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प्रशांत किशोर की वो 'ब्लंडर' स्ट्रैटेजी जब 7 सीटों पर सिमट गई कांग्रेस

बिहार में जन सुराज की हार प्रशांत किशोर की पहली विफलता नहीं है 2017 में PK की '2 लड़कों की जोड़ी' वाली स्ट्रैटेजी ने यूपी में कांग्रेस का सूपड़ा ​साफ किया। कैसे पीके की रणनीति कांग्रेस-सपा के लिए ब्लंडर साबित हुई?

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Ajit Kumar Pandey
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PK

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क ।चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी का बिहार चुनाव 2025 में फ्लॉप होना उनकी पहली असफलता नहीं है। सच यह है कि इससे 8 साल पहले, उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2017 में भी उनकी रणनीति बुरी तरह विफल हुई थी। कांग्रेस के लिए बनाई गई पीके की '2 लड़कों की जोड़ी' वाली स्ट्रैटेजी ने पार्टी को 28 सीटों से सीधा 7 पर ला दिया था। यंग भारत न्यूज के इस एक्प्लेनर में पढ़िए, कैसे पीके की एक सलाह ने कांग्रेस और सपा दोनों को गर्त में धकेल दिया था। पीके की रणनीति पर बड़ा सवाल क्या बिहार की हार इकलौती है? 

चुनावी रणनीतियों के मास्टरमाइंड माने जाने वाले प्रशांत किशोर Prashant Kishor की नई पॉलिटिकल पार्टी, जन सुराज, बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में एक भी सीट नहीं जीत पाई। चुनावी दावों और पर्चियों पर बड़े-बड़े भविष्य की बातें करने वाले पीके के लिए यह एक बड़ा झटका था। इस हार के बाद सोशल मीडिया और राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा गर्म हो गई कि पीके की रणनीति पहली बार उलटी पड़ी है। 

यह माना जाता रहा है कि उन्होंने जिस भी पार्टी के लिए काम किया – चाहे वह टीएमसी, डीएमके, वाईएसआरसीपी या आम आदमी पाटी हो – उसे हमेशा जीत ही मिली। लेकिन यह धारणा पूरी तरह सही नहीं है। खोजी पत्रकारिता की हमारी पड़ताल में सामने आया है कि 2017 में भी प्रशांत किशोर की सियासी रणनीति का 'जादू' बुरी तरह फेल हुआ था। यह वो वाकया है जब कांग्रेस आलाकमान ने उन पर भरोसा जताया, और नतीजतन, पार्टी को अब तक की सबसे बुरी हार में से एक का सामना करना पड़ा। 

साल 2017 का वो किस्सा जब कांग्रेस ने PK पर जताया 'अंधा' भरोसा 

साल था 2017 और प्रशांत किशोर की ख्याति 2014 में बीजेपी और 2015 में नीतीश कुमार के लिए शानदार जीत दिलाने के बाद चरम पर थी। हर कोई उन्हें एक अजेय रणनीतिकार मान रहा था। कांग्रेस आलाकमान भी इस चकाचौंध से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका। उन्होंने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2017 के लिए अपनी सियासी किस्मत पलटने का जिम्मा पीके और उनकी टीम  -PAC Indian Political Action Committee को सौंप दिया। पीके का उद्देश्य साफ़ था उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की खोई हुई जमीन वापस दिलाना, जहां वह पिछले 27 सालों से सत्ता से बाहर थी। 

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PK का पहला दांव: '27 साल यूपी बेहाल' का आक्रामक नारा उत्तर प्रदेश में एंट्री करते ही प्रशांत किशोर ने कांग्रेस को एक आक्रामक और इमोशनल नारा दिया "27 साल यूपी बेहाल"। इस नारे का मकसद साफ था बीजेपी, बीएसपी और तत्कालीन सत्ताधारी समाजवादी पार्टी सपा तीनों को एक ही तराजू पर तौलना और 27 साल के 'कुशासन' के लिए जिम्मेदार ठहराना। 

कांग्रेस ने इस नारे के साथ पूरे राज्य में जोरदार यात्राएं भी निकालीं। शुरुआत में यह रणनीति अच्छी लग रही थी, लेकिन जमीन पर कोई बड़ा सियासी माहौल बनता नहीं दिखा। तब प्रशांत किशोर ने अपनी रणनीति में यूटर्न लेते हुए एक बड़ा दांव खेला, जो बाद में 'ब्लंडर' साबित हुआ। 

