेकिन अब ये कौन सा खेल चल रहा है उसके बारे में अनुमान लगाना भी मुश्किल है। राज की हरकत से ये तो साफ है कि वो उद्धव को ठेंगा दिखाने में लगे हैं। अगर राज सुलह से पीछे हटते हैं तो उनको ज्यादा नुकसान नहीं होगा। बर्बाद तो उद्धव ठाकरे हो जाएंगे, क्योंकि राज की महाराष्ट्र और मुंबई में ज्यादा मजबूत स्थिति नहीं है। वो बड़ा नाम जरूर हैं पर उनकी पार्टी तकरीबन हाशिए पर है। जबकि उद्धव के पास एक वोटबैंक अभी भी है जो बालासाहब के साथ जुड़ा रहा था। लोकसभा चुनाव 2024 में उद्धव को इसी वोटबैंक के समर्थन के चलते जीत मिली थी। असेंबली चुनाव वो हारे और बुरी तरह से हारे। लेकिन राज के साथ मिलन से उनके पास शिवसेना का परंपरागत वोटबैंक लौट सकता था। दोनों भाई सियासत का जानामाना नाम हैं। वो साथ आते तो एकनाथ शिंदे खत्म हो जाते पर अब जो खेल राज खेल रहे हैं उसमें नुकसान सिर्फ और सिर्फ उद्धव का होगा। क्योंकि महाविकास अघाड़ी का भविष्य नहीं दिख रहा। कांग्रेस पशोपेश में है और शरद पवार फिर से अजित पवार से हाथ मिलाने के लिए बेसब्र दिखाई दे रहे हैं। ऐसे में उद्धव को एक मजबूत साथ की जरूरत थी जो फिलहाल राज से बेहतर नहीं हो सकता।
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