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Politics: मुकेश सहनी की सियासी चुनौती: सीटें और डिप्टी सीएम पद की मांग

बिहार की सियासत में मुकेश सहनी की सीटों और डिप्टी सीएम पद की मांग महागठबंधन में टकराव का कारण बन रही है। जानिए उनके राजनीतिक विकल्प क्या हैं।

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Deepak Gaur
Mukesh Sahani
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सन ऑफ मल्लाह के नाम से बिहार की सियासत में जमकर सुर्खियां बंटोरने वाले विकासशील इंसान पार्टी के मुखिया मुकेश सहनी, इन दिनों खुद अपनी नईया पार लगने की बाट जोह रहे हैं। उनका इंतजार है कि महागठबंधन के शीर्ष नेता उनकी आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर सीटों की मांग वाली गठरी और डिप्टी सीएम की डिमांट वाली पोटली को गठबंधन की नांव में रखकर पार लगा दें। लेकिन ऐसा होता दिख नहीं रहा है। पिछले विधानसभा चुनावों में एनडीए का एलांयस बनकर रहने वाले मुकेश सहनी इस बार महागठबंधन के साथ हैं और इस गठबंधन के साथ बने रहने के लिए दो डिमांड किए बैठे हैं। जहां एनडीए में लोजपा प्रमुख चिराग पासवान अपनी सियासी डिमांड से भाजपा-जदयू के लिए गले की फांस बन गए हैं , वैसा इस समय मुकेश सहनी के साथ नजर नहीं आ रहा है। हाल के घटनाक्रमों पर नजर डालें तो कांग्रेस और राजद ने अपने तेवरों से साफ कर दिया है कि वह इस समय वीआईपी पार्टी के मुकेश सहनी के अस्तित्व को नकार रहे हैं। 

'निषाद और मल्लाह की आबादी 13 प्रतिशत से अधिक'

बता दें कि सन ऑफ मल्लाह अपनी पार्टी को व्यापक निषाद जाति-समूह का प्रतिनिधि बताते हैं। इसमें विशेष रूप से निषाद, नोनिया, बिंद, बेलदार जैसी उपजातियाँ शामिल हैं। वह अपने साथ बिहार में कुल 21 उपजातियों का ज़िक्र करते हैं, जो उनके साथ जुड़ी हुई हैं। बिहार में निषाद समाज की आबादी तकरीबन 7-8 प्रतिशत के करीब है। हालांकि, विकासशील इंसान पार्टी निषाद और मल्लाह की आबादी 13 प्रतिशत से अधिक बताती है। बिहार की तीन दर्जन से अधिक सीटों पर निषादों का यह वोट बैंक बड़े उलटफेर करने की क्षमता रखता है। यही वह आंकड़ा है, जिसके आधार पर मुकेश सहनी इस बार विधानसभा चुनावों में अपने लिए 60 सीटों के साथ डिप्टी सीएम पद की मांग कर रहे हैं। 

कांग्रेस 70 सीटों की मांग पर अड़ी है

चलिए अब बात करते हैं उनकी सीटों की मांग से जुड़े आंकड़ों पर। असल में बिहार की 243 सीटों में से कांग्रेस 70 सीटों की मांग पर अड़ी है। SIR के मुद्दे पर कांग्रेस मुखर है। राहुल के नेतृत्व में महागठबंधन वोटर अधिकार यात्रा भी निकाल रहा है, जिसकी मदद से कांग्रेस बिहार में अपना दबदबा बढ़ाने की जुगत में जुटी है। हाल के दिनों में राहुल गांधी ने जिस तरह से सत्ता पक्ष पर सवाल उठाए हैं, उसने उनके पक्ष में एनडीए से नाराज लोगों के दिल में थोड़ी जगह तो बनाई है। लेकिन तेजस्वी यादव बिहार में सीएम का चेहरा बनकर उभरे हैं। ऐसे में राजद करीब 140-150 सीटे अपने पास रखना चाहती है। ऐसे में करीब 25-35 के बीच ही सीटें बचेंगी, जिसमें से वाम दलों और वीआईपी पार्टी को सीटें देनी होंगी। अब अगर सियासी समीकरणों की बात करें तो कांग्रेस ने अंदरखाने यह मैसेज महागठबंधन में पहुंचा दिया है कि हमें 70 सीटें चाहिए , इसके बाद शेष बची 173 सीटों पर राजद खुद अपने लिए सीटें रखे और बाकि वाम दलों , वीआईपी , पशुपति पारस की लोजपा और झारखंड मुक्ति मोर्चा के साथ बांट ले। अब मान लें कि कांग्रेस 10 सीटों पर नीचे खिसकर 60 सीटों पर मान जाती है , और राजद भी 10 सीटें कम लेते हुए अपने पास 140 सीटें रखती है , तो भी वाम दलों वीआईपी , पशुपति पारस और झामुमो को देने के लिए महज 43 सीटें होंगी। इसमें भी अगर समीकरण देखें तो झामुमो को 2-3 सीट मिल सकती हैं, वहीं पशुपति पारस को भी 2 सीट देकर महागठबंधन में बांधा जा सकता है। इसी क्रम में वाम दलों को 20-22 सीटें दी जाएं तो वीआईपी के लिए 16 सीटें ही बचती हैं। 

