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महाराष्ट्र में बनेंगे नए सियासी समीकरण! जानें आज कैसे होगा फैसला?

विधानसभा चुनाव की करारी हार के बाद शिवसेना UBT और मनसे के बीच गठबंधन की आहट है। दुश्मनी भुलाकर दोनों दल अस्तित्व बचाने के लिए साथ आ रहे हैं। उत्कर्ष पैनल के तहत चुनाव लड़ रही दोनों पार्टियों ने सभी 21 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। आज फैसला आएगा।

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Ajit Kumar Pandey
महाराष्ट्र में बनेंगे नए सियासी समीकरण! जानें आज कैसे होगा फैसला? | यंग भारत न्यूज

महाराष्ट्र में बनेंगे नए सियासी समीकरण! जानें आज कैसे होगा फैसला? | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)

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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । महाराष्ट्र की राजनीति में एक बड़ा सवाल तैर रहा है, क्या दशकों की दुश्मनी भूलकर शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) एक साथ आएंगे? लोकसभा और विधानसभा चुनावों में मिली करारी हार के बाद दोनों दलों को जनता के भारी दबाव का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में यह गठबंधन सिर्फ एक सियासी चाल है या अस्तित्व बचाने की आखिरी कोशिश इसे लेकर अटकलें तेज हो गई हैं। इस स्टोरी आज इस बात पर फैसला हो जाएगा कि यह जोड़ी कामयाबी की इबारत लिखेगी या फिर यह सियासी गठजोड़ फुस्स होकर रह जाएगा।

दरअसल, महाराष्ट्र की राजनीति में ठाकरे बंधुओं की जोड़ी हमेशा से चर्चा में रही है। उद्धव और राज ठाकरे की राहें 2006 में तब जुदा हुईं, जब राज ठाकरे ने शिवसेना छोड़ अपनी अलग पार्टी मनसे बनाई। तब से लेकर आज तक दोनों राजनीतिक मोर्चे पर एक-दूसरे के धुर विरोधी रहे। लेकिन अब परिस्थितियां ऐसी हैं कि दोनों को एक-दूसरे की जरूरत महसूस हो रही है। हाल ही में दोनों भाई एक सार्वजनिक मंच पर भी साथ दिखे, जिसने इन अटकलों को और हवा दे दी।

क्या यह सिर्फ संयोग है या समय की मांग? दोनों दलों के नेता दबी जुबान में कह रहे हैं कि जनता का दबाव इतना है कि गठबंधन न करना मुश्किल होगा। एक तरफ शिवसेना (यूबीटी) के नेता संजय राउत ने खुले तौर पर नगर निगम चुनावों में गठबंधन की घोषणा कर दी है, तो दूसरी तरफ मनसे अभी तक इस पर खामोश है। हालांकि, अंदरखाने दोनों दलों के बीच बातचीत जारी है।

चुनावी हार: क्या यही है गठबंधन का मुख्य कारण?

पिछले साल हुए विधानसभा चुनावों में शिवसेना (यूबीटी) और मनसे दोनों को बड़ा झटका लगा। 288 सदस्यीय विधानसभा में शिवसेना (यूबीटी) सिर्फ 20 सीटें जीत पाई, जबकि मनसे को एक भी सीट नहीं मिली। यह मनसे के लिए 2006 में अपनी स्थापना के बाद पहली बार हुआ। राज ठाकरे के बेटे अमित ठाकरे भी अपनी पारंपरिक सीट माहिम से चुनाव हार गए।

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इस हार ने दोनों दलों के कार्यकर्ताओं का मनोबल तोड़ दिया। अब वे इसे अपनी वापसी का मौका मान रहे हैं। शिवसेना (यूबीटी) के एक नेता का मानना है कि 'साथ आना समय की मांग है।' उनका कहना है कि 5 जुलाई की रैली के बाद जनता का जो समर्थन मिला है, उसका फायदा उठाने के लिए गठबंधन जरूरी है। इससे कार्यकर्ताओं में नई जान आएगी और विधानसभा चुनावों के नतीजों के बाद मिली निराशा दूर होगी।

क्यों जरूरी है यह गठबंधन?

अस्तित्व का संकट: विधानसभा चुनावों में मिली करारी हार ने दोनों दलों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि अगर वे अलग-अलग लड़ते रहे तो उनका अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है।

वोटों का बिखराव रोकना: एक साथ आने से शिवसेना (यूबीटी) और मनसे के वोट एक जगह इकट्ठे होंगे, जिससे उन्हें चुनाव जीतने में मदद मिलेगी।

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कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाना: लंबे समय से अलग-अलग लड़ने के कारण दोनों पार्टियों के कार्यकर्ता हताश हो चुके हैं। गठबंधन से उनमें नई ऊर्जा का संचार होगा।

भाजपा के दबाव को कम करना: दोनों दल महसूस कर रहे हैं कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) लगातार उन पर दबाव बना रही है। एक साथ आने से वे भाजपा के सामने ज्यादा मजबूत स्थिति में होंगे।

क्या गठबंधन सिर्फ नगर निगम चुनावों के लिए है?