PK का दूसरा और सबसे 'खतरनाक' दांव दो लड़कों की जोड़ी 

चुनाव से ठीक पहले, प्रशांत किशोर ने कांग्रेस को समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करने की सलाह दी। यूपी में तब अखिलेश यादव मुख्यमंत्री थे। पीके ने अखिलेश यादव और कांग्रेस के तत्कालीन उपाध्यक्ष राहुल गांधी को साथ लाने के लिए एक नया नारा गढ़ा "2 लड़कों की जोड़ी" Do Ladkon Ki Jodi। यह फैसला कांग्रेस के लिए सियासी आत्मघाती साबित होने वाला था, जिसकी कीमत पार्टी ने आज तक चुकाई है। 

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कांग्रेस का 'यू-टर्न' दीवारों पर पोत दिया गया नारा 

पुराना नारा "27 साल यूपी बेहाल" में सपा सरकार का कार्यकाल भी शामिल था। 

PK की सलाह: गठबंधन होते ही कांग्रेस को अपने पुराने नारे से किनारा करना पड़ा। 

डैमेज कंट्रोल: आनन-फानन में, कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने उन दीवारों को पेंट करवाना शुरू कर दिया, जिन पर यह नारा लिखा गया था। 

नई भाषा: अब कांग्रेस, सपा सरकार की आलोचना के बजाय उपलब्धियां गिनाने लगी थी। 

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राहुल गांधी और अखिलेश यादव ने मिलकर बड़े रोड शो किए, चुनावी मंच साझा किए और इस गठबंधन को विकास की नई आशा के रूप में पेश करने की कोशिश की। 

नतीजा: जब 28 सीटें 7 बनकर रह गईं यूपी विधानसभा चुनाव 2017 के लिए जब वोटिंग हुई, तो प्रशांत किशोर की पूरी स्ट्रैटेजी हवा हो गई। 

परिणाम: चौंकाने वाले थे बीजेपी गठबंधन ऐतिहासिक जीत दर्ज करते हुए 325 सीटों का आंकड़ा पार कर गया। सपा केवल 47 सीटों पर सिमट गई, सत्ता गंवा बैठी। कांग्रेस पीके की रणनीति के बाद सबसे बुरा हाल कांग्रेस का हुआ। 

कांग्रेस ने गठबंधन में 105 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन केवल 7 सीटें ही जीत पाईं। जबकि 2012 में बिना किसी रणनीतिकार के उसने 28 सीटें जीती थीं। यह हार सिर्फ सीटों की संख्या तक सीमित नहीं थी, बल्कि कांग्रेस की सियासी जमीन पूरी तरह हिल गई थी। 

2017 के बाद कांग्रेस विधानसभा में दोबारा कभी 7 का आंकड़ा भी नहीं छू पाई, जो पीके की विफल रणनीति का सबसे बड़ा सबूत है। PK की रणनीति क्यों हुई फेल? प्रशांत किशोर की 2017 की रणनीति के विफल होने के पीछे कई बड़े कारण थे कंट्राडिक्शन विरोधाभास पहले आक्रामक तरीके से "27 साल यूपी बेहाल" का नारा देना और फिर अचानक उसी सपा से हाथ मिला लेना। इस यू-टर्न ने जनता के बीच कांग्रेस की विश्वसनीयता को खत्म कर दिया। 

वोट ट्रांसफर की विफलता 

पीके को उम्मीद थी कि सपा और कांग्रेस का वोटबैंक मिलकर बीजेपी को हरा देगा, लेकिन यह वोट ट्रांसफर जमीन पर पूरी तरह विफल रहा। दोनों पार्टियों के कार्यकर्ताओं के बीच तालमेल की कमी दिखी। 

ओवर-डिपेंडेंस: कांग्रेस पूरी तरह से प्रशांत किशोर के 'जादू' पर निर्भर हो गई, जमीनी संगठन को मजबूत करने पर ध्यान नहीं दिया। 

ओवर-कॉन्फिडेंस: '2 लड़कों की जोड़ी' वाला नारा बनाने में पीके ओवर-कॉन्फिडेंट थे, उन्हें लगा कि यह नयापन ही जीत दिला देगा, जबकि जनता जमीनी मुद्दों पर फैसला ले रही थी। 

बिहार में जन सुराज के फ्लॉप होने के बाद यह स्पष्ट है कि प्रशांत किशोर की सियासी रणनीति का हर दांव 'अचूक' नहीं होता। 2017 में कांग्रेस की करारी हार उनके करियर की पहली बड़ी और अस्वीकार्य असफलता थी, जिसे अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है। 

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