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ओवैसी का दावा – "नाम कटे तो नागरिकता गई!" क्या वाकई EC की प्रक्रिया लोगों को बनाएगी 'गैर नागरिक'?

बिहार चुनाव से पहले वोटर लिस्ट में नाम कटने का खतरा! ओवैसी ने चुनाव आयोग से SIR पर चिंता जताई। उनका दावा है कि इस प्रक्रिया से लाखों लोगों की नागरिकता और रोज़ी-रोटी पर संकट आ सकता है।

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Ajit Kumar Pandey
OWAISI NEWS

ओवैसी का दावा – "नाम कटे तो नागरिकता गई!" क्या वाकई EC की प्रक्रिया लोगों को बनाएगी 'गैर नागरिक'? | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)

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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क ।बिहार चुनाव से पहले वोटर लिस्ट में नाम कटने का खतरा! AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने चुनाव आयोग से मुलाकात कर ‘स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन’ (SIR) पर गंभीर चिंता जताई है। यह जानकारी आज सोमवार 7 जुलाई 2025 को एक न्यूज एजेंसी ने अपने सोशल मीडिया हैंडल पोस्ट की है। 

असदुद्दीन ओवैसी ने चुनाव आयोग (EC) से मुलाकात कर इस प्रक्रिया पर अपनी गहरी चिंता व्यक्त की है। उनका कहना है कि जल्दबाजी में की जा रही यह कवायद लाखों लोगों के लिए न केवल वोटिंग का अधिकार छीन सकती है, बल्कि उनकी नागरिकता और रोज़ी-रोटी पर भी सीधा असर डाल सकती है। ओवैसी ने सवाल उठाया है कि आखिर इतने कम समय में चुनाव आयोग इस बड़े बदलाव को कैसे लागू कर पाएगा?

‘स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन’ (SIR) एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके तहत मतदाता सूची को अपडेट किया जाता है। इसमें नए मतदाताओं को जोड़ा जाता है, पुराने मतदाताओं के नाम हटाए जाते हैं (जैसे मृत्यु या स्थानांतरण के कारण), और गलतियों को सुधारा जाता है। इसका मकसद एक साफ-सुथरी और सटीक मतदाता सूची तैयार करना है। हालांकि, ओवैसी का तर्क है कि बिहार जैसे बड़े राज्य में, जहां बड़ी संख्या में प्रवासी आबादी और अशिक्षित लोग हैं, इतनी कम अवधि में इस पूरी प्रक्रिया को कुशलता से अंजाम देना लगभग असंभव है।

नागरिकता और रोज़ी-रोटी पर खतरा: ओवैसी की आशंकाएं

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ओवैसी ने साफ शब्दों में कहा, "अगर 15-20% लोग भी इस लिस्ट से छूट जाते हैं, तो वे अपनी नागरिकता भी खो देंगे।" यह एक बेहद गंभीर आरोप है, जो इस प्रक्रिया की पारदर्शिता और इसके संभावित परिणामों पर सवाल खड़े करता है। उनका कहना है कि अगर किसी का नाम वोटर लिस्ट से कट जाता है, तो यह केवल उसके वोट के अधिकार की बात नहीं है, बल्कि यह उसकी पहचान और उसके अस्तित्व से जुड़ा मुद्दा बन जाता है। बिना वोटर आईडी या नागरिकता के प्रमाण के, लोगों को सरकारी योजनाओं, बैंक खातों और यहां तक कि रोज़गार जैसी मूलभूत सुविधाओं से भी वंचित होना पड़ सकता है।

चुनाव आयोग पर दबाव : क्या समय कम है?

असदुद्दीन ओवैसी ने चुनाव आयोग के सामने सबसे बड़ी चुनौती के रूप में 'समय की कमी' को बताया। उन्होंने कहा, "हम स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन समय दिया जाना चाहिए।" उनकी दलील है कि इस तरह के बड़े पैमाने पर किए जा रहे अभ्यास के लिए पर्याप्त समय और संसाधनों की आवश्यकता होती है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई भी पात्र नागरिक छूट न जाए। कम समय में, यह संभव है कि कई लोग जानकारी के अभाव या प्रक्रियागत जटिलताओं के कारण अपना नाम दर्ज न करा पाएं या अपने मौजूदा नामों की जांच न कर पाएं।

ग्रामीण और वंचित तबके पर क्या होगा असर

ओवैसी ने विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों और समाज के वंचित तबकों पर पड़ने वाले संभावित प्रभाव पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, "लोग इस समस्या का सामना करेंगे, और हमने इन मुद्दों को चुनाव आयोग के सामने प्रस्तुत किया है, जिसमें व्यावहारिक कठिनाइयों पर प्रकाश डाला गया है।" अशिक्षित लोग, जो शायद ऑनलाइन प्रक्रियाओं से परिचित न हों, या वे जो दूरदराज के इलाकों में रहते हैं, उनके लिए इस प्रक्रिया में भाग लेना और अपनी जानकारी अपडेट करना एक बड़ी चुनौती हो सकती है। यह आशंका जताई जा रही है कि इन्हीं वर्गों के लोग सबसे ज्यादा प्रभावित हो सकते हैं।

राजनीतिक मायने और बिहार चुनाव 2025

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बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों को देखते हुए ओवैसी का यह बयान राजनीतिक रूप से भी काफी अहम है। AIMIM बिहार में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रही है, खासकर मुस्लिम बहुल इलाकों में। वोटर लिस्ट से नाम कटने का मुद्दा, अगर यह बड़े पैमाने पर होता है, तो सीधे तौर पर एक बड़े वोट बैंक को प्रभावित कर सकता है। ओवैसी इस मुद्दे को उठाकर वंचित तबकों के अधिकारों के लिए लड़ने वाले नेता के रूप में अपनी छवि को मजबूत करने का प्रयास कर रहे हैं।

अब सबकी निगाहें चुनाव आयोग पर टिकी हैं। क्या चुनाव आयोग ओवैसी की चिंताओं पर ध्यान देगा? क्या वे इस प्रक्रिया के लिए और समय देंगे या कुछ और समाधान पेश करेंगे? यह देखना दिलचस्प होगा कि बिहार चुनाव से पहले यह मुद्दा क्या मोड़ लेता है और लाखों लोगों के भाग्य का फैसला कैसे होता है। बिहार में निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव के लिए यह बेहद महत्वपूर्ण है कि हर पात्र नागरिक को अपने मताधिकार का प्रयोग करने का मौका मिले और किसी भी कीमत पर नागरिकता के अधिकार का हनन न हो।

चुनाव आयोग को इस मामले में सभी राजनीतिक दलों और हितधारकों से बातचीत कर एक सर्वमान्य हल निकालना होगा, ताकि बिहार के हर नागरिक को अपनी पहचान और अधिकार सुरक्षित रखने का अवसर मिले। यह सिर्फ वोट की बात नहीं, यह बिहार के भविष्य का सवाल है।

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