मनसे के एक नेता का कहना है कि उनकी पार्टी "वेंटिलेटर पर है" और शिवसेना (यूबीटी) "आईसीयू में है"। ऐसे में दोनों को एक साथ आना ही होगा। हालांकि, उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि अभी उनका ध्यान केवल नगर निगम चुनावों पर है। विधानसभा चुनावों तक यह गठबंधन जारी रहेगा या नहीं, इस पर अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। यह भी कहा जा रहा है कि इतनी जल्दी गठबंधन की घोषणा से दोनों दलों के कार्यकर्ताओं में आपसी सीट बंटवारे को लेकर असंतोष पैदा हो सकता है, इसलिए इस पर अंतिम फैसला चुनाव से ठीक पहले लिया जाएगा।

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आज होगा उत्कर्ष पैनल का फैसला : ठाकरे बंधुओं की सियासी जोड़ी कितनी कामयाब

उत्कर्ष पैनल के तहत चुनाव लड़ रही दोनों पार्टियों ने सभी 21 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। इनमें से उद्धव ठाकरे की पार्टी से 18, राज ठाकरे की MNS से दो और एससी/एसटी कर्मचारी कल्याण संघ से एक उम्मीदवार मैदान में था। हाल ही में बृहन्मुंबई इलेक्ट्रिक सप्लाई एंड ट्रांसपोर्ट (बेस्ट) क्रेडिट सोसाइटी के चुनावों में दोनों दल एक साथ आए। उन्होंने 'उत्कर्ष पैनल' का गठन किया, जिसमें 21 सदस्यों में से 18 शिवसेना (यूबीटी) के, दो मनसे के और एक अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के एक संगठन से थे। यह छोटा सा कदम भविष्य में होने वाले बड़े राजनीतिक गठजोड़ की ओर इशारा करता है।

बेस्ट कामगार सेना के प्रमुख सुहास सामंत ने कहा कि यह पैनल शिवसेना (यूबीटी) के नियंत्रण में है और इस तरह के छोटे-छोटे गठजोड़ आगे भी देखने को मिल सकते हैं। यह पहला मौका है जब दोनों दल किसी भी चुनाव में साथ आए हैं भले ही वह क्रेडिट सोसाइटी का चुनाव ही क्यों न हो।

महायुति पर क्या होगा असर?

इस संभावित गठबंधन पर सत्ताधारी महायुति का क्या रुख है? शिवसेना सांसद नरेश म्हास्के का कहना है कि शिवसेना (यूबीटी) और मनसे का गठबंधन आगामी चुनावों में महायुति की संभावनाओं पर कोई असर नहीं डालेगा। उन्होंने कहा, 'जब महायुति चुनावी लड़ाई के लिए तैयार होती है, तो वह पूरी तरह तैयार होती है। पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनावों में भी हम विजयी रहे थे और नगर निकाय चुनावों में भी ऐसा ही करेंगे।'

म्हास्के ने आगे कहा कि महायुति ने पहले भी समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के साथ शिवसेना (यूबीटी) के गठबंधन को मात दी है। उनका कहना है कि ये दोनों पार्टियां मिलकर भी महायुति को हरा नहीं पाएंगी।

चुनाव में 83.69 प्रतिशत हुआ है मतदान

बेस्ट एम्प्लॉइज कोऑपरेटिव क्रेडिट सोसाइटी लिमिटेड में इस निकाय के मौजूदा और पूर्व कर्मचारी सदस्य हैं, जो निर्वाचक मंडल का गठन करते हैं। इस क्रेडिट सोसाइ‌टी के 15,000 से ज़्यादा सदस्य हैं और वर्षों से इस पर बेस्ट कामगार सेना का दबदबा रहा है, जो उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना (उबाठा) से संबद्ध है। बेस्ट कामगार सेना के अध्यक्ष सुहास सामंत ने विश्वास जताया कि शिवसेना (उबाठा)-मनसे पैनल भारी बहुमत से जीत हासिल करेगा।

चुनाव में 83.69 प्रतिशत मतदान हुआ, जिसमें 15,093 पात्र सदस्यों में से 12,625 ने बेस्ट डिपो के 35 मतदान केंद्रों पर अपने मताधिकार का प्रयोग किया। इस सोसाइटी में मुंबई के नागरिक परिवहन उपक्रम, बेस्ट (बृहन्मुंबई इलेक्ट्रिक सप्लाई एंड ट्रांसपोर्ट) के वर्तमान और सेवानिवृत्त कर्मचारी शामिल हैं, जो इसे महत्वपूर्ण सहकारी संस्था बनाता है। वर्षों से, इस सोसाइटी पर बेस्ट कामगार सेना का दबदबा रहा है, जो उद्धव ठाकरे के गुट से संबद्ध है। 

यह कहा जा सकता है कि उद्धव और राज ठाकरे के बीच यह संभावित गठबंधन सिर्फ एक राजनीतिक चाल नहीं, बल्कि अस्तित्व को बचाने की एक मजबूत जरूरत है। विधानसभा चुनावों की करारी हार ने दोनों दलों को एक-दूसरे के करीब आने के लिए मजबूर कर दिया है। सवाल यह है कि क्या यह 'मजबूरी का मिलन' सिर्फ एक अस्थायी व्यवस्था होगी या महाराष्ट्र की राजनीति में एक नए अध्याय की शुरुआत? इसका जवाब तो आने वाले वक्त में ही मिलेगा। फिलहाल, सभी की नजरें उद्धव और राज ठाकरे के अगले कदम पर टिकी हैं।

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