कितनी सीटों पर मान जाएंगे मुकेश सहनी

हालांकि मुकेश सहनी भी इस बात के संकेत दे चुके हैं कि जब महागठबंधन का दायरा बड़ा होगा तो सभी को अपनी सीटें कुछ कुछ छोड़नी होंगी, लेकिन क्या सहनी 16 या 20 सीटों पर मानेंगे।  इसी क्रम में उनकी दूसरी मांग पर भी चर्चा कर लेते हैं। यानी की डिप्टी सीएम की मांग... अब वोटर अधिकार यात्रा के बाद बदले समीकरणों को समझिए। राहुल गांधी इस यात्रा के जरिए अपनी सीटों की बार्गेनिंग पावर को मजबूत कर रहे हैं। हालांकि तेजस्वी भी राहुल गांधी की सभी भाव भंगिमाओं को समझ रहे हैं , जिसके चलते उन्होंने राहुल गांधी को 2029 के लिए महागठबंधन की ओर से पीएम उम्मीदवार बनाए जाने का ऐलान कर दिया , लेकिन जब पत्रकारों ने राहुल गांधी से पूछा कि क्या वह तेजस्वी को बिहार का सीएम बनाए जाने का ऐलान करेंगे, तो राहुल ने गोलमोल जबाव दिया। अब जो कांग्रेस तेजस्वी को ही सीएम का उम्मीदवार बताने से कतरा रही हो , वह मुकेश सहनी को डिप्टी सीएम का पद दिए जाने की बात कैसे मान जाएगी। हालांकि सूत्रों का कहना है कि सीएम चेहरा होंगे तेजस्वी ही, लेकिन सीटों के बंटवारे को लेकर दबाव की राजनीति के तहत उनका नाम राहुल ने नहीं लिया है। हालांकि कांग्रेस बाद में सीएम चेहरा तेजस्वी को ही बनाएगी , लेकिन बिहार में दो डिप्टी सीएम अपने रखेगी। मुकेश सहनी का नंबर वहां भी नहीं आता दिख रहा। 

तेजस्वी की सरकार न बनने देने में भूमिका की चर्चा

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अंदरखाने से खबर यह है कि कांग्रेस, मुकेश सहनी की राजनीति को ज्यादा पसंद नहीं करती है। इसलिए महागठबंधन के साथी के तौर पर कांग्रेस, वीआईपी की पार्टी के बारे में कभी कुछ कहती हुई नहीं दिखती। शायद उनका एक कारण है कि पिछली बार बिहार में तेजस्वी की सरकार बनने से किसी ने रोकी तो उनमें मुकेश सहनी एक बड़ा नाम थे। वहीं मुकेश सहनी बार बार कहते हैं कि अगर पीएम मोदी निषाद समाज को आरक्षण दे दें तो वह उनके लिए कुछ भी कर सकते हैं । यह बात कांग्रेस को कभी भी रास नहीं आई है और वह सहनी को भाव भी नहीं दे रही है। कांग्रेस समेत राजद को यह डर है कि सीटों के बंटवारे के बाद अगर केंद्र सरकार ने निषाद समाज को आरक्षण वाली सहनी की मांग मान ली तो उनकी सारी रणनीति पर पानी फिर जाएगा। 

भाजपा नेताओं से मुलाकात की खबरें सामने आई थीं

क्योंकि पिछले दिनों महागठबंधन की समन्वय समिति की बैठक के दौरान मुकेश सहनी दिल्ली में थे और उस दौरान उनकी भाजपा नेताओं से मुलाकात की खबरें सामने आई थीं। ऐसे में उन्हें लेकर महागठबंधन डरा हुआ भी है। वोटर अधिकार यात्रा में महागठबंधन के घटक दल के रूप में मुकेश सहनी भी राहुल गांधी के साथ गाड़ी में पीछे नजर तो आते हैं, लेकिन उनके चेहरे के भाव उनकी स्थिति के बारे में बता देते हैं।  बहरहाल, पिछले कुछ महीनों में जो मुकेश सहनी महागठबंधन के लिए मास्टर की कहे जा रहे थे , इस समय उनकी स्थिति पहले जैसी नजर नहीं आ रही है। वह खुद भी इन बातों को महसूस कर रहे हैं। उन्हें खुद ऐसा लग रहा है कि उन्हें महागठबंधन में साइड किया जा रहा है और ऐसा न हो कि पिछली बार की तरह इस बार भी उन्हें सीटों के नाम पर कुछ सीटें देकर बैठाने की कोशिश हो... ये आशंकाएं लगातार मुकेश सहनी के लिए चिंता का विषय है... जिसके मद्देनजर वह एनडीए के भी संपर्क में है।  जहां महागठबंधन सीटों के बंटवारे की चर्चाओं को अंतिम समय तक ले जाना चाहती है , वहीं सहनी अपनी मांगों पर महागठबंधन का स्टैंड क्लियर चाहते हैं, ताकि अंतिम समय में वह अटक न जाएं... ऐसे समय में जब न तो एनडीए में जाने का रास्ता बचे ... न ही अकेले सियासी समर में उतरने का....बहरहाल , यह आने वाला वक्त ही बताएगा कि सियासी बिसात बिछाए। राजनेता किस समय किस शह और मात देने की रणनीति बनाकर बैठे हैं...।

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