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संघ प्रमुख मोहन भागवत Photograph: (X.com)
जयपुर, आईएएनएस। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने जयपुर में आयोजित एक कार्यक्रम में संघ की स्थापना, कार्यकर्ताओं का समर्पण और संगठन के लिए फंडिंग जैसे विषयों पर खुलकर चर्चा की। उन्होंने बताया कि संघ को गुरुदक्षिणा में जो धन मिलता है, उसी फंड से सब होता है। भागवत ने बताया कि संघ की शुरुआत बहुत ही सीमित संसाधनों और उपेक्षा के साथ हुई थी। लोग संगठन और डॉक्टर हेडगेवार के प्रयासों का मजाक उड़ाते थे। उन्होंने बताया कि प्रचारक केवल सवा रुपये के साथ बिहार के भागलपुर और पटना में काम करने जाते थे, रातभर स्टेशन या लोकल ट्रेन में ठहरते और दिनभर घर-घर जाकर हिंदू समाज के कल्याण के लिए मेहनत करते थे।
सदस्य व्यक्तिगत बचत से चलाते हैं संगठन
संघ कार्यकर्ताओं के समर्पण की मिसाल देते हुए उन्होंने बताया कि एक स्वयंसेवक के लिए घर की मां ने ताजी रोटियां और भोजन परोसते हुए अपनी संतान की निस्वार्थ सेवा को देखा। यह परंपरा तीन पीढ़ियों तक चली। मोहन भागवत ने संघ की फंडिंग प्रक्रिया के बारे में बताया कि यह ‘गुरु दक्षिणा’ के रूप में होती है। उन्होंने कहा- सदस्य अपनी व्यक्तिगत बचत से संगठन का खर्च चलाते हैं और अपनी सुविधाओं में कटौती करके अतिरिक्त योगदान भी देते हैं।
कार्यकर्ताओं के समर्पण से मजबूत हुआ संगठन
उन्होंने स्पष्ट किया कि संघ के समर्पित कार्यकर्ता और उनकी वित्तीय सहयोग की यह व्यवस्था संगठन को मजबूत और स्वतंत्र बनाती है, जिससे संघ अपने सामाजिक और राष्ट्रीय मिशन को निरंतर आगे बढ़ा रहा है। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि संघ की स्थितियां बदल गई हैं। शुरुआत में संघ का काम बहुत छोटा और उपेक्षित था। बहुत लोग संघ के कामों और डॉक्टर हेडगेवार पर हंसते थे। मोहन भागवत ने कहा, "लोग उपहास उड़ाते थे कि 'नाक साफ कर नहीं सकते, ऐसे बच्चों को लेकर ये राष्ट्र निर्माण करने चले हैं।'
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