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हुड्डा के साथ भी नहीं और..., आखिर हरियाणा को लेकर क्या है राहुल गांधी की रणनीति

राहुल जानते हैं कि हरियाणा में हुड्डा को साथ लेना मुफीद नहीं होगा लेकिन उनको किनारे करना घातक हो सकता है। बेशक हुड्डा कमजोर स्थिति में हैं। लेकिन आज भी उनके पास एक मजबूत टीम मौजूद है। रोहतक के आसपास के जिलों के जाट उनको अपना सबसे बड़ा नेता मानते हैं।

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Shailendra Gautam
CM HARYANA-HOODA

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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः हरियाणा में कांग्रेस की सियासत दिलचस्प मोड़ से गुजर रही है। असेंबली चुनावों में मुंह की खाने के बाद कांग्रेस ये तय नहीं कर पा रही है कि वो किस चेहरे को आगे करके भविष्य की राजनीति करे। मौजूदा घटनाक्रम देखें तो राहुल गांधी हुड्डा परिवार से पल्ला झाड़ने की कोशिश में हैं लेकिन ये भी सच है कि वो चाहकर भी उनसे पूरी तरह से किनारा नहीं कर पा रहे हैं। यही वजह है कि हुड्डा की मर्जी के खिलाफ कुछ नहीं हो पा रहा। 

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विधानसभा चुनाव की सारी कमान थी हुड्डा के हाथ

असेंबली चुनाव के दौरान राहुल गांधी ने खुद को एक तरह से किनारे ला खड़ा किया था। भूपेंद्र सिंह हुड्डा के पास सारी कमान थी। राहुल चाहते थे कि इंडिया गठबंधन के घटकों अखिलेश यादव की सपा और अरविंद केजरीवाल की आप से गठजोड़ कर लिया जाए। दो-चार सीटें देने में उनको आपत्ति नहीं थी पर हुड्डा नहीं माने। भूपेंद्र सिंह हुड्डा और उनके बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने खुले मंच से कह दिया कि हरियाणा में अखिलेश को सीटें क्यों दी जाएं। आप को सीट देने की बात पर उनका कहना था कि अरविंद केजरीवाल कांग्रेस को ही काटने का काम करेंगे।  bhupinder hooda not present in content

कांग्रेस हारी तो हुड्डा को किनारे करने का काम हुआ शुरू

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राहुल गांधी हुड्डा की बात से सहमत भी थे और असहमत भी। अलबत्ता उन्होंने किया कुछ नहीं। नतीजतन दोनों दो कोई सीट नहीं दी गई। सैलजा भी जब हुड्डा से नाराज होकर सिरसा में सिमट गईं तो भी राहुल गांधी ने ज्यादा कुछ नहीं किया। जो हुड्डा चाहते थे वो होता रहा। लेकिन कांग्रेस अगर जीत जाती तो राहुल को कोई दिक्कत नहीं थी पर कांग्रेस 37 सीटों पर ही सिमट गई। बीजेपी ने फिर से सूबे में सरकार बना ली। उसके बाद के दौर में राहुल गांधी हुड्डा से एक लंबी दूरी बनाए हुए हैं। उनका मानना है कि हुड्डा की वजह से ही दिल्ली के पड़ोसी सूबे में सरकार बनते बनते रह गई। यही वजह है कि विधानसभा ने नेता प्रतिपक्ष का पद अभी तक खाली पड़ा है पर राहुल कोई फैसला नहीं ले रहे। उनको लगता है कि कांग्रेस अध्यक्ष उदयभान में वो दम नहीं है जो पार्टी की नैय्या अपने दम पर पार लगा सकें पर फिर भी वो कुछ नहीं कर रहे। 

हुड्डा नहीं चाहते थे कि कांग्रेस को बंपर सीटें मिलें

जानकार कहते हैं कि राहुल गांधी गुस्से में तो हैं पर वो कुछ कर नहीं पा रहे। इसकी सबसे बड़ी वजह हैं भूपेंद्र सिंह हुड्डा। राहुल जानते हैं कि हुड्डा ने कांग्रेस के प्रत्याशियों के खिलाफ डमी कैंडिडेट उतारे थे, क्योंकि वो नहीं चाहते थे कि उनसे वैर रखने वाला कोई भी नेता जीते। उनकी रणनीति कांग्रेस को 40-45 के आंकड़े के बीच रखने की थी, क्योंकि सीटें बहुमत से ज्यादा होतीं तो आलाकमान हुड्डा को उसी अंदाज में निपटा देता जैसे अमरिंदर सिंह और हिमाचल में वीरभद्र सिंह के परिवार को निपटाया। हुड्डा अपनी गोट खेल रहे थे। वो चाहते थे कि सूबे में जो सरकार बने वो कांग्रेस अपने दम पर न बना पाए। उन्होंने पहले से ही अभय सिंह चौटाला से बातचीत कर रखी थी। दोनों का प्लान था कि अभय सरकार में शामिल होंगे और सीएम की कुर्सी पर बैठेंगे हुड्डा के बेटे यानि दीपेंद्र सिंह हुड्डा। लेकिन जो कुछ हुड्डा ने सोचा था वो हो नहीं पाया। कांग्रेस 40 के नीचे गई और भतीजे दुष्यंत के बर्बाद होने के बावजूद अभय सिंह उस आंकड़े पर नहीं पहुंच पाए जहां वो कांग्रेस के साथ मोलभाव करने की स्थिति में आ पाते। 

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किनारे तो किया पर हुड्डा से पल्ला नहीं झाड़ पा रहे राहुल गांधी

खैर सरकार नहीं बनी तो हुड्डा भी हाशिए पर आ गए। हरियाणा के सीनीयर नेताओं की लिस्ट में वो नंबर दो (उदयभान के बाद) धकेल दिए गए। ये लिस्ट दिल्ली से बनी थी। जाहिर है कि राहुल गांधी हुड्डा को तरजीह देने के मूड़ में नहीं हैं। लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या वो हुड्डा को पूरी तरह से किनारे करना चाहते हैं। इसका जवाब है नहीं। उनको पता है कि हरियाणा की राजनीति में हुड्डा को साथ लेना मुफीद नहीं होगा लेकिन उनको किनारे करना घातक हो सकता है। बेशक हुड्डा कमजोर स्थिति में हैं। लेकिन आज भी उनके पास एक मजबूत टीम मौजूद है। रोहतक के आसपास के जिलों के जाट उनको अपना सबसे बड़ा नेता मानते हैं। 